शनिवार, अप्रैल 28, 2018

मैथिली ठाकुर का गाया एक प्यारा लोक गीत : दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी Ram Vivah Geet by Maithili Thakur

शादी विवाह का समय है तो आइए आज बात करते हैं एक विवाह गीत की जिसे मैंने कुछ दिन पहले ही सुना। विवाह भी ऐसा वैसा नहीं बल्कि सियावर राजा रामचंद्र जी का तो मैंने सोचा कि आपको भी ये मधुर लोकगीत सुनाता चलूँ। पर गीत सुनने से पहले ये जानना नहीं चाहेंगे कि राम जी की ये बारात किस इलाके में गयी थी?

ये इलाका है मिथिलांचल का जो कि बिहार के उत्तर पूर्वी हिस्से में फैला हुआ है। यहाँ की जनभाषा मैथिली है।किंवदंती  है कि महाराजा जनक की उत्पत्ति उनके मृत पिता निमि की देह से हुई। इसीलिए जनक को मंथन से पैदा होने की वजह से ‘मिथिल’ और  विदेह होने के कारण ‘वैदेह’ कहा जाता है। इतिहास में ये इलाका विदेह और फिर बाद में मिथिला के रूप में जाना गया। मधुबनी और दरभंगा मिथिला के सांस्कृतिक केंद्र माने जाते हैं। जनकपुत्री वैदेही यानि सीता जी का जन्म भी इसी इलाके सीतामढ़ी जिले में माना जाता है। 

आज जिस गीत की ऊपर चर्चा  मैंने छेड़ी है उसे गाया है सत्रह वर्षीय मैथिली ठाकुर ने जो मधुबनी से ताल्लुक रखती हैं। 


मैथिली ने बचपन में अपने दादा जी से संगीत सीखा। पिता दिल्ली में संगीत के शिक्षक थे। जब मैथिली ग्यारह साल की थीं तो वो उन्हें दिल्ली ले आए और उन्हें संगीत की विधिवत शिक्षा देनी शुरु कर दी। इस दौरान मैथिली ने कई सारे रियालिटी शो में भाग लिया। पर किसी ना किसी चरण में वे बाहर होती गयीं। उनकी मेहनत ज़ारी रही और पिछले साल कलर्स टीवी के राइसिंग स्टार कार्यक्रम में वे प्रथम रनर्स अप तक पहुँची। इस कार्यक्रम में उनके प्रदर्शन को मोनाली ठाकुर और शंकर महादेवन जैसे नामी कलाकारों ने भी खूब सराहा। मैथिली ने इस कार्यक्रम में कई फिल्मी गीत गाए पर उनकी तमन्ना है कि वो अपने नाम के अनुरूप अपनी भाषा के लोकगीतों को पूरी दुनिया में फैलाएँ। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अपने इस उद्देश्य में वो कच्ची उम्र में ही वांछित सफलता अर्जित कर रही हैं।

तो बात हो रही थी मिथिलांचल की जहाँ का ये लोकगीत है। चूँकि सीता जी मिथिला से थीं तो यहाँ की शादियों में राम विवाह से जुड़े लोकगीत सदियों से गाए जाते रहे। जब मैंने इस गीत को सुना तो मुझे इसके बोल रामचरितमानस के बालकांड में लिखी चौपाइयों से प्रेरित लगे जिसे मेरी नानी मुझे बचपन में सुनाया करती थीं। उसी बालकांड की एक चौपाई याद आती है जिसमें राम के अद्भुत व्यक्तित्व का वर्णन है। चौपाई कुछ यूँ थी

पीत जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु लेई॥
सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे॥

(राम के शरीर पर पीला जनेऊ उनकी शोभा को बढ़ा रहा है। हाथ की जो अँगूठी है उसकी चमक दिल को चुरा लेने वाली है। ब्याह की जो साज सज्जा है वो बड़ी सुंदर लग रही है। श्री राम की छाती आभूषणों से सुसज्जित है।)

यहाँ लोकगीत में राम की आरती उतारने का प्रसंग है (जिसे आमतौर पर मिथिला की शादियों में आजकल द्वारपूजा के वक्त गाया जाता है)। जो स्त्रियाँ उन्हें देख रही हैं उनकी आँखें आनंद से भरी जा रही हैं। बाकी जैसा चौपाई में है वैसे ही शादी  के मंडप और श्रीराम की सुंदरता का बखान इस लोकगीत में भी है।

चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
दुल्हिन श्री मिथिलेश कुमारी, दूल्हा दुलरुवा श्री अवध बिहारी
भरी भरी नैना निहारूँ हे सखी, आहे
भरी भरी नैना निहारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
ब्याह विभूषण अंग अंग साजे
मणि मंडप मंगलमय राचे
तन मन धन न्योछारूँ हे सखी आहे
तन मन धन न्योछारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी
चारू दूल्हा के आरती उतारूँ हे सखी
चितचोरवा के आरती उतारूँ हे सखी

मैथिली की आवाज़ तो मीठी है ही पर साथ ही साथ हारमोनियम पर उनकी थिरकती उँगलियाँ कमाल करती हैं। गीत की धुन और ॠषभ ठाकुर की तबले पर जोरदार संगत मैथिली की गायिकी को बेहतरीन अवलंब देते हैं। तो आइए सुनते हैं इस गीत को।



वैसे मैथिली ठाकुर की शास्त्रीय संगीत पर कितनी अच्छी पकड़ है इसका अंदाज़ा  आप मास्टर सलीम के साथ उनकी इस बेजोड़ संगत को सुन के समझ सकते हैं। मैंथिली अपनी माटी के लोकगीतों के साथ हर तरह के नग्मों को गाने में प्रवीणता हासिल करेंगी ऐसा मेरा विश्वास है।

बुधवार, अप्रैल 18, 2018

रोज़ रोज़ आँखों तले एक ही सपना चले Roz Roz Aankhon Tale

अस्सी का दशक हिंदी फिल्म संगीत का पराभव काल था। मवाली, हिम्मतवाला, तोहफा और जस्टिस चौधरी जैसी फिल्में अपनी फूहड़ता के बावजूद सफलता के झंडे गाड़ रही थीं। गीतकार भी ऐसे थे जो झोपड़ी के अंदर के क्रियाकलापों से लेकर साड़ी के हवा होने के प्रसंग को गीतों में ढाल रहे थे। बप्पी लाहिड़ी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ऐसे दो संगीतकार थे जिनकी तूती इस दौर में बॉलीवुड में बोल रही थी।

पंचम परिदृश्य से बाहर नहीं हुए थे और हर साल पन्द्रह बीस फिल्में कर ले रहे थे पर संगीत के इस माहौल का असर उनके काम पर भी पड़ा था। मुझे याद है कि बप्पी और एलपी से हटकर अगर आर डी की कोई फिल्म आती तो उसके संगीत को हम सुनना नहीं भूलते थे। अस्सी के दशक की फिल्मों में मासूम, सितारा लव स्टोरी, बेताब  सागर और इजाज़त में उनका काम सराहा गया पर इन फिल्मों के बीच दर्जनों फिल्में ऐसी रही जो बॉक्स आफिस पर बिना कोई आहट किये चलती बनीं। किशोर दा के जाने के बाद स्थिति और भी बदतर हो गयी थी और पंचम अपने काम के प्रति पूरा दिल नहीं लगा पा रहे थे।




ऐसी ही बुरे दौर में जब पंचम का ख़ुद पर से विश्वास डगमगा सा गया था तो उन्हें फिल्म जीवा का संगीत देने की जिम्मेदारी मिली। पंचम की एक खासियत थी कि वो गुलज़ार के बोलों पर अक्सर संगीत देने में काफी मेहनत किया करते थे। जब ये फिल्म आई थी तो इसका एक गाना जीवा रे आ रे खूब चला था। पर जहाँ तक रोज़ रोज़ आँखों तले की बात है ये गीत फिल्म रिलीज़ होने के बहुत बाद लोकप्रियता की सीढ़ियाँ चढ़ सका।

ग़जब की धुन बनाई थी पंचम ने इतना प्यारा उतार चढ़ाव जिसे गुलज़ार के शब्दों ने एक अलग मुकाम पर पहुँचा दिया था। मुखड़े में आँखों तले एक सपना चलने और उसकी तपिश से काजल जलने की सोच बस गुलज़ार की ही हो सकती है। पहले अंतरे में गुलज़ार क्या खूब कहते हैं जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होठ लगायी है मीठा सा ग़म है और, मीठी सी तन्हाई है। अब इस मिठास को तो वही महसूस कर सकते हैं जिन्होंने प्रेम का स्वाद चखा हो।


गुलज़ार का लिखा दूसरा अंतरा अपेक्षाकृत कमजोर था और शायद इसीलिए फिल्म में शामिल नहीं किया गया। पर पंचम की कलाकारी देखिए कि तीनों इंटरल्यूड्स में उन्होंने कुछ नया करने की कोशिश की। पहले दो इंटरल्यूड्स में बाँसुरी और फिर आख़िरी में गिटार। मेन रिदम के लिए तबला और डु्ग्गी और उसके साथ रेसो रेसो जिसको बजाने के लिए अमृतराव काटकर जाने जाते थे।

रोज़ रोज़ आँखों तले एक ही सपना चले
रात भर काजल जले, 
आँख में जिस तरह
ख़्वाब का दीया जले

जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होठ लगायी है
मीठा सा ग़म है और, मीठी सी तन्हाई है
रोज़ रोज़ आँखों तले...

छोटी सी दिल की उलझन है, ये सुलझा दो तुम

जीना तो सीखा है मरके, मरना सिखा दो तुम
रोज़ रोज़ आँखों तले...

आँखों पर कुछ ऐसे तुमने ज़ुल्फ़ गिरा दी है
बेचारे से कुछ ख़्वाबों की नींद उड़ा दी है

रोज़ रोज़ आँखों तले...

आशा जी के साथ इस गाने को अपनी आवाज़ से सँवारा था किशोर दा के सुपुत्र अमित कुमार ने..



इस गीत की धुन को कई वाद्य यंत्रों से बजाया गया है पर हाल ही मैं मैंने इसे पुणे से ताल्लुक रखने वाले मराठी वादक सचिन जाम्भेकर द्वारा हारमोनियम पर सुना और सच मानिए रोंगटे खड़े हो गए। पंचम की इस कृति के महीन टुकड़ों को भी हारमोनियम में इतनी सहजता से सचिन ने आत्मसात किया है कि मन प्रसन्न हो जाता है। वैसे एक रोचक तथ्य ये है कि सचिन जिस हारमोनियम पर इस गीत को बजा रहे हैं वो पंचम दा का है। पंचम के देहान्त के बाद आशा जी ने ये हारमोनियम सचिन जाम्भेकर को भेंट किया था ।


 

रविवार, अप्रैल 15, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पुनरावलोकन : कौन रहे एक शाम मेरे नाम संगीत सितारे ? Hindi Film Music Stars of 2017

पिछले साल रिलीज़ हुई फिल्मों के पच्चीस बेहतरीन गानों से तो मैंने आपका परिचय पिछले तीन महीने में तो कराया ही पर हर एक विधा के लिहाज से कौन रहे एक शाम मेरे नाम के संगीत सितारे इसका खुलासा आज की इस पोस्ट में। किसी एक नाम को चुनने में जो कई उल्लेखनीय प्रयास मेरी नज़र में आए उनकी भी जिक्र साथ में मैंने किया है।

साल के सर्वश्रेष्ठ यानी सरताज गीत की घोषणा तो मैंने पहले ही कर दी थी। इस साल यह सम्मान फिल्म तुम्हारी सुलु के गीत रफू को मिला जबकि दूसरे स्थान पर फिल्म करीब करीब सिंगल का गीत जाने दे रहा। संगीत निर्देशन, गायकी, गीत के बोलों और साथ में बजते संगीत में क्या शानदार रहा इसका पुनरावलोकन पेश-ए-खिदमत है।

संगीत निर्देशन की दृष्टि से कुछ उल्लेखनीय प्रयास
  • रोहित शर्मा : अनारकली आफ आरा
  • प्रीतम : जग्गा जासूस, हैरी मेट सेजल
  • तनिष्क बागची :  शुभ मंगल सावधान, हॉफ गर्लफ्रेंड
  • शाश्वत सचदेव :   फिल्लौरी
  • अमित त्रिवेदी. सीक्रेट सुपरस्टार
 साल के संगीतकार          :            प्रीतम


साल के बेहतरीन एलबम
  • जग्गा जासूस, प्रीतम
  • अनारकली आफ आरा, रोहित शर्मा
  • सीक्रेट सुपरस्टार. अमित त्रिवेदी
  • लखनऊ सेंट्रल
  • रंगून,  विशाल भारद्वाज
साल का सर्वश्रेष्ठ एलबम      :  जग्गा जासूस, प्रीतम


साल के कुछ खूबसूरत बोलों से सजे सँवरे गीत
  • कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ.  शांतनु घटक
  • वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे... राजशेखर
  • ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ, इरशाद कामिल
  • मन बेक़ैद हुआ, प्रशांत इंगोले
  • ये इश्क़ है, गुलज़ार
साल के सर्वश्रेष्ठ बोल         :   ये इश्क़ है, गुलज़ार

साल के बेहतरीन गायक
  • अरिजीत सिंह :  हवाएँ, रंगदारी, फिर वही, ये इश्क़ है. मीत
  • सोनू निगम : मन बेक़ैद हुआ
  • सचिन संघवी : खो दिया है
  • रोमी : साहिबा
  • आतिफ़ असलम  दिल दीया गल्लाँ, जाने दे
साल के सर्वश्रेष्ठ गायक          :      अरिजीत सिंह 

साल की बेहतरीन गायिका
  • रोंकिनी गुप्ता : कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ.
  • शाशा तिरुपति : कान्हा
  • परिणिति चोपड़ा : माना कि हम यार नहीं
  • मेघना मिश्रा : सपने रे, सपने रे 
  • प्रकृति कक्कर : है जरूरी
साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका       :      रोंकिनी गुप्ता 

गीत में प्रयुक्त हुए संगीत के कुछ बेहतरीन टुकड़े
  • कान्हा इंटरल्यूड्स, तनिष्क बागची : वॉयलिन - मानस, सरोद - प्रदीप बारोट
  • गलती से मिस्टेक, प्रीतम :  प्रील्यूड व इंटरल्यूड में पेपा पर जयंत सोनवाल
  • उल्लू का पट्ठा , प्रीतम : प्रील्यूड  गिटार पर रालेंड फर्नांडिस,  फ्लेमिनको गिटार पर डैनियल गार्सिया
  • मीर ए कारवाँ। रोचक कोहली :  प्रील्यूड में गिटार पर केबा जरमिया /मोहित डोगरा 
  • माना कि हम यार नहीं प्रील्यूड सचिन जिगर
संगीत की सबसे कर्णप्रिय मधुर तान  : कान्हा इंटरल्यूड्स, तनिष्क बागची : वॉयलिन - मानस, सरोद - प्रदीप बारोट

वार्षिक संगीतमाला 2017


सोमवार, अप्रैल 02, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 सरताज गीत : कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ Rafu

वर्ष 2017 के पच्चीस शानदार गीतों के इस तीन महीने से चल रहे सफ़र का आख़िरी पड़ाव आ चुका है और इस साल के सरताज गीत का सेहरा बँधा है तीन ऐसे नए कलाकारों के ऊपर जो वैसे तो अपनी अपनी विधा में बेहद गुणी हैं पर हिंदी फिल्मी गीतों में जिनकी भागीदारी शुरु ही हुई है। अब आप ज़रा बताइए कि क्या शांतनु घटक, रोंकिनी गुप्ता और अनूप सातम का नाम आपने पहले कभी सुना था? पर शांतनु ने गीत की धुन और बोल, रोंकिनी ने अपनी बेमिसाल गायिकी और अनूप ने गिटार पर अपनी कलाकारी का जो सम्मिलित जौहर दिखलाया है वो इस गीत को वार्षिक संगीतमाला 2017 का सरताज गीत बनाने में कामयाब रहा है।



वैसे एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में नए प्रतिभावान कलाकार वार्षिक संगीतमाला की प्रथम पायदान पर पहले भी काबिज होते रहे हैं। 2005 में स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा (रात हमारी तो, परिणिता), 2008 में अमित त्रिवेदी और अमिताभ भट्टाचार्य (इक लौ, आमिर), 2011 में क्रस्ना और राज शेखर (ऍ रंगरेज़ मेरे, तनु वेड्स मनु), 2014 में जी प्रकाश कुमार और गौरव सौलंकी (पापा, Ugly) जैसे गीतकार संगीतकार की जोड़ियों ने जब सरताज गीत का खिताब अपने नाम किया था तो वो फिल्म उद्योग में बेहद नए थे। पर इनमें से अधिकतर अपना नाम फिल्म उद्योग में बना चुके हैं या उस ओर अग्रसर हैं। ये अजब संयोग हैं कि संगीतमाला के हर तीसरे साल में नए चेहरे अपनी मेहनत और अपने हुनर पे विश्वास रखते हुए कामयाबी की सीढ़ियों तक पहुँच रहे हैं।

तो इससे पहले इस गीत की बात करूँ आपको इसके पीछे के कलाकारों से मिलवाता चलूँ। अब देखिए संगीतमाला में  रनर्स अप रहे गीत के संगीतकार विशाल मिश्रा कानून की पढ़ाई करते हुए संगीत निर्देशक बन गए वहीं शान्तनु घटक तो कुछ दिन पहले तक एक बैंकर थे। सांख्यिकी के लिए नामी कोलकाता के Indian Statstical Institute से  पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले शांतनु ने पूरी तरह संगीत में अपना समय देने के पहले लगभग  एक दशक तक  क्रेडिट कार्ड कंपनी अमेरिकन एक्सप्रेस में कार्य किया। 

नौकरी करते हुए शांतनु ने नाटकों के भी काम किया। अभिनय के साथ साथ वो गाने का भी शौक़ रखते हैं।  ये उनकी काबिलियत का ही कमाल है कि जब पहली बार किसी हिंदी फिल्म के लिए उन्होंने कलम पकड़ी तो फिल्मफेयर से लेकर म्यूचिक मिर्ची एवार्ड तक में नामांकित हो गए। तकरीबन दो साल पहले वे शास्त्रीय गायिका रोंकिनी के संपर्क में आए और मिल जुल कर पुराने गीतों के कवर वर्जन  के साथ साथ  अपनी कृतियाँ यू ट्यूब के माध्यम से लोगों तो पहुँचाते रहे। तुम्हारी सुलु के निर्देशक सुरेश त्रिवेणी की जब उन पर नज़र पड़ी तो फिल्म के एक गीत का जिम्मा शांतनु को सौंपा जिसने एक बैंकर को उभरते हुए संगीतकार की श्रेणी में ला खड़ा किया। 

रोंकिनी, शान्तनु और अनूप

शांतनु ने बेहतरीन धुन बनाई। मुखड़ा भी गजब का लिखा पर गीत को इस स्तर पर पहुँचाने का श्रेय मैं रोंकिनी गुप्ता  को देना चाहूँगा जो इस तिकड़ी की सबसे मँजी हुई कलाकार हैं। शिल्पा राव और माधवन की तरह जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाली रोंकिनी ने विपणन और विज्ञापन की पढ़ाई के साथ साथ शास्त्रीय संगीत में संगीत विशारद की उपाधि भी ली है । शास्त्रीय संगीत की आरंभिक शिक्षा उन्होंने ग्वालियर घराने के चंद्रकांत आप्टे जी से ली। बाद में किराना घराने के उस्ताद दिलशाद खान और पंडित समरेश चौधरी भी उनके शिक्षक रहे। 

रोंकिनी गुप्ता

ये उनकी मार्केंटिंग का ही हुनर था कि उन्होंने इंटरनेट पर दो साल पहले किसी को उपहार में एक गाना भेंट करने के विचार को व्यवसायिक ज़ामा पहनाने की कोशिश की। गीत का विषय उपहार देने वाला बताता था और उस आधार पर गीत की रचना रोंकिनी करती थीं। आजकल वे जॉज़ और शास्त्रीय संगीत के फ्यूजन पर काम कर रही हैं। अगर आप उनकी गायी शास्त्रीय बंदिश के इंटरनेट पर उपलब्ध टुकड़े सुनेंगे तो उनकी गायिकी के कायल हो जाएँगे। फिल्म आँखो देखी में भी राग बिहाग पर आधारित एक शास्त्रीय बंदिश गाई थी। 

इस गीत में नाममात्र का संगीत संयोजन है और जो गिटार गीत के साथ बहता हुआ चलता है उस पर चलने वाली उँगलियाँ अनूप सातम की हैं। अनूप गिटार बजाने के साथ शांतनु की ही तरह ही गायिकी में भी प्रवीण हैं। 

तुम्हारी सुलु एक ऐसी गृहिणी की कहानी है जो घर के चारदीवारी से बाहर निकल कामकाजी महिलाओं की तरह ही नौकरी करना चाहती है पर शैक्षणिक योग्यता का ना रहना उसे मायूस करता रहता है। दोस्तो रिश्तेदारों के तानों को सहते हुए अपने पति के सहयोग से वो एक रेडियो स्टेशन में नौकरी करने लगती है। पति, बच्चे और नौकरी में सामंजस्य बैठाती और नित नयी चुनौतियों को स्वीकार करती सुलु की दाम्पत्य जीवन की गाड़ी झटकों के साथ चलती रहती है। अपने साथी के संग जीवन के उतार चढ़ावों को सफलतापूर्वक सामना करती सुलु के मनोभावों को व्यक्त करने के लिए शांतनु को  ये गीत लिखना था और उन्होंने ये काम बड़ी सहजता से किया भी।

शांतनु ने सुखों को धूप और परेशानियों को बादलों की लड़ियों जैसे रूपकों से मुखड़े में बेहद खूबसूरती से बाँधा है। किसी भी रिश्ते की डोर में आई कमज़ोरी को दूर करने का दारोमदार पति पत्नी दोनों पर होता है। जब दोनों मिलकर रिश्तों को रफू करते हैं तो रिश्ते की गाँठ ताउम्र चलती है। पहले अंतरे में जहाँ शांतनु सुलु के घर बाहर की परेशानियों से जूझने को कुछ यूँ शब्द देते हैं तेरी बनी राहें मेरी थीं दीवारें...उन दीवारों पे ही मैने लिख ली बहारें वहीं दूसरे अंतरे में साथ रहते हुए छोटी छोटी आधी पौनी खुशियों को बँटोरने की बात करते हैं।

पर ये रोंकिनी की आवाज़ का जादू है कि आप गीत की पहली पंक्ति से ही गीत के हो कर रह जाते हैं । अनूप का गिटार रोंकिनी की आवाज़ में ऐसा घुल जाता है कि उसका अलग से अस्तित्व पता ही नहीं चलता। आशा है रोंकिनी की इस जानदार आवाज़ का इस्तेमाल बाकी संगीत निर्देशक भी करेंगे। तो आइए सुनें और गुनें साल के इस सरताज गीत को।

कैसे कैसे धागों से बुनी है ये दुनिया
कभी धूप कभी बादलों की ये लड़ियाँ
कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ

तेरी बनी राहें मेरी थीं दीवारें
तेरी बनी राहें मेरी थीं दीवारें
उन दीवारों पे ही मैने लिख ली बहारें
शाम हुई तू जो आया सो गयी थी कलियाँ
फिर शाम हुई तू जो आया सो गयी थी कलियाँ
कुछ तूने सी है मैने की है रफ़ू ये डोरियाँ...

रे मा पा नि धा पा मा पा गा मा धा पा गा मा पा गा मा रे सा नि रे
गा मा पा गा मा रे सा नि रे सा

यूँ सीते सीते मीलों की बन गयी कहानी
यूँ सीते सीते मीलों की बन गयी कहानी
कुछ तेरे हाथों से कुछ मेरी ज़ुबानी
अब जो भी है ये आधा पौना है तो रंगरलियाँ
अब जो भी है ये आधा पौना है तो रंगरलियाँ
कुछ तूने सी है मैने की है रफ़ू ये डोरियाँ



वार्षिक संगीतमाला के इस सफ़र में साथ साथ चलने के लिए आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया।

वार्षिक संगीतमाला 2017

1. कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले  जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
 

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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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