शुक्रवार, फ़रवरी 16, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 13 : आतिश ये बुझ के भी जलती ही रहती है..ये इश्क़ है. Ye Ishq Hai

वार्षिक संगीतमाला की अगली पेशकश है फिल्म रंगून से। पिछले साल के आरंभ में आई ये फिल्म बॉक्स आफिस पर भले ही कमाल ना दिखा सकी हो पर इसका गीत संगीत बहुत दिनों तक चर्चा का विषय रहा था। यूँ तो इस फिल्म में तमाम गाने थे पर मुझे सूफ़ियत के रंग में रँगा और मोहब्बत से लबरेज़ ये इश्क़ है इस फिल्म का सबसे बेहतरीन गीत लगा।

गुलज़ार के लिखे गीतों को एक बार सुन कर आप अपनी कोई धारणा नहीं बना सकते। उनकी गहराई में जाने के लिए आपको उनके द्वारा बनाए लफ़्ज़ों के तिलिस्म में गोते लगाने होते हैं और इतना करने के बाद भी कई बार कुछ प्रश्न अनसुलझे ही रह जाते हैं। विगत कुछ सालों से उनकी कलम का पैनापन थोड़ा कम जरूर हुआ है पर फिर भी शब्दों के साथ उनका खेल रह रह कर श्रोताओं को चकित करता ही रहता है।



तो चलिए साथ साथ चलते हैं गुलज़ार की इस शब्द गंगा में डुबकी लगाने के लिए।  मुखड़े में गुलज़ार ने  'सुल्फे ' शब्द का इस्तेमाल किया है जिसका अभिप्राय हुक्के या चिलम में प्रयुक्त होने वाली तम्बाकू की लच्छियों से हैं। जलने के बाद भी सुलगते हुए ये जो धुआँ छोड़ती हैं वो मदहोशी का आलम बरक़रार रखने के लिए काफी होता है। गुलज़ार कहते हैं कि इश्क़ की फितरत भी कुछ ऐसी है जिसकी जलती चिंगारी रह रह कर हमारे दिल में प्रेम की अग्नि को सुलगती रहती है।

ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..
ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..
सूफी के सुल्फे की लौ उठ के कहती है 
आतिश ये बुझ के भी जलती ही रहती है
ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..ये इश्क़ है..

सदियों से बहती नदी को गुलज़ार की आँखें उस प्रेमिका के तौर पे देखती हैं जो अपने प्रेमी रूपी किनारों पर सर रखकर सोई पड़ी है। यही तो सच्चा इश्क़ है जो तन्हाई में भी अपने प्रिय की यादों में रम जाता है। अपने इर्द गिर्द उसकी चाहत की परछाई को बुन लेता है। उन रेशमी नज़रों  के अंदर के राज अपनी आँखों से सुन लेता है। इसलिए गुलज़ार लिखते हैं

साहिल पे सर रखके, दरिया है सोया है 
सदियों से बहता है, आँखों ने बोया है
ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..
तन्हाई धुनता है, परछाई बुनता है 
रेशम सी नज़रों को आँखों से सुनता है
ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..ये इश्क़ है...

आख़िर इश्क़ के मुकाम क्या हैं? प्रेम की परिणिति एक दूसरे में जलते रहने के बाद उस ईश्वर से एकाकार होने की है जिसने इस सृष्टि की रचना की है। इसीलिए गुलज़ार मानते हैं कि इश्क़ की इस मदहोशी के पीछे उसका सूफ़ी होना है। इसलिए वो कभी रूमी की भाषा बोलता है तो कभी उनके भी गुरु रहे तबरीज़ी की।

सूफी के सुल्फे की लौ उट्ठी अल्लाह हू.
अल्लाह हू अल्लाह हू, अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हू
सूफी के सुल्फे की लौ उट्ठी अल्लाह हू.
जलते ही रहना है बाकी ना मैं ना तू

ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..
बेखुद सा रहता है यह कैसा सूफी है 
जागे तो तबरेज़ी बोले तो रूमी है
ये इश्क़ है.. ये इश्क़ है..ये इश्क़ है...

विशाल भारद्वाज के इस गीत में नाममात्र का संगीत संयोजन है। गिटार और बाँसुरी के साथ अरिजीत का स्वर पूरे गीत में उतार चढ़ाव के साथ बहता नज़र आता है। गायिकी के लिहाज़ से इस कठिन गीत को वो बखूबी निभा लेते हैं। एलबम में इस गीत का एक और रूप भी है जिसे रेखा भारद्वाज जी ने गाया है पर अरिजीत की आवाज़ का असर कानों में ज्यादा देर तक रहता है। तो आइए सुनें रंगून फिल्म का ये नग्मा


वार्षिक संगीतमाला 2017

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6 टिप्पणियाँ:

yadunath on फ़रवरी 16, 2018 ने कहा…

गीत कठिन, गायन कठिन, गायक अरिजीत मेरा चहेता। इस पर ध्यान आकर्षित कराने का श्रेय तुम्हें। गीतों की इतनी सुंदर,सहज व्याख्या और भावार्थ लिखने की तुम्हारी शैली गीत की आत्मा तक सुगमता से पहुंचने को विवश कर देती है।यह गीत छायावादी युग के कवियों की याद दिलाता है। मुझे रुचिकर लगा। धन्यवाद मनीष। अगले की प्रतीक्षा में,------

Manish Kumar on फ़रवरी 16, 2018 ने कहा…

गीत की भावनाओं को आप तक पहुँचा पाया जान कर खुशी हुई। अगला गीत जिस फिल्म से है उसके तार आप के शहर से जुड़े हैं। :)

Sumit on फ़रवरी 20, 2018 ने कहा…

Wah!

Manish Kumar on फ़रवरी 20, 2018 ने कहा…

@Sumit Nice toknowthat u likedthis poeticnumber from Gulzar !

Unknown on फ़रवरी 21, 2018 ने कहा…

अरिजीत एक बार फिर से जादू बिखेरते हुए.. कमाल की गायिकी..
बहुत खूबसूरत व्याख्या मनीष जी..गीत के बोल जटिल है, इस गीत की व्याख्या अगर आपने नहीं की होती तो यहाँ गुलज़ार साहब को समझना बहुत कठिन होता..

Manish Kumar on फ़रवरी 22, 2018 ने कहा…

स्वाति :गुलज़ार की सोच तो ख़ैर वही जानते होंगे। मुझे तो जितना समझ आया लिखा। मेरी व्याख्या गीत से आपको जोड़ने में सफल हुई जान कर अच्छा लगा।

 

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