जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला की अगली पेशकश है फिल्म पंगा से। कंगना रणौत की ये फिल्म लगभग एक साल पहले पिछली जनवरी में प्रदर्शित हुई थी। शंकर अहसान लॉए द्वारा संगीत निर्देशित इस फिल्म के गीत जावेद अख्तर ने लिखे थे। जावेद साहब जैसे मँजे हुए गीतकार आजकल फिल्मों के लिए कम ही लिखते हैं और इसीलिए जब उनकी उपस्थिति किसी फिल्म में देखता हूँ तो उनके लिखे बोलों पर मेरी खास नज़र रहती है।
पंगा एक ऐसी महिला कबड्डी खिलाड़ी की कहानी थी जो शादी और उसके बाद मातृत्व की जिम्मेदारियाँ सँभालने के लिए खेल से जुड़ा अपना सफल कैरियर छोड़ देती है पर ये बात उसे दिल में कहीं ना कहीं कचोटती रहती है कि वो इस खेल के माध्यम से जिस मुकाम पर जाना चाहती थी, वहाँ नहीं पहुँच पाई।
जावेद साहब को नायिका के इन्हीं दबे हुए अरमानों को ध्यान में रखते हुए एक गीत लिखना था और उन्होंने एक बड़ा ही प्यारा गीत रचा जिसका नाम था जुगनू। मुखड़े में देखिए किस तरह नायिका के मन में चल रही उधेड़बुन का वो खाका खींचते हैं..दो रंगो में रँगी है, दो रूप में ढली...ऐसी हैं ज़िंदगी सबकी...मायूसी भी है थोड़ी, अरमान भी कई....ऐसी है ज़िंदगी सबकी...गहरे अँधेरों… में भी..पल पल चमकते हैं जुगनू से जो....अरमान हैं वो तेरे..
जीवन का यथार्थ समेट लिया जावेद जी ने इन पंक्तियों में। जीवन में परिस्थितियाँ कैसी भी हों हमारे मन में कुछ अरमान हर पल मचलते ही रहते हैं। बिना किसी सपने के ज़िदगी के रंग फीके नहीं हो जाएँगे?
अगले अंतरे में जो कि फिल्म में शामिल नहीं हुआ जावेद साहब की पंक्तियाँ फिर वाह वाह करने को मजबूर करती हैं। गीत के शानदार बोलों को शंकर महादेवन के साथ साथ इंडियन आइडल में हर किसी के चहेते रहे सनी हिंदुस्तानी की आवाज़ का भी साथ मिला है। शंकर महादेवन जिस गीत को भी गाते हैं उसमें शास्त्रीयता का पुट जरूर भरते हैं। गीत सरगम के बाद एक छोटे आलाप से शुरु होता है और फिर शंकर की आवाज़ में गीत के शब्दों का जादू मन में उतरने लगता है।
दो रंगो में रँगी है, दो रूप में ढली ऐसी हैं ज़िंदगी सबकी मायूसी भी है थोड़ी, अरमान भी कई ऐसी है ज़िंदगी सबकी गहरे अँधेरों… में भी पल पल चमकते हैं जुगनू से जो अरमान हैं वो तेरे.. जुगनू जुगनू जुगनू जैसे हैं जुगनू जैसे हैं अरमान अरमान.. जुगनू जुगनू जुगनू जैसे हैं जुगनू जैसे हैं अरमान अरमान हो.. अरमाां… नींदों के देश में है सपनो का इक नगर जहाँ हैं डगर डगर जुगनू सौ आँधियाँ हैं चलती साँसों में रात भर बुझते नही मगर जुगनू गहरे अँधेरों… में भी पल पल चमकते हैं जुगनू से जो अरमान हैं वो तेरे..
जुगनू जुगनू जुगनू ...हो.. अरमाां…
लम्हा बा लम्हा, लम्हा बा लम्हा कुछ ख़्वाब तो होते हैं रफ़्ता बा रफ़्ता हम, रफ़्ता बा रफ़्ता बेताब तो होते हैं…
ओ.. तू माने चाहे ना माने तू दिल है अगर तो है आरज़ू आँखों के प्याले खाली नहीं कोई तमन्ना होगी कहीं गहरे अँधेरों… में भी पल पल चमकते हैं जुगनू से जो अरमान हैं वो तेरे.. जुगनू जुगनू जुगनू ...हो.. अरमाां…
भटिंडा के रेलवे स्टेशन पर बूट पालिश करने वाले सनी मलिक उर्फ सनी हिंदुस्तानी की कहानी तो इंडियन आइडल के माध्यम से पिछले साल पूरा भारत जान ही गया है इसलिए उसे मुझे दोहराने की जरूरत नहीं। इस गीत में शंकर महादेवन जैसे कमाल के गायक के सामने उनकी आवाज़ की चमक थोड़ी फीकी जरूर लगी पर उन्होंने अपनी झोली में आए गीत के हिस्से बखूबी निभाए। गीत में कोरस व ताली, ढोलक, तबले के साथ हारमोनियम का बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है। हारमोनियम की मधुर धुन आप तक पहुँचाई है वादक आदित्य ने।
तो आइए सुनते हैं पहले इस गीत का आडियो वर्जन जिसमें इसके दोनों अंतरे हैं।
वार्षिक संगीतमाला में अब है शुरुआती पन्द्रह गीतों की बारी। यकीन कीजिए यहाँ से पहली पॉयदान तक का सफ़र बड़ा मज़ेदार होने वाला है। पन्द्रहवीं पॉयदान का गीत वो जिसे एक बार सुनकर ही आप थिरकने पर मजबूर हो जाएँगे। ये गीत है फिल्म अंग्रेजी मीडियम का जो अभिनेता इरफान खान की आख़िरी फिल्म थी। इरफान इस फिल्म में एक ऐसे पिता का रोल निभा रहे थे जिसकी बेटी का सपना हर हाल में विदेश जाकर पढ़ाई करने का है।
मार्च में सिनेमा हॉल और फिर कोरोना काल में फिर से ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ हुई ये फिल्म अपनी पूर्ववर्ती हिंदी मीडियम की तरह उतनी सफल नहीं हो पाई पर इसके कुछ गाने खासे लोकप्रिय हुए जिसमें कुड़ी नूँ नचने दे का जलवा अपनी आकर्षित करती धुन और गीत में निहित संदेश की वज़ह से फिल्म के प्रदर्शित होने के महीनों बाद भी बरक़रार है।
ये गीत अंग्रेजी मीडियम की नायिका का ही नहीं बल्कि उन सारी लड़कियों की आवाज़ बन गया जिन्होंने अपने जीवन के लिए कुछ सपने देखे हैं और उनको मूर्त रूप देने के लिए अपनी सोच और मन मुताबिक राह चुनना चाहती हैं। अंग्रेजी मीडियम के इस गीत को संगीतबद्ध किया सचिन जिगर की जोड़ी ने।
सचिन जिगर सिमरन बदलापुर, भूमि, हैप्पी एंडिंग, मेरी प्यारी बिंदु, शुद्ध देशी रोमांस और शोर इन दि सिटी जैसी फिल्मों के गीतों के ज़रिए पिछले एक दशक से एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में दस्तक देते रहे हैं। अंग्रेजी मीडियम के इस गीत को उन्होंने एक ऐसी धुन में ढाला है जिसे एक बार सुनकर ही मन झूम उठता है। जिगर की पत्नी और गीतकार प्रिया सरैया ने पंजाबी बोलों की सरलता बनाए रखी है ताकि उसके भाव आम जनता को भी आसानी से समझ आ सकें। लड़कियों को अपने मन की करने की आज़ादी के लिए प्रेरित करते इस गीत में अपनी दमदार आवाज़ से उर्जा भरी है विशाल ददलानी ने।
हो मीठी-मीठी सी ये मुनिया सर पे डाले है ये चुनिया क्यूँ..हाँ क्यूँ हो सोणी-सोणी सी कुड़ी नूँ मौज में रहने दे ना दुनियाँ क्यूँ, हाँ दुनियाँ क्यूँ है किन्नी शानदार कुड़ी ये कर देगी कमाल इसे झूमने दे अपनी बीट ते, कुड़ी नूँ नचने दे, हाँ नचने दे तू आज लगाने दे ठुमके हाँ जमके कुड़ी नु नचने दे हाँ नचने दे तू सारियाँ फ़िकरां नूँ छड के बन-ठन के कुड़ी नूँ नचने दे, नचने दे हाँ नचने दे, नचने दे तू आज लगाने दे ठुमके हाँ जमके, कुड़ी नूँ नचने दे...बन-ठन के
हो वड्डी-वड्डी बात तेरी छोटी-छोटी सोच क्यूँ है जी, ओहो पाजी हो उखड़े-उखड़े क्यूँ खड़े जी हँस दो तो, हँस देगी दुनिया भी, हाँ हाँ हाँ जी हो आये जो ऑन द फ्लोर कुड़ी तो खूब मचाये शोर तू भी झूम लेना इसकी बीट पे कुड़ी नूँ नचने दे...बन-ठन के
इस गीत की एक खास बात ये है कि इसमें एक दो नहीं बल्कि आठ अभिनेत्रियाँ आपको एक ही गीत में नज़र आएँगी। इन नामी सिनेतारिकाओं द्वारा लॉकडाउन में अपने अपने घरों के आसपास शूट किए गए टुकड़ों को निर्देशक होमी अदजानिया ने इस खूबसूरती से पिरोया है कि देखने वाला गीत गुनगुनाने के साथ इन नायिकाओं के साथ ही थिरकने पर मजबूर हो जाता है। आलिया भट्ट, अनुष्का शर्मा, कैटरीना कैफ़, अनन्या पांडे, जान्ह्वी कपूर, कियारा आडवाणी, कृति सैनन के साथ राधिका मदान ने अपने रचनात्मक नृत्य के ज़रिये इस गीत को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
आशा है ये गीत सुन और देख कर आप भी उतने ही आनंदित होंगे जितना मैं हुआ हूँ..
वार्षिक संगीतमाला का आज दूसरा चरण पूरा हो रहा है यानी साल के पच्चीस शानदार नग्मों में दस गीतों के बारे में आप जान चुके हैं। अब तक आपने गीतमाला में रूमानियत भरे कुछ हल्के फुल्के तो कुछ संज़ीदा गीत सुने। आज थोड़ा मूड बदलने की बारी है। एक उदास सा गीत है सोलहवीं पॉयदान पर जिसे फिल्म मी रक़्सम के लिए लिखा, संगीतबद्ध और गाया है युवा संगीतकार रिपुल शर्मा ने।
अगर आप इस फिल्म के थोड़े अलग से नाम की वज़ह जानना चाह रहे हों तो बता दूँ कि मी रक़्सम का अर्थ है मैं नृत्य करूँगी। ये एक छोटी सी बच्ची की कहानी है जो मुस्लिम घर में पैदा होने के बावज़ूद मन में भरतनाट्यम में महारत हासिल करने का सपना पाले बैठी है। बाप दर्जी है। पैसों की भी तंगी है पर पिता अपनी बेटी के अरमानों को पूरा करने के लिए पूरे समाज से टकराने के लिए तैयार है।
इस फिल्म को बनाया है कैफ़ी आज़मी के बेटे बाबा आज़मी ने। ऐसा कहते हैं कि कैफ़ी के मन में ये बात थी कि आज़मगढ़ जिले के उनके पैतृक गाँव मिजवां को केंद्र में रखते हुए एक फिल्म बनाई जाए और इसीलिए मी रक्सम की शूटिंग वहाँ हुई। फिल्म पिछले साल अगस्त में रिलीज़ हुई और समीक्षकों द्वारा काफी सराही गयी।
फिल्म में दो ही गीत है जिसकी जिम्मेदारी रिपुल को सौंपी गयी। ये जो शहर है समाज के उस बदलते स्वरूप को उभारता है जहाँ घृणा, ईर्ष्या और एक दूसरे के प्रति द्वेष है, जहाँ सच और अच्छाई मुँह छुपाए बैठी हैं, जहाँ साँसों में एक घुटन है और लोगों के चेहरों से मुस्कुराहट गायब है।
ये जो शहर है जहाँ तेरा घर है
यहाँ शाम और रात भी दोपहर है ख्वाबों के जुगनू जल बुझ रहे हैं हवाओं में फैला ये कैसा ज़हर है यहाँ रोज़ थोडा सा मरते हैं हम हाँ आज फिर दिल से झगड़ा किया हाँ आज फिर थोड़ा सोए हैं कम हाँ आज दिल से झगड़ा किया हाँ आज फिर थोड़ा रोए हैं हम
यहाँ आदमी आदमी से ख़फा है यहाँ जिस्म से रुह क्यूँ लापता है कोई ना कभी हाल ना पूछे किसी का यहाँ भीड़ सी हर तरफ बेवज़ह है यहाँ शक़्ल में बादलों की धुँआ है यहाँ साँस भी लें तो घुटता है दम हाँ आज फिर दिल से झगड़ा किया .. यहाँ बचपनों सी खुमारी नहीं है यहाँ भूख पे भी उधारी नहीं है बदन तोड़ देगी सुकूँ छीन लेगी यहाँ सच सी कोई बीमारी नहीं है यहाँ कोई क्यूँ मुस्कुराता नहीं है यहाँ आदमी से परेशाँ है ग़म हाँ आज फिर दिल से झगड़ा किया
रिपुल ने अब तक कई वेब सिरीज़ और कुछेक फिल्मों में संगीत देने का काम किया है पर मी रक़्सम में उन्होंने आपके काम के द्वारा अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया है। ये गीत अगर इस गीतमाला में अपना स्थान बना पाया है तो इसकी एक बड़ी वज़ह इसके गहरे बोल और इसकी प्यारी धुन है। रिपुल की आवाज़ भी अच्छी है पर कहीं कहीं गीत में वो उखड़ती नज़र आती है। बेहतर होता कि इसे वो अन्य स्थापित गायकों से गवाते। तो जरूर सुनिए और देखिए इस गीत को
विधु विनोद चोपड़ा अपनी फिल्मों के खूबसूरत फिल्मांकन और संगीत के लिए जाने जाते रहे हैं। बतौर निर्देशक परिंदा, 1942 A love story, करीब और मिशन कश्मीर का संगीत काफी सराहा गया था। इस साल थियेटर में रिलीज़ उनकी फिल्म शिकारा के गीत उतने तो सुने नहीं गए पर अगर आपको शांत बहता संगीत पसंद हो तो ये एल्बम आपको एक बार जरूर सुनना चाहिए। अगर मैं अपनी कहूँ तो मुझे इस संगीत एल्बम में ऐ वादी शहज़ादी... की आरंभिक कविता जिस अंदाज़ में पढ़ी गयी वो बेहद भायी पर जहाँ तक पूरे गीत की बात है तो इस गीतमाला में इस फिल्म का एक ही गीत शामिल हो पाया और वो है श्रद्धा मिश्रा और पापोन का गाया युगल गीत मर जाएँ हम..
मर जाएँ हम एक प्यारा सा प्रेम गीत है ये जो संदेश शांडिल्य की लहराती धुन और झेलम नदी में बहते शिकारे के बीच इरशाद कामिल के शानदार बोलों की वज़ह से मन पर गहरा असर छोड़ता है। दरअसल जब आप अपने अक़्स को भूल कर किसी दूसरे व्यक्तित्व की चादर को खुशी खुशी ओढ़ लेते हैं तभी प्रेम का सृजन होता है। इरशाद इन्ही भावनाओं को पहले अंतरे में उभारते हैं।
गीत के दूसरे अंतरे में उनका अंदाज़ और मोहक हो जाता है। अब इन पंक्तियों की मुलायमियत तो देखिए। कितने महीन से अहसास जगाएँ हैं इरशाद कामिल ने अपनी लेखनी के ज़रिए... तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,....है तेरी पलकों पे फूल महके,...मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,...होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,...तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ
संगीत संयोजन में संदेश शांडिल्य ने गिटार और ताल वाद्यों के साथ संतूर का प्रयोग किया है। गीत का मुखड़ा जब संतूर पर बजता है तो मन सुकून से भर उठता है। संतूर पर इस गीत में उँगलिया थिरकी हैं रोहन रतन की।
जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम,
जो एक पल तुमसे दूर जाएँ तो मर जाएँ हम,
तू दरिया तेरे साथ ही भीगे बह जाएँ हम,
जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम...
मैं तेरे आगे बिखर गयी हूँ,
ले तेरे दिल में उतर गयी हूँ,
मैं तेरी बाँहों में ढूँढूँ खुद को,
यहीं तो थी मैं किधर गयी हूँ,
खो गयी है तू मुझमें, आ गयी तू वहाँ,
मिल रहे हैं जहाँ पे, ख्वाब से दो जहां,
जो एक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम..
तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,
मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,
है तेरी पलकों पे फूल महके,
मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,
होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,
तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ
जो एक पल तुमको ना देखें... तो मर जाएँ हम,
तू दरिया तेरे साथ ही भीगे..
तू नदिया तेरे साथ ही भीगें, बह जाएँ हम
नवोदित गायिका श्रद्धा की आवाज़ की बनावट थोड़ी अलग सी है जो कि आगे के लिए संभावनाएँ जगाती हैं जबकि पापोन तो हमेशा की तरह अपनी लय में हैं। शिकारा में इस गीत को फिल्माया गया है आदिल और सादिया की युवा जोड़ी पर..
वार्षिक संगीतमाला की अठारह वीं पायदान पर है एक बार फिर सोनू निगम की आवाज़। फिल्म एक बार फिर से चमनबहार। इस फिल्म के एक अन्य गीत के बारे में लिखते हुए मैं बता ही चुका हूँ कि चमनबहार एक पान की दुकान चलाने वाले नवयुवक की इकतरफा प्रेम कहानी है। छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे लोरमी में रची बसी इस कहानी को इसी राज्य के बिलासपुर शहर से ताल्लुक रहने वाले अपूर्व धर हैं जो प्रकाश झा की फिल्मों में कई बार सहायक निर्देशक की भूमिका निभा चुके हैं।
इकतरफा प्रेम तो आप जानते ही है कि ख़्वाबों खयालों में पलता है। निर्देशक अपूर्व धर (Apurva Dhar Badgayin) जो इस गीत के गीतकार भी हैं ने इस गीत के माध्यम से नायक के सपनों की मीठी उड़ान भरी है। ज़ाहिर सी बात है कि जब सैयाँ पानवाले हों तो उनकी छबीली जर्दे की हिचकी और गुलकंद के तोले जैसी ही थोड़ी तीखी थोड़ी मीठी होगी। इसीलिए गीत की शुरुआत वे कुछ इन शब्दों से करते हैं । 😀😀😀
दो का चार तेरे लिए सोलह तू जर्दे की हिचकी,गुलकंद का तोला तू मीठा पान मैं कत्था कोरिया देखा जो तुझको मेरा दिल ये बोला
दूसरे अंतरे में भी अपूर्व की लेखनी नायक द्वारा नायिका को कई अन्य मज़ेदार बिंबों में बाँधती नज़र आती है।
तू राज दुलारी मैं शंभू भोला तू मन मोहिनी मेरा बैरागी चोला तू तेज़ चिंगारी मैं चरस का झोला तू मीठी रूहफज़ा मैं बर्फ का गोला उड़ती है खुशबू किमामी होता नशा जाफरानी मैं बेतोड़ दर्द की कहानी तू ही तो है मेरा मलहम यूनानी दो का चार तेरे लिए गल्ला तू ही तो अल्लाह तू ही मोहल्ला दो का चार....
गीत का संगीत रचा है अंशुमन मुखर्जी ने। गीत की शुरुआत और खासकर अंतरों के बीच में तार वाद्यों के साथ वॉयलिन का प्रयोग कर्णप्रिय लगता है। गीत के फिल्मांकन में नायक की भूमिका में जीतेन्द्र कुमार का अभिनय किसी भी आम से लड़के को इस इकतरफा प्रेम कहानी से जोड़ेगा। सोनू की आवाज़ का सुरीलापन तो आकर्षित करता ही है, साथ ही जिस तरह वो गीत की भावनाओं में रम कर गाते हैं वो भी काबिलेतारीफ है।
तो आइए सुनें सोनू निगम की आवाज़ में ये चुलबुला नग्मा
आज जिस गीत को आपके सामने ले के आ रहा हूँ वो ज्यादातर लोगों के लिए अनजाना ही होगा। दरअसल ये एक ऐसा गीत है जो उस दौर के गीत संगीत की याद दिला आता है जिसे फिल्म संगीत का स्वर्णिम काल कहा जाता है। श्री वल्लभ व्यास के लिखे इस गीत के बोल थोड़े अटपटे से हैं पर उसे स्वानंद किरकिरे अपनी खुशमिजाज़ आवाज़ से यूँ सँवारते हैं कि उन्हें सुनते सुनते इस गीत को गुनगुनाने का दिल करने लगता है। वही ठहराव और वही मधुरता जो आजकल के गीतों में बहुत ढूँढने से मिलती है।
ये गीत है फिल्म सीरियस मेन का जो नेटफ्लिक्स पर पिछले अक्टूबर में रिलीज़ हुई थी। वैज्ञानिकों के बीच छोटे पद पर काम करते हुए अपने को कमतर माने जाने की कसक नायक के दिलो दिमाग में इस कदर घर कर जाती है कि वो प्रण करता है कि अपने बच्चे को ऐसा बनाएगा कि सारी दुनिया उसकी प्रतिभा को नमन करे। पर इस काली रात से सुबह के उजाले तक पहुँचने के लिए वो अपने तेजाबी झूठ का ऐसा जाल रचता जाता है कि गीतकार को कहना पड़ता है...रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद.... तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद
इस गीत की मूल धुन का क्रेडिट गीत में फ्रांसिस मेंडीज़ को दिया गया है पर इसे इस रूप में लाने का श्रेय है असम से ताल्लुक रखने वाले अनुराग सैकिया को जो पहले भी अनुभव सिन्हा की फिल्मों में अपने बेहतरीन काम से हिंदी फिल्म जगत में अपना सिक्का जमा चुके हैं। प्रवासी मजदूरों पर गीतकार सागर के लिखे लोकप्रिय गीत मुंबई में का बा का संगीत निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। इस गीत के संगीत संयोजन में उन्होंने गिटार और बैंजो के आलावा पियानिका और मेंडोलिन का प्रयोग किया है। इन वाद्य यंत्रों पर उँगलियाँ थिरकी हैं सोमू सील की।
रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद ता रा रा रा.रा रा ... रा रा रा.रा रा .
अब खेलेगा खेल विधाता, चाँद बनेगा बॉल, बॉल... सभी लड़कियाँ सीटी होंगी सारे शहर को कॉल खेल में गड़बड़ नहीं चलेगी, सीटी हरदम बजी रहेगी जारा ध्यान से इसे बजाना, खुल जाएगी पोल
हम आवारा और लफंगे हैं, लेते सबसे पंगे हैं लेकिन पंगे सँभल के लेना, वर्ना पड़ जाएगा लेने को देना रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद...
तो आइए सुनें स्वानंद की आवाज़ में सीरियस मेन के इस गीत को..
है ना मजेदार गाना? वैसे अगर आप में से किसी ने इसकी मूल धुन सुनी हो तो मुझे जरूर बताएँ।
वार्षिक संगीतमाला अब अपने दूसरे चरण यानी शुरु के बीस गानों के पड़ाव तक पहुँच चुकी है और इस पड़ाव से आगे का रास्ता दिखा रहे हैं सोनू निगम। सोनू निगम ज्यादा गाने आजकल तो नहीं गा रहे पर जो भी काम उन्हें मिल रहा है वो थोड़ा अलग कोटि का है। पियानो और की बोर्ड पर महारत रखने वाले संगीतकार मिथुन शर्मा को ही लीजिए। मेरी संगीतमाला में पिछले पन्द्रह सालों से उनके गीत बज रहे हैं पर ये पहला मौका है उनकी बनाई किसी धुन को सोनू निगम की आवाज़ का साथ मिल रहा है।
पिछले साल ये मौका आया फिल्म ख़ुदाहाफिज़ में। डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई इस फिल्म का संगीत भी हैप्पी हार्डी एंड हीर की तरह काफी प्रभावशाली रहा। इस फिल्म के तीन गाने इस गीतमाला में शामिल होने की पंक्ति में थे पर इसी फिल्म का अरमान मलिक का गाया हुआ गाना मेरा इंतज़ार करना बड़े करीब से अंतिम पच्चीस की सूची के बाहर चला गया।
बहरहाल जहाँ तक इस गीत में सौनू और मिथुन की पहली बार बनती जोड़ी का सवाल है तो लाज़िमी सा प्रश्न बनता है कि आख़िर मिथुन को इतनी देर क्यूँ लगी सोनू को गवाने में ? मिथुन का मानना है कि सोनू निगम तकनीकी रूप से सबसे दक्ष गायक हैं। उनकी प्रतिभा से न्याय करने के लिए मिथुन को एक अच्छी धुन की तलाश थी जो ख़ुदाहाफिज़ के गीत 'आख़िरी कदम तक' पर जाकर खत्म हुई।
मिथुन ने जब सोनू को इस गीत को गाने का प्रस्ताव दिया तो वो एक बार में ही सहर्ष तैयार हो गए। वैसे तो मिथुन के संगीतबद्ध ज्यादातर गीत सईद क़ादरी लिखते आए हैं पर इधर हाल फिलहाल में अपने गीतों को लिखना भी शुरु कर दिया है। शायद आशिकी 2 में उनके लिखे गीत क्यूँकि तुम ही हो की सफलता के बाद उन्हें अपनी लेखनी पर ज्यादा आत्मविश्वास आ गया हो। अब दिक्कत सिर्फ ये थी कि सोनू निगम लॉकडाउन में दुबई में डेरा डाले थे जबकि मिथुन मुंबई में। पर तकनीक के इस्तेमाल ने इन दूरियों को गीत की रिकार्डिंग में आड़े नहीं आने दिया।
ख़ुदाहाफिज़ एक ऐसे मध्यमवर्गीय युवा दम्पत्ति की कहानी है जो शादी के बाद देश में बेरोज़गार हो जाने पर विदेश में नौकरी कर करने का फैसला लेता है। कथा में नाटकीय मोड़ तब आता है जब नायिका परदेश में गुम हो जाती है। पर नायक हिम्मत नहीं हारता और अपने जी को और पक्का कर जुट जाता है अपनी माशूका की खोज में। उसे बताया जाता है कि उसका क़त्ल हो चुका है। साथ साथ जीवन और मरण का जो सपना नायक ने देख रखा था वो पल में चकनाचूर हो जाता है। अपनी पत्नी की अंतिम यात्रा में नायक के मन में उठते मनोभावों को मिथुन कुछ इस तरह शब्दों में ढालते हैं।
नज़रों से करम तक
ईमां से धरम तक, हक़ीक़त से लेकर भरम तक
दुआ से असर तक, ये सारे सफ़र तक
फरिश्तों के रोशन शहर तक, आँसू से जशन तक जन्मों से जनम तक, सेहरे को सजा के कफ़न तक तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ....
ये रात काली ढल जाएगी उल्फ़त की होगी फिर से सुबह जिस देश आँसू ना दर्द पले है वादा मैं तुझसे मिलुँगा वहाँ ज़ख़्मों से मरहम तक, जुदा से मिलन तक डोली में बिठा के दफ़न तक तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ...
गीत की शुरुआती पंक्तियाँ वाकई बेहद संवेदनशील बन पड़ी हैं। शब्दों के अंदर बिखरे भावनाओं के सैलाब को सोनू निगम ने अपनी आवाज़ में इस तरह एकाकार किया कि नायक का दर्द सीधे दिल में महसूस होता है। सोनू की सशक्त आवाज़ के पीछे मिथुन ने नाममात्र का संगीत संयोजन रखा है जो उनके प्रिय पियानो तो कभी गिटार के रूप में प्रकट होता है। अगर आप सोनू निगम की आवाज़ और गायिकी के प्रशंसक हैं तो ये गीत अवश्य पसंद करेंगे।
वैसे सोनू निगम की आवाज़ से इस संगीतमाला में एक बार फिर आगे भी मुलाकात होगी हालांकि वो गीत बिल्कुल अलग मूड लिये हुए है।
वार्षिक संगीतमाला की इक्कीसवीं पायदान का गीत वो जिसमें छत्तीसगढ़ी लोक गीत की मिठास है। इस गीत को गाया है रोमी ने लिखा और धुन बनाई अमित प्रधान ने। चमनबहार के इस गीत को सुनना मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य रहा क्यूँकि बहुत दिनों बाद मुखड़े के पहले हारमोनियम की मधुर धुन सुनाई दी इस गीत में। वैसे भी ताल वाद्यों के साथ हारमोनियम हमारे लोकगीतों की जान होता आया है।
चमनबहार इस साल नेटफ्लिक्स पर जून में रिलीज़ हुई। ये फिल्म एक छोटे शहर में पान की दुकान चलाने वाली बिल्लू की कहानी है। बिल्लू जी वनप्रहरी की नौकरी पर लात मात कर अपना ड्रीम जॉब पान की दुकान खोल लेते हैं। दुकान खुल तो जाती है पर चलती नहीं और बिल्लू बेचारे अपनी नीरस चलती ज़िदगी से अनमने से हो जाते हैं कि अचानक उनकी तक़दीर का दरवाजा खुलता है और दुकान के सामने के घर में आ जाती है एक किशोर कन्या जिसपर बिल्लू क्या पूरा शहर ही फिदा हो जाता है। मतलब एक ओर तो बिल्लू की दुकान सामने लगने वाली अड्डेबाजी की वज़ह से चकाचक चलने लगती है तो दूसरी ओर उन दिल भी फकफकाने लगता है।
पूस के जाड़ा में आम फल जाए सपना मा जब गोरिया आए रे सुंदरी भंवरा जैसे मन हर घुमरे आंकी चांकी सब लागे रे बाजे दिल धुन धुन दिल धुन धुन धुन धुन बाजे रे दिल धुन धुन धुन धुन धुन धुन धुन धुन धुन धुन धुन धुन बाजे रे ओ..सतरंगी सपना, सतरंगी सपना आ सतरंगी सपना जब आँखी में आए रंगी रंगी सब लागे रे जेठ महीना फागुन जस लागे धुन धुन धुन धुन मांदर बाजे रे सतरंगी सपना जब आँखी में आए रंगी रंगी सब लागे रे परसा के पेड़ से टेसु हा झड़ते जादू जादू सब लागे रे धिन धिन फक फक धिन धिन फक फक भाग हर मोर बोले रे दिल धुन धुन धुन धुन बाजे रे
बिल्लू की इसी मनोदशा को संगीतकार और गीतकार की दोहरी भूमिका निभाते हुए अमित प्रधान ने निर्देशक अपूर्वा धर बडगायन के साथ (जो कि ख़ुद छत्तीसगढ़ के हैं) इस गीत में उतारने की कोशिश की है। गीत में इकतरफे प्रेम का उल्लास फूट फूट पड़ता है। इसीलिए नायक को पूस के जाड़े में भी आम फले दिखते हैं और परसा के पेड़ से टेसू की बहार आई लगती है। 😀
आज के इस पाश्चात्य माहौल में संगीत के सोंधेपन के साथ जब देशी बोली की छौंक सुनने को मिलती है तो आनंद दुगना हो जाता है। प्रदीप पंडित ने पूरे गीत में हारमोनियम पर अपना कमाल दिखलाया ही है पर गीत की शुरुआत में उनकी बजाई धुन कानों को मस्ती भरे गीत वाले मूड के लिए तैयार कर देती है।
बतौर गायक रोमी की गायिकी का मैं उनके फिल्लौरी के लिए गाए गीत साहिबा से मुरीद हो चुका हूँ। यहाँ भी उन्होंने अपनी छवि पर दाग नहीं लगने दिया है। तो आइए आज आपको सुनाते हैं ये गीत इसके बोलों के साथ। मेरा यकीं है कि इसे सुन कर आपका दिल भी धुन धुनाने लगेगा।
वार्षिक संगीतमाला की आज की पायदान पर जो गीत है उसे अगर यू ट्यूब की मानें तो उसे पिछले साल करोड़ों लोगों ने सुना। इस साल की संगीतमाला में शामिल होने वाला ये हैप्पी हार्डी एंड हीर का दूसरा गाना है। हम भारतीयों को ये हमेशा बड़ी खुशी देता है कि कोई आम सा व्यक्ति अपनी प्रतिभा के बल पर रातों रात स्टार बन जाए। ऐसे शख़्स के प्रति जम के प्यार उड़ेलना हमारी फितरत है।
कहाँ रानू मंडल बंगाल के राणाघाट स्टेशन पर इक प्यार का नग्मा जैसे गीत सुना कर दान में जो भी मिलता उससे अपनी जीविका चलाती थीं और अपने वीडियो के वायरल होने के बाद कहाँ वो सीधे मायानगरी मुंबई में हीमेश रेशमिया जैसे संगीतकार के लिए गाने रिकार्ड करने लगीं।
हीमेश की धुनें ऐसे भी कर्णप्रिय होती हैं उस पर रानू की आवाज़ को फिल्मी गीत में सुनने की सबकी उत्सुकता और फिर उनकी मीठी आवाज़ का हीमेश द्वारा सधा हुआ इस्तेमाल। गाना तो मशहूर होना ही था और हुआ भी। हीमेश ने भी इस गीत में बखूबी साथ दिया रानू का।
गीतकार शब्बीर अहमद ने भी दो प्रेमियों की कहानी कहने के लिए कुछ अच्छे बिंब ढूँढ निकाले मसलन
कभी उड़ती महक, कभी गीली फ़िज़ा, कभी पाक दुआ कभी धूप कड़क, कभी छाँव नरम कभी सर्द हवा तेरी मेरी, तेरी मेरी तेरी मेरी कहानी...
सच ही लिखा शब्बीर ने ज़िंदगी की कोई भी कहानी इन बदलते रंगों के बिना कहाँ पूरी हो पाती है? जीवन के इस घूमते पहिए को समझने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं। अब रानू की जीवन कथा को ही लीजिए एक हिट गाने ने उन्हें रातों रात स्टार बना दिया पर कोरोना काल में उन्हें आगे कोई विशेष काम ही नहीं मिला और फिलहाल वो फिर राणाघाट में अकेले समय बिताने को विवश हैं।
संगीतमाला के अगले गीत में है लोकगीत वाली मिठास सुनना ना भूलिएगा।
वार्षिक संगीतमाला की तेइसवीं सीढ़ी इंतज़ार कर रही है तनिष्क बागची के द्वारा रचे दुर्गामती फिल्म के उस गीत का जो बी प्राक की जानदार आवाज़ में आप पर बरस बरस जाना चाहता है। अपने जोड़ीदार वायु श्रीवास्तव से गीत लिखाने वाले तनिष्क ने इस गीत में गीतकार की भूमिका भी ख़ुद ही निभाई है।।
तनिष्क बागची की गणना इस साल के सबसे व्यस्त संगीतकारों में करनी चाहिए। इस साल वो करीब दस फिल्मों में संगीत देते नज़र आए। मेरी संगीतमाला में शामिल उनका ये पाँचवा संगीतबद्ध गीत है। मुझे सबसे ज्यादा खुशी उनके गीत कान्हा (फिल्म : शुभ मंगल सावधान) ने ने दी थी जो कि वार्षिक संगीतमाला 2017 में दसवीं पॉयदान तक जा पहुँचा था। अब जब उन्होंने पिछले साल इतनी फिल्में की हैं तो देखिए वो अपना रिकार्ड इस संगीतमाला में सुधार पाते हैं या नहीं।
तनिष्क अपनी संगीतबद्ध रचनाओं से अक्सर अपनी प्रतिभा का परिचय देते रहे हैं पर कई बार उनका संगीत बेहद औसत भी रहता है। उन्होंने पिछले कुछ सालों में इतने सारे गानों के रिमिक्स बनाए हैं कि अब तो उनका नाम किसी फिल्म में देख कर ये लगता है कि लो अब एक और रिमिक्स आ गया। अपनी इस पहचान से वो जितना जल्दी आगे निकलें वो बेहतर होगा।
दुर्गामती फिल्म के इस गीत की शुरुआत होती है अल्तमश फरीदी के सुकून देने वाले आलाप से और फिर गूँजता है स्वर बी प्राक का
उनकी ये नज़र जो नज़र से मिली मैं पिघलता रहा उसमें ही कहीं मैं ख़ुदा से हाँ ख़ुदा से कहूँ तू मेरा, तू मेरा हाँ कि अँखियाँ बरस बरस जाएँ नैना तरस तरस जाएँ मोहे दरस दिखा जा रे पिया रे
मुखड़े की धुन अपनी ओर खींचती है और बी प्राक तनिष्क के सामान्य से बोलों में भी अपनी अदायगी से प्राण भर देते हैं। ऊँचे सुरों पर उनकी पकड़ तेरी मिट्टी की सफलता के बाद किसी से छिपी नहीं है। गीत के अंत में वादक तापस रॉय जब मेंडोलिन पर मुखड़े की धुन बजाते हैं तो मुँह से अनायास ही वाह वाह निकल पड़ती है।
तो आइए संगीतमाला की आज की कड़ी में सुनते हैं भूमि पेडनेकर और करण कपाड़िया पर फिल्माए इस मधुर गीत को
वार्षिक संगीतमाला की चौबीसवीं सीढ़ी पर है एक रूमानी गीत फिल्म हैप्पी हार्डी और हीर का जिसे संगीतबद्ध किया है हीमेश रेशमिया ने।
हीमेश रेशमिया एक मँजे हुए संगीतकार हैं। गा तो वो लेते ही थे अब तो कई फिल्मों में अभिनय भी कर चुके हैं। गीत संगीत के साथ वो उसकी मार्केटिंग भी बढ़िया कर लेते हैं। पिछले साल रानू मंडल को सड़कों से सीधे बॉलीवुड के स्टूडियो तक पहुँचाने का भी श्रेय उनको ही जाता है। जिस कदर रानू का वीडियो वॉयरल हुआ, उससे उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा उन्हें था जिसका उन्होंने हैप्पी हार्डी और हीर के गानों में बखूबी इस्तेमाल किया।
यही वजह थी कि लॉकडॉउन के पहले आई ये फिल्म भले औसत चली पर इसके संगीत को अच्छी खासी मकबूलियत मिली। अब इस फिल्म के गीत आदत को ही लीजिए। इस गीत का सबसे प्यारा हिस्सा इसकी शुरुआत है जिसमें असीस कौर की गायी गीत की ये पंक्तियां मन मोह लेती हैं
जो कदी छूटे ना, वो चाहत बुरी
मान ले इश्क है, आफ़त बुरी
इन पंक्तियों के पहले तार वाद्यों से जो संगीत का टुकड़ा हीमेश ने रचा है वो तो बस लाजवाब है। गीत के बीच जब जब वो बजता है मन खुशी से आनंदित हो जाता है। आडियो वर्जन में असीस दूसरे अंतरे में भी आती हैं और बड़ी खूबसूरती से अपनी उपस्थिति जतला कर निकल जाती हैं। गीत में रब्बी शेरगिल पंजाबियत की मस्ती और और रानू मंडल मिठास घोलते नज़र आते हैं। अगर साधारण है तो हीमेश की गायिकी जो अन्य गायकों जैसी असरदार नहीं।
तो पहले इस गीत का लंबा आडियो वर्जन सुनिए।
और ये है गीत का वीडियो जिसे फिल्माया गया है हीमेश और सोनिया मान पर। अरे एक बात तो बतानी रह ही गयी। इस गीत के बोल लिखे हैं सोनिया कपूर ने जो हीमेश की पत्नी भी हैं।
इस गीत को सुन कर इन चार गायकों में से आप किस के लिए कहेंगे ..बड़ी ही नशीली संगत तेरी...तू है मेरी आदत बुरी
कोरोना ने हमारी इस साल ऐसी मनःस्थिति कर दी कि हम ढंग से पिछले साल के गीत संगीत का ठीक ही लुत्फ ही नहीं उठा सके। अगर साल के पहले तीन महीनों को छोड़ दें तो इस साल कोरोना के चक्कर में ना फिल्में बड़े पर्दे पर रिलीज़ हुईं और ना ही उनका संगीत गली मोहल्लों में गूँजा।
ओटीटी प्लेटफार्म पे फिल्में जरूर बनीं और रिलीज़ हुईं पर उनके बेहद कम गीत ही आम जनता तक पहुँच सके। इनमें से तो कई फिल्में ऐसी थी जिनमें गीत थे ही नहीं। वैसे भी आजकल के कई युवा निर्देशक गीतों को फिल्म की कहानी में एक व्यवधान की तरह ही मानते हैं। ऐसे में इस साल की संगीतमाला बाकी सालों जैसी विविधता और कुछ हद तक वो गुणवत्ता तो लिए हुए नहीं है फिर भी मैंने कोशिश की है हर साल की तरह आपके लिए पिछले साल रिलीज़ हुई फिल्मों के पच्चीस बेहतरीन गीतों को सामने लाऊँ।
हालांकि कुछ लोगों का ऐसा भी मत था कि इनमें वेब सिरीज़ के गीतों को भी शामिल किया जाए। वाकई इस साल कुछ बेहद उम्दा काम फिल्मों के इतर भी हुआ है। वेब सिरीज़ के अलावा लॉकडाउन में बहुत सारे कलाकारों ने अपनी व्यक्तिगत कोशिश से मिलजुल कर गाने बनाए जो बेहद सुरीले थे। पर उन गीतों के बारे में अलग से लिखूँगा इस संगीतमाला के खत्म होने के बाद।
फिलहाल तो संगीतमाला की शुरुआत पच्चीस पॉयदान के गीत से जिसे मैंने फिल्म छलाँग से लिया है। ये बड़ा मज़ेदार सा गीत है जो मियाँ बीवी की शिकायतों को बड़े हल्के फुल्के अंदाज़ में पेश करता है। अब आप ही बताइए इग्नोर करने की, केयर और शेयर ना करने की शिकायत तो आम तौर पर हर पत्नी को अपने पति से होती है। बस इस केयर और इग्नोर करने का मापदंड थोड़ा बदल गया है। आज के युग में फोन का घड़ी घड़ी ना आना, सोशल मीडिया पर लाइक या कमेंट नहीं करना, मेसेज अनसीन ही किये रखना जैसी बातें झगड़े के लिए वाजिब शिकायतों की सूची में शामिल हैं।
अब जिस गीत के लिखने और गाने में हनी सिंह का हाथ हो उसमें पंजाबी के साथ हिंग्लिश का तड़का तो होगा ही। पर तारीफ़ की बात ये है कि जो जुमले हनी ने अन्य गीतकारों की मदद से डाले हैं वैसे उलाहने आज की इस डिजिटल संस्कृति में आम हैं।
तो सुनिए कि इस गीत में नुसरत भड़ूचा, राजकुमार राव पर क्या इल्जाम लगा रही हैं और बदले में राजकुमार राव अपनी सफाई में कैसी दलीलें पेश कर रहे हैं। इस गीत की धुन बनाई है हितेश सोनी ने और आवाज़ें दी हैं स्वीतज बरार और हनी सिंह ने।
अच्छा ये बताइए कि ऐसी शिकायतें क्या आप भी करते हैं?
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