रविवार, जनवरी 21, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 रुआँ रुआँ खिलने लगी है जमीं ...

वार्षिक संगीतमाला के गीत इस साल किसी क्रम में नहीं आ रहे। पिछले साल के अपने सारे पसंदीदा गीतों को सुनवाने के बाद सारी पायदानों का खुलासा होगा सरताज गीत के साथ। पिप्पा का झूमता झुमाता गीत तो मैंने पिछली पोस्ट में सुनवाया ही था। आशा है गीत के साथ साथ ईशान खट्टर के थिरकने का अंदाज आपको भाया होगा।

आज जिस गीत को मैं अपनी इस संगीतमाला में पेश कर रहा हूँ, वो बिल्कुल अलग प्रकृति का होते हुए दो बातों में पिछले गीत से मेल खाता है। पहली तो ये कि पिप्पा के गीत की तरह इस गीत को भी आप रेट्रो की श्रेणी में डाल सकते हैं और दूसरे ये कि इस गीत की संगीत रचना भी ए आर रहमान के हाथों हुई है। ये गीत है रुआँ रुआँ जो पिछले साल अप्रैल में रिलीज़ फिल्म पोन्नियिन सेल्वन 2 का अहम हिस्सा था। अगर आप इस फिल्म के शीर्षक के अर्थ को लेकर सशंकित हों तो ये बता दूँ इसका सीधा सा अर्थ है पोन्नी का बेटा। अब पोन्नी कौन है? प्राचीन तमिल साहित्य में पोन्नी,कावेरी नदी को कहा जाता था। इसी नदी के आसपास चोल साम्राज्य फला फूला।  पोन्नियिन सेल्वन फिल्म इसी नाम के ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित है।

 

फिल्म के इस रोमांटिक गीत को लिखा गुलज़ार साहब ने। गुलज़ार, मणिरत्मन और रहमान जब भी एक साथ हुए हैं फिल्म संगीत ने नई ऊँचाइयों को छुआ है। साथिया, दिल से व गुरु के कितने ही गाने आज तक हमारी आपकी जुबां पर चढ़े हुए हैं। 

रहमान रुआँ रुआँ के बारे में कहते हैं कि उन्होंने जिन आठ दस धुनों को तैयार कर के रखा था उसमें मणिरत्नम जी ने सबसे उलझी हुई धुन चुनीं। गीत की शुरुआत पहले रुआँ से न होकर आगे से थी। जब गुलज़ार से उस शब्द से गीत शुरु करने को कहा गया तो उन्होंने बाद की पंक्तियाँ बदल दीं।  गुलज़ार ने बड़ा प्यारा मुखड़ा रचा है इस गीत का। मंद मंद नीम बंद अधखुली वाली पंक्ति सुन कर दिल मुलायमियत से भर उठता है। बाकी गुलज़ार हैं तो इस रूमानी गीत में फूल, शबनम, जुगनू बादल और चाँद की चमक तो रहेगी ही।


रुआँ रुआँ खिलने लगी है जमीं ओ
तेरी ही तो खुशबू है न कहीं ओ
मंद मंद, नीम बंद, नैनों से कहीं ओ
आके बांके तूने कहीं झाँका तो नहीं

 
सज़ा मिली है प्यार की, क़ैदी हूँ बहार की
बंदी बनके ही रहूँ, मर्ज़ी है मेरे यार की
 
रुआँ रुआँ खिलने लगी है..तूने कहीं झाँका तो नहीं
 
फूलों पे शबनम, हौले से उतरे
जुगनू जलाएं, रौशनी के कतरे
जाऊँ जो चमन में, पंछी पुकारे
आजा रे कोयल, आरती उतारे

चाँद ढूंढते हैं आसमां खोल के,
भूल गए बादल दिन है कि रात है
आँखों में ख़्वाब ही ख़्वाब भरे हैं
नींद नहीं आती…

रुआँ रुआँ खिलने लगी है जमीं ओ...


रहमान ने इस गीत के लिए  बतौर गायिका शिल्पा राव का चुनाव किया। शिल्पा की आवाज़ की बुनावट एकदम अलग सी तो है ही और वो बेहद हुनरमंद गायिका भी हैं। कुछ साल पहले कलंक और इस साल पठान में गाए उनके गीतों ने सफलता के नए कीर्तिमान बनाए हैं। उनके गाए पिछले गीतों की तुलना में ये काफी कठिन गीत था क्यूँकि इसकी धुन मुखड़े, पहले अंतरे से दूसरे अंतरे तक पहुँचते पहुँचते कई मोड़ तय करती है जिसे निभाना इतना आसान नहीं है। रहमान का गीत गाना किसी भी गायक या गायिका के लिए गौरव की बात होती है और शिल्पा ने इसे चुनौती कै रूप में स्वीकार किया।

रहमान के गीतों में वॉयलिन और बाँसुरी का बखूबी इस्तेमाल होता है। यहाँ कुछ अंशों में इनके अलावा वीणा की हल्की सी खनक भी है। सज़ा मिली है वाले हिस्सा सुनकर साठ के दशक के गीतों की याद आ जाती है। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे हिंदी के साथ साथ तमिल, तेलगु, मलयालम और कन्नड़ में भी रचा गया है।

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3 टिप्पणियाँ:

Shailendra Mishra on जनवरी 21, 2024 ने कहा…

इस गाने का picturization बेहद सुंदर है। गाना तमिल में ज़्यादा सुंदर sound करता है। हिंदी में कहीं कहीं अटकता है।

Manish Kumar on जनवरी 21, 2024 ने कहा…

Shailendra Mishra हिंदी में ये फिल्म बाद में रिलीज़ हुई है। गीतकार के सामने एक बंदिश थी तमिल से अनुवाद करते समय भाव वही रखने की। दूसरे अंतरे में ये बात उभर कर आती है पर मुखड़ा और पहला अंतरा तो मेरे मन को सहलाता हुआ गुजरा।

Shailendra Mishra on जनवरी 26, 2024 ने कहा…

Manish Kumar साथ ही बने थे। गुलज़ार ने अच्छा ही लिखा है। बस तमिल में flow better है। वैसे PS-1 से PS-2 के हिंदी lyrics में फ़र्क़ है। PS-2 के ज़्यादा अच्छे बन पड़े है। जो महबूब और गुलज़ार का फ़र्क़ है।

 

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