जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
कई बार फिल्मों में ऐसे गीत बनते हैं जो उस वक्त देश और समाज के हालातों को अपने शब्दों में पिरो डालते हैं और एक तरह से देश के इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं। अभी हाल ही में सदन में प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तंज कसते हुए एक गीत की चर्चा की ये कहते हुए कि विपक्ष के शासन के दौरान मँहगाई इतनी बढ़ गयी थी कि मँहगाई डायन खाए जात है जैसे गीत बनने लगे थे। पिछले साल के पच्चीस शानदार गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में जो गीत आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद इसमें वर्णित घटनाओं की चर्चा कुछ सालों बाद कोई और करे। कोविड की महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की अपने घरों की ओर लौटने में जो बदतर हालत हुई थी ये गीत उसी का यथार्थवादी चित्रण करता है।
फिल्म भीड़ के इस गीत की धुन बनाई संगीतकार अनुराग सैकिया ने और इसे गाया है लोक गायक ओम प्रकाश यादव ने। डा. सागर के लिखे गीतों की चर्चा पहले भी वार्षिक संगीतमाला में हुई है। सागर मेरे गृह जिले बलिया से आते हैं और जीवन में बहुत तप कर बॉलीवुड के संसार में अपने कदम जमा पाए हैं। उनके संघर्ष के दिनों की बात लिखी थी मैंने पहले यहाँ। हिंदी फिल्मों में उनके गीत हर साल आते ही रहे हैं पर मुंबई में का बा की सफलता के बाद उनके काम को और सम्मान से देखा जाने लगा है।
मज़े की बात ये है कि ये गीत हिंदी में नहीं नहीं बल्कि भोजपुरी है। बिहार यूपी के पुरवइया मजदूरों का दर्द बयाँ करने के लिए भोजपुरी से अच्छी भाषा क्या हो सकती थी। मैंने सागर के हिंदी फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों को सुना है पर इस गीत में इतना बढ़िया खाका खींचा है उन्होंने उस वक़्त की परिस्थितियों का कि ये गीत उनके सबसे अच्छे कामों में आगे भी गिना जाएगा। मुखड़े में सागर लिखते हैं...खुनवा-पसीना सहरिया में भैया, कउड़ी के भाव में बिकाइल बा...चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर, जहाँ माटी में सोना हेराइल बा। भोजपुरी में सुगना तोते को कहते हैं और हेराइल मतलब छिपा हुआ। अंतरों में भी उनके बिंब कमाल के हैं.. भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे...बोरा से सरसों छिंटाइल बा या फिर धुआँ धुआँ हो गइल अल्हड़ जवनियाँ...चूल्हा में ऐसे झोंकाइल बा...हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे..कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा
क्या क्या नहीं सहा हमारे मजदूरों ने और उनके दिल का सारा दर्द सागर ने महज कुछ अंतरों में हमारे आगे उड़ेल दिया। आज के माहौल में लाउड स्पीकर पर बजते भोजपुरी गीत किस लिए जाने जाते हैं ये मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में सागर जैसे प्रतिभाशाली गीतकार चैती, कजरी, सोहर, बिरहा से सम्पन्न भोजपुरी संस्कृति को अपने गीतों से एक नई दिशा दे रहे हैं जिसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी।
खुनवा-पसीना सहरिया में भैया,
कउड़ी के भाव में बिकाइल बा...
चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर,
जहाँ माटी में सोना हेराइल बा
घर अँगनइया के सपना सजाकर मशिनियो से बेसी देहिया खटवनी हाय रे करम यही पेटवा की ख़ातिर अब वाचमैनी के ड्यूटी बजवनी भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे बोरा से सरसों छिंटाइल बा
कवने कानूनवा में हम घिरैलीं कवन बहेलिया बिछावे रे जाल काहे भइल बा एतना लाचारी सुई, दवाई एगो टिकिया मुहाल हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा
भटके शहरिया में ए भइया जेकर खेत खलिहानवा हो बाटे छिनाइल गहना गुरिया के बतिया न पूछ बाटे समान मोरा बनकी धराइल धुआँ धुआँ हो गइल अल्हड़ जवनियाँ चूल्हा में ऐसे झोंकाइल बा
जतिया धर्मवा के ऐसन अफीम हो सुतही से केहू चटावे हो राम हथवा में लेके नफ़रत के लाशा धीरे से केहू सटावे हो राम बचके जिय तनि बचके पिया एही कुइयाँ में भाँगवा घोराइल बा
अब कुछ बातें इस गीत में संगीत देने वाले अनुराग कीं। अनुराग सैकिया एक अद्भुत संगीतकार हैं। थप्पड़ में उनका संगीतबद्ध गीत एक टुकड़ा धूप का.. मेरी गीतमाला के सरताज गीत का तमगा में ले चुका है। दो साल पहले राजशेखर के साथ ऐसे क्यूँ ने तो युवाओं और बड़ों सबका दिल जीत लिया था। अनुराग असम से आते हैं और वहाँ के लोक संगीत में रच बस कर ही उन्होंने अपनी संगीत की कारीगरी सीखी है। शायद इसीलिए उन्होने इस गीत को गवाने के लिए बिरहा गायक ओम प्रकाश यादव को चुना। शब्द प्रधान इस गीत में संगीत नाममात्र सा ही है। फिर भी ऊस थोड़े से संगीत में तॉपस रॉय का दो तारा और तेजस की बजाई बाँसुरी मन को लुभाती है।
@ Sagar सागर भाई आप के काम को पिछले एक दशक से देख रहा हूं। सलीम सुलेमान से लेकर सुधीर मिश्रा तक के साथ आपको काम करते देख बेहद खुशी हो रही है।
आशा है आपको हिंदी फिल्मों के साथ साथ भोजपुरी गीतों के स्वतंत्र एल्बम में भी काम करने का अवसर मिले ताकि इस भाषा के समृद्ध रूप से हमारी युवा पीढ़ी का परिचय हो सके।
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4 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर गीत
बिल्कुल देश के प्रवासी श्रमिकों के आकस्मिक विस्थापन का दर्द बयां करता हुआ। आपसे अनुरोध है कि अपने नाम के साथ टिप्पणी करें🙏
इस ख़ूबसूरत पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया । जब काम किसी को पसंद आता है तो हौसला बुलंद हो जाता है ।स्नेह बनाए रखें ❤️
@ Sagar सागर भाई आप के काम को पिछले एक दशक से देख रहा हूं। सलीम सुलेमान से लेकर सुधीर मिश्रा तक के साथ आपको काम करते देख बेहद खुशी हो रही है।
आशा है आपको हिंदी फिल्मों के साथ साथ भोजपुरी गीतों के स्वतंत्र एल्बम में भी काम करने का अवसर मिले ताकि इस भाषा के समृद्ध रूप से हमारी युवा पीढ़ी का परिचय हो सके।
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