बुधवार, सितंबर 22, 2021
नैना रे नैना... तोसे लागे Naina Re Naina
रविवार, सितंबर 12, 2021
तू मिले दिल खिले .. अनूप शंकर Tu Mile Dil Khile Anoop Shankar
बदलते वक़्त के साथ एक शाम मेरे नाम में एक नया सिलसिला शुरु करने जा रहा हूँ और वो है मशहूर गानों को आज के कलाकारों द्वारा गाए जा रहे बिना आर्केस्ट्रा वाले अनप्लग्ड वर्सन का जो कि आलेख के हिसाब से भले छोटे हों पर आपके दिलों में देर तक राज करेंगे।
क्रिमिनल नब्बे के दशक में तब रिलीज़ हुई थी जब अस्सी के दशक के उतार के बाद हिंदी फिल्म संगीत फिर अपनी जड़ें जमा रहा था। फिल्म के संगीत निर्देशक थे एम एम क्रीम। तब नागार्जुन का सितारा दक्षिण की फिल्मों में पहले ही चमक चुका था और महेश भट्ट उसे हिंदी फिल्मों में उनकी लोकप्रियता भुनाने की कोशिश कर रहे थे। फिल्म तो कोई खास नहीं चली पर गीत संगीत के लिहाज से इस फिल्म का एक ही गीत बेहद पसंद किया गया था और वो था तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए। हालांकि क्रीम साहब की ये कंपोजिशन पूरी तरह मौलिक नहीं थी औेर उस वक़्त के बेहद लोकप्रिय बैंड एनिग्मा की एक धुन से प्रेरित थी। पर इतना सब होते हुए भी इंदीवर के बोलों को गुनगुनाना लोगों को भला लगा था और आज भी इस गीत को पसंद करने वालों की कमी नहीं है।
रविवार, सितंबर 05, 2021
ओवल का टेस्ट मैच,सुशील दोशी और और वो रोमांचक आँखों देखा हाल.. Oval Test Match 1979 Sushil Doshi
जिंदगी में बहुत सारे लम्हे ऐसे होते हैं जो आप वर्षों सहेज कर रखना चाहते हैं। उन लम्हों का रोमांच दिल में झुरझुरी सी पैदा कर देता है। आज जिस वाक़ये को आपके सामने रख रहा हूँ वो संबंधित है क्रिकेट से जुड़ी उस हस्ती से, जिसके रेडियो पर बोलने के कौशल ने, उस छोटे बच्चे के मन में, खेल के प्रति ना केवल उसके अनुराग में वृद्धि कि बल्कि उन क्षणों को हमेशा-हमेशा के लिए उसके हृदय में रचा बसा दिया । जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ प्रसिद्ध क्रिकेट कमेंटेटर सुशील दोशी की जिन्होंने बाल जीवन में अपनी जीवंत कमेंट्री से मुझे इस हद तक प्रभावित किया कि बचपन में जब भी मुझसे पूछा जाता कि बेटा, तुम बड़े हो कर क्या बनोगे तो मैं तत्काल उत्तर देता कि मुझे क्रिकेट कमेन्टेटर ही बनना है।
बात 1979 की है। सितंबर का महीना चल रहा था। भारत और इंग्लैंड के बीच टेस्ट श्रृंखला का आखिरी टेस्ट ओवल में खेला जा रहा था। मुझे रेडियो पर टेस्ट मैच के आँखों देखा हाल सुनने का चस्का लग चुका था। यूँ तो जब भी टेस्ट मैच भारत में हुआ करते थे, रेडियो की कमेंट्री रविवार को ही ठीक तरह से सुनने को मिल पाती थी। पर जब-जब टेस्ट मैच इंग्लैंड में होते, हमारी तो चाँदी ही हो जाती। साढ़े पाँच घंटे के समय अंतराल की वज़ह से होमवर्क बना चुकने के बाद, भोजन के बाद के खेल का हाल हम मज़े से सुन सकते थे। ऊपर से शाम के वक़्त आँखों देखा हाल सुनने का रोमांच ही अलग होता था। और फिर चार सितंबर की वो शाम तो कुछ ऍसा लेकर आई थी, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
टेस्ट मैच में भारत की स्थिति को पाँचवे दिन की सुबह चिंताजनक ही आंका जा सकता था। इंग्लैंड ने मैच के चौथे दिन आठ विकेट पर 334 रन पर पारी घोषित कर भारत के सामने जीत के लिए 438 रन का विशालकाय स्कोर रखा था। यूँ तो चौथे दिन की समाप्ति तक गावस्कर और चेतन चौहान की सलामी जोड़ी 76 रन की साझेदारी कर डटी हुई थी पर बाकी की भारतीय टीम पूरे दिन भर में बाथम और विलिस सरीखे गेंदबाजों को झेल पाएगी इसमें सबको संदेह था। पर हमें क्या पता था कि 'स' नाम से शुरु होने वाले दो शख्स, मैदान के अंदर और बाहर से मैच की एक अलग ही स्क्रिप्ट लिखने पर तुले हुए हैं।
सुशील दोशी की आवाज़ कमाल की थी। आँखों देखा हाल वो कुछ यूँ सुनाते थे जैसे सारा कुछ आप के सामने घटित हो रहा हो। यही नहीं भारत का विकेट गिरने से हुई मायूसी, या फिर चौका पड़ने से उनकी उत्तेजना को सुनने वाले के दिलो दिमाग तक पहुँचाने की उनकी कला अद्भुत थी। अंतरजाल पर तो मुझे उनकी रेडियो कमेंट्री की कोई रिकार्डिंग तो नहीं मिली। पर मुझे जितना कुछ याद है, उसके हिसाब से उनका अंदाजे बयाँ कुछ कुछ यूँ हुआ करता था।
"....बॉथम पैवेलियन एंड से गेंदबाजी का जिम्मा सँभालेगे । सामना करेंगे गावस्कर। फील्डिंग की जमावट.. तीन स्लिप्स, एक गली, कवर, मेड आफ, आफ साइड में और वाइडिश मेड आन, मिड विकेट और फारवर्ड शार्ट लेग आन साइड में।
बॉथम ने दौड़ना शुरु किया...अंपायर को पार किया दायें हाथ से ओवर दि विकेट ये गेंद आफ स्टम्प के थोड़ी सी बाहर। गेंद के साथ छेड़खानी करने का प्रयास किया गावस्कर ने....। भाग्यशाली रहे कि गेंद ने उनके बल्ले का बाहिरी किनारा नहीं लिया अन्यथा परिणाम गंभीर हो सकता था। तारीफ करनी होगी बॉथम की कि जिन्होंने गेंद की लंबाई और दिशा पर अच्छा नियंत्रण रखा है और काफी परेशानी में डाल रखा हे भारतीय बल्लेबाजों को।
अगली गेंद गुड लेन्थ, आफ मिडिल स्टंप पर, बायाँ पैर बाहर निकाला गावस्कर ने, गेंद के ठीक पीछे आकर सम्मानजनक तरीके से वापस पुश कर दिया गेंदबाज की ओर, बाँथम ने फोलोथ्रू में गेंद उठाई और चल पड़े हैं अपने बालिंग रन अप पर। पहली स्लिप पे गॉवर, दूसरी पर बॉयकॉट तीसरी पर बुचर, गली पर गूच और इसी बीच बॉथम की अगली गेंद आफ स्टम्प के बाहर, थोड़ी सी शॉट। स्कवायर कट कर दिया है गावस्कर ने गली के पास से। गेंद के बीच भाग रहे हैं गूच..पहला रन भागकर पूरा किया गावस्कर ने, दूसरे के लिए मुड़े बैट्समैन..और गूच नहीं रोक पाए हैं गेंद को. गेंद सीमारेखा से बाहर ..चार रन......"
चौके वाली कमेंट्री में दोशी जी के बोलने की रफ़्तार वाक्य के साथ साथ बढ़ती चली जाती थी। और मज़े की बात कि उस शाम को गावस्कर ने अपनी 221 रनों की यादगारी पारी में 21 चौके लगाए। गावस्कर की उस जबरदस्त पारी की कुछ झलकें आप यहाँ देख सकते हैं।
जब अस्सी रन बनाकर चेतन चौहान आउट हुए तो भारत का स्कोर था 213 रन। गावस्कर का साथ देने आए वेंगसरकर और इस जोड़ी ने स्कोर 366 तक पहुँचा दिया। यानी जीतने के लिए 72 रन और हाथ में आठ विकेट। पर थोड़े थोड़े रनों के अंतर पर विकेट गिरते रहे और हम सबके दिल का तनाव बढ़ता गया और उस वक़्त सुशील दोशी ने कहा..
"...इस मैच का रोमांच कुछ इस तरह बढ़ गया है कि अब ये मैच दिल के मरीजों के लिए रह नहीं गया है। दिल की बीमारियों से त्रस्त व्यक्तियों के डॉक्टर उनको ये सलाह दे रहे होंगे कि इस मैच का आँखों देखा हाल ना सुनें, क्यूंकि ये रोमांच जान लेवा साबित हो सकता है।...."
दोशी की ये पंक्तियाँ बिलकुल सटीक थीं क्यूँकि गुंडप्पा विश्वनाथ के रूप में 410 रन पर पाँचवां विकेट खोने के बाद ही 15 रन के अंतराल में तीन विकेट और खोकर भारत जीत से हार की कगार पर पहुँच गया था। अंत में भरत रेड्डी और करसन घावरी के क्रीज पर रहते हुए ही शायद खराब रोशनी की वज़ह एक ओवर पहले से दोनों कप्तानों की सहमति से मैच ड्रा के रूप में समाप्त हो गया।
जब से टीवी चैनल ने मैच लाइव दिखाने शुरु किए रेडियो कमेन्ट्री का वो महत्त्व नहीं रहा। पर सुशील दोशी और जसदेव सिंह जैसे दिग्गजों की बदौलत अस्सी के दशक में शायद ही शहर का कोई कोना होता हो जहाँ क्रिकेट और हॉकी के मैच के समय ट्रांजिस्टर ना दिखाई पड़ता हो। वो एक अलग युग था, जिसका आनंद हमारी पीढ़ी के लोगों ने उठाया है।
आज मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से रेडियो कमेंट्री की इन महान विभूतियों के प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूँ जिनकी वज़ह से खेल के मैदान से इतनी दूरी पर रहने के बावज़ूद हम इन रोमांचक क्षणों के सहभागी बन सके।
शुक्रवार, अगस्त 13, 2021
जे ऐथो कदि रावी लंग जावे : जब सज्जाद अली को आई परदेश में देश की याद ..Hindi Translation of Ravi by Sajjad Ali
अपने वतन से दूर रहने का दर्द अक्सर हमारे गीतों और कविता व शायरी की पंक्तियों में उभरता रहा है। अपने लोग, रहन सहन, संस्कृति की यादें अपनी जड़ों से दूर होने पर रह रह कर आती हैं। इतना ही नहीं बचपन में जिस रूप में हम आपने आस पास की प्रकृति में रमे होते हैं उन्हीं खेत खलिहानों, नदियों और पर्वतों में हमारा जी बार बार लौटने को करता है। नदी की बात से जान एलिया के वे शेर याद आ रहे हैं जो उन्होंने अमरोहा में एक समय बहने वाली नदी बान के लिए कहे थे।
बान तुम अब भी बह रही हो क्या
सज्जाद अली के गीतों का मैं हमेशा से शैदाई रहा हूँ। इससे पहले भी उनके गीतों लगाया दिल, मैंने इक किताब लिखी है, हर ज़ुल्म तेरा याद है, तुम नाराज हो, दिन परेशाँ है से आपको मिलवाता रहा हूँ। रावी यूँ तो दो साल पहले रिलीज़ हुई पर इस पंजाबी गीत से मेरा परिचय चंद महीने पहले अनायास ही हो गया। मैं गायिका हिमानी कपूर का एक लाइव सुन रहा था और उसी सेशन में सज्जाद अली की बिटिया जाव अली भी आ गयी और उन्होने हिमानी के गाने की तारीफ़ की। जवाब ने हिमानी ने भी बताया कि वो सज्जाद साहब की कितनी बड़ी फैन है और उन्होंने उसी वक़्त रावी गा कर सुनाया। हिमानी ने अभी गाना खत्म भी नहीं किया था कि सज्जाद अली स्वयं प्रकट हो गये और हँसते हुए कहने लगे यहाँ बिना मुझसे पूछे मेरे गाने कौन गा रहा है?
पंजाबी में होने के बावज़ूद भी मैंने तुरंत इस गीत को सुना और बस सुनता ही चला गया। दिल को छूते शब्द. मन को सुकून देने वाला संगीत और सज्जाद अली की अद्भुत गायकी जिसमें वो दुबई के एक वाटर वे के किनारे वो टहलते हुए वो पंजाब की रावी नदी को याद कर रहे हैं। मैने आज कोशिश की है कि इस खूबसूरत गीत के केन्दीय भाव को इसके पंजाबी लफ़्ज़ों के साथ पेश करूँ ताकि आप भी एक परदेशी की उदासी को महसूस कर सकें।
हयाती पंजाबी बन जावे
मैं बेड़ियाँ हज़ार तोड़ लाँ
मैं पाणी चो साह निचोड़ लाँ
जे ऐथो कदि रावी लंग जावे...हो
काश ऐसा हो कि इस सरज़मीं पर वही रावी आ जाए जो पाँच नदियों से बने पंजाब की धरती पर बहा करती है। अपनी इस मुराद को पूरा करने के लिए मैं हज़ारों बेड़ियाँ तोड़ने को तैयार हूँ। एक बार उसकी झलक मिल जाए तो उसके बहते पानी को निचोड़ परदेश में जलते इस हृदय की आग को ठंडा कर लूँगा।
ते अपनी कहानी कोई नहीं
जे संग बेलिया कोई ना
ते किसी नूँ सुनाणी कोई नहीं
आखाँ च दरिया घोल के
मैं जख्माँ दी था ते रोड़ लाँ
जे ऐथो कदि रावी लग जावे...हो
अरे वही रावी तो थी जिसका पानी मुझे अपने दोस्तों की याद दिला देता था। आज ना वो बहता पानी है और ना ही वे दोस्त मेरे पास हैं फिर किस को मैं अपनी बीती हुई दास्ताँ बयाँ करूँ। परदेश का ये अकेलेपन दिल में ना जाने कितने जख़्म दे गया है। मन तो करता है कि अपनी आँखों में राबी का वो सारा पानी घोल लूँ और जब वो पानी दिल में उतरे तो मलहम की तरह इन घावों को भर दे।
कि सजना ते दूरी हो गयी
ते वेलया दे नाल वघ दी
एह जिंद कदों पूरी हो गई
बेगानियाँ दी राह छोड़ के
मैं अपनी महार मोड़ लाँ
रोज़ी रोटी पाने कि ये कैसी मजबूरी है जिसने मुझे मेरे प्यार से अलग कर दिया। दोस्तों के साथ बहती ज़िंदगी कब पीछे छूट कर अपने आख़िरी पड़ाव पर आ गयी ये पता ही नहीं चला। मेरा वश चले तो इन बेगानी राहों को मोड़ फिर अपने वतन पहुँच जाऊँ।
बुधवार, जुलाई 14, 2021
जोशी बंधुओं के नए एलबम महफिल की सुरीली पेशकश : काहे को सताए
अगर आप आभास जोशी के नाम से अपरिचित हों तो याद दिला दूँ कि आज से लगभग डेढ़ दशक पहले ये छोटा सा जबलपुर का लड़का अमूल वॉयस आफ इ्डिया के मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर के गया था।। आज डेढ़ दशक बाद वही आभास अपने भाई के साथ मिलकर इंडिपेंडेंट म्यूजिक में ऐसे एलबमों के बलबूते अपना एक अलग मुकाम बनाने को प्रयासरत है।
शनिवार, जून 12, 2021
आँसू समझ के क्यूँ मुझे आँख से तूने गिरा दिया : तलत महमूद / राहुल देशपांडे
कई बार आपने देखा होगा कि कुछ गीत अगर बिना किसी संगीत संयोजन के गाए जाएँ तो उनकी धुन की मिठास को आप बड़ी गहराई तक महसूस कर सकते हैं। मुझे आज ऐसा ही एक गीत याद आ रहा है फिल्म छाया (1961) का जो कि गीत देखते वक़्त सलिल दा के आर्केस्ट्रा के बीच कहीं खोता सा महसूस हुआ था। वैसे तो छाया का नाम लेते ही आपको उस फिल्म का सबसे चर्चित गीत इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा.. याद आ गया होगा पर आज मैं उसकी बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि उसी फिल्म के एक उदास नग्मे की याद दिला रहा हूँ जिसे तलत महमूद ने गाया था।
उस ज़माने में प्रेम पर आधारित फिल्मों में ड्रामा अमीरी गरीबी से ही पैदा होता था। या तो नायक धनवान होता था या फिर नायिका बड़े बाप की बेटी होती थी। थोड़ी बहुत इधर उधर की ट्विस्ट के साथ फिल्में बन जाया करती थीं।इस फार्मूले वाली छाया भी अमीर नायिका व गरीब नायक की प्रेम कहानी थी। ये गीत भी कुछ ऐसी ही परिस्थिति में फिल्म में आता है। नायक सुनील दत्त के प्यार की रुसवाई होती है और वो अपना टूटा सा दिल कर भरी महफिल में नायिका के सामने अपना ग़म गलत करने आ जाते हैं।
राजेंद्र कृष्ण ने बेहतरीन मुखड़ा लिखा था इस गीत का आँसू समझ के क्यूँ मुझे आँख से तूने गिरा दिया.... मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यूँ मिला दिया। सहज शब्दों में लिखे गए गीत के अंतरे भी प्यारे थे। पर कमाल उस धुन का भी था जिसकी बदौलत गीत का दर्द हृदय में घुलता चला जाता था।
कुछ दिन पहले मैंने इसी गीत को शास्त्रीय गायक राहुल देशपांडे को की बोर्ड की हल्की टुनटुनाहट के साथ गाते सुना और मन कहीं और ही खो गया। आजकल ऐसी प्रस्तुति को नाममात्र के संगीत की वज़ह से Unplugged Versions का नाम देने का चलन है। राहुल यूँ तो अपने शास्त्रीय गायन के लिए जाने जाते हैं पर जब तब वो फिल्मी गीतों को भी अपनी आवाज़ से सँवारते रहते हैं। उनकी आवाज़ को सुन कर लगता है मानो युवा येसुदास को सुन रहे हों। ज़ाहिर है कि राहुल येसुदास जी के बड़े प्रशंसक हैं।
इस गीत के बारे में वो कहते हैं कि इसे गाने की इच्छा वर्षों से थी और आज से करीब बीस साल पहले उन्होंने इस गीत को किसी कार्यक्रम में गाया था। उस वक्त वे तलत साहब के गाने अक्सर सुना करते थे और जिस तरह वो आपनी आवाज़ के कंपन का इस्तेमाल अपने गीतों में करते थे उससे राहुल बेहद प्रभावित रहे। ये गीत उन सबमें राहुल का प्रिय रहा क्यूँकि एक तो ये उनके प्रिय राग यमन पर आधारित था और दूसरे इस गीत में जो मेलोडी है वो उदासी का भाव भरते हुए भी मन को एक सुकून भी देती है जो कि आजकल के गीतों में कम ही दिखाई देता है।
मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यूँ मिला दिया
आँसू समझ के क्यों मुझे
जो ना चमन में खिल सका मैं वो गरीब फूल हूँ
जो कुछ भी हूँ बहार की छोटी सी एक भूल हूँ
जिस ने खिला के खुद मुझे, खुद ही मुझे भुला दिया
आँसू समझ के क्यूँ मुझे
मेरी ख़ता मुआफ़ मैं भूले से आ गया यहाँ
वरना मुझे भी है खबर मेरा नहीं है ये जहाँ
डूब चला था नींद में अच्छा किया जगा दिया
आँसू समझ के क्यूँ मुझे
वैसे भी साठ के दशक की शुरुआत में प्रदर्शित इस फिल्म के अच्छी गुणवत्ता वाले वीडियोज़ नेट पर उपलब्ध नहीं है पर एक ठीक ठाक आडियो मिला जिसमें तलत जी का गाया पूरा गीत है इस तीसरे अंतरे के साथ।
नग़्मा हूँ कब मगर मुझे अपने पे कोई नाज़ था
गाया गया हूँ जिस पे मैं टूटा हुआ वो साज़ था
जिस ने सुना वो हँस दिया, हँस के मुझे रुला दिया
आँसू समझ के क्योँ मुझे ...
शनिवार, मई 22, 2021
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है कविता सेठ... Lutf Wo Ishq Mein
विक्रम सेठ की किताब A Suitable Boy को भले आप सबने ना पढ़ा हो पर नाम जरूर सुना होगा। नब्बे के दशक में लिखे गए उनके इस वृहत उपन्यास ने उन्हें भारत के अग्रणी अंग्रेजी लेखकों में खड़ा कर दिया। विक्रम की इसी किताब पर बीबीसी ने एक वेब सिरीज़ बनाने की सोची। निर्देशन का काम मीरा नायर को सौंपा गया। छः भागों में बने इस धारावाहिक में उपन्यास के एक चरित्र सईदा बाई से कुछ ग़ज़लें भी गवाई गयीं
इस वेब सिरीज़ में मीरा नायर ने ग़ज़लों को संगीतबद्ध करने और गाने का जिम्मा जानी मानी सूफी गायिका कविता सेठ को दिया था। कविता जी की आवाज़ मुझे हमेशा से इस तरह की गायिकी के लिए एकदम मुफ़ीद लगती रही है। गूँजा सा है इकतारा और तुम्हीं हो बंधु के बाद हाल फिलहाल गॉन केश में उनके गाए नुस्खा तराना भी मुझे बेहद पसंद आया था।
उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखने वाली कविता जी ने अपने कैरियर की शुरुआत में मुंबई आने के पहले आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए गाया। मैंने कहीं पढ़ा था कि स्कूल में पढ़ते वक़्त ही उनके मन में ये सपना घर कर चुका था कि मेरा गाना रेडियों में बजे या मैं कन्सर्ट में गाऊँ और लाखों लोग उसे सुनें।
गुरुवार, अप्रैल 15, 2021
वार्षिक संगीतमाला : एक शाम मेरे नाम के संगीत सितारे 2020
साल के बेहतरीन गीत
साल का सर्वश्रेष्ठ गीत : एक टुकड़ा धूप, थप्पड़ ( अनुराग सैकिया, शकील आज़मी, राघव चैतन्य)
साल के बेहतरीन एलबम
- शिकारा : संदेश शांडिल्य
- लूडो : प्रीतम
- लव आज कल 2 : प्रीतम
- हैप्पी हार्डी और हीर : हीमेश रेशमिया
- दिल बेचारा : ए आर रहमान
- छपाक : शंकर अहसान लॉय
- ख़ुदा हाफिज़ : मिथुन
साल का सर्वश्रेष्ठ एलबम : लव आज कल 2 : प्रीतम
- अमिताभ भट्टाचार्य : मेरे लिए तुम काफी हो ….
- शकील आज़मी : एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है...
- सईद कादरी : हमदम हरदम
- गरिमा ओबरा : सुन सुर जो कहानियाँ सी कहते हैं.
- गुलज़ार : छपाक से पहचान ले गया ...
- इरशाद कामिल : मर जाएँ हम..
- रिपुल शर्मा : ये जो शहर है
- पीर ज़हूर : वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं
साल के सर्वश्रेष्ठ बोल : एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है.. ...शकील आज़मी
साल के गीतों की कुछ बेहद जानदार पंक्तियाँजब आप पूरा गीत सुनते हैं तो कुछ पंक्तियाँ कई दिनों तक आपके होठों पर रहती हैं और उन्हें गुनगुनाते वक़्त आप एक अलग खुशी महसूस करते हैं। पिछले साल के गीतों की वो बेहतरीन पंक्तियों जिनके शब्द मेरे साथ काफी दिनों तक रहे वे कुछ यूँ हैं 😃
- एक चेहरा गिरा जैसे मोहरा गिरा जैसे धूप को ग्रहण लग गया छपाक से पहचान ले गया
- इश्क़ रगों में जो बहता रहे जाके..कानों में चुपके से कहता रहे ..तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन
- चक्के जो दो साथ चलते हैं थोड़े..तो घिसने रगड़ने में छिलते है थोड़े..पर यूँ ही तो कटते हैं कच्चे किनारे..ये दिल जो ढला तेरी आदत पे..शामिल किया है इबादत में..थोड़ी ख़ुदा से भी माफी हो..मेरे लिए तुम काफी हो...
- वो रूबरू खड़े हैं मगर फासले तो हैं नज़रों ने दिल की बात कही लब सिले तो हैं
- दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे...जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे..ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए...दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें
- टूट के हम दोनों में, जो बचा वो कम सा है..एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है..एक धागे में हैं उलझे यूँ, कि बुनते बुनते खुल गए..हम थे लिखे दीवार पे, बारिश हुई और धुल गए
- तुम ना हुए मेरे तो क्या..मैं तुम्हारा मैं तुम्हारा मैं तुम्हारा रहा..मेरे चंदा मैं तुम्हारा सितारा रहा..रिश्ता रहा बस रेत का..ऐ समंदर मैं तुम्हारा किनारा रहा
- तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ, मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ, है तेरी पलकों पे फूल महके,मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,
- सुन सुर जो कहानियाँ सी कहते हैं..चुन लब मनमानियाँ जो सहते हैं
- रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद...तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद
- तू तेज़ चिंगारी मैं चरस का झोला ..तू मीठी रूहफज़ा मैं बर्फ का गोला
- हाँ आज फिर दिल से झगड़ा किया..हाँ आज फिर थोड़ा सोए हैं कम..हाँ आज दिल से झगड़ा किया..हाँ आज फिर थोड़ा रोए हैं हम
- अरिजीत सिंह : हरपल हरशब हमदम-हमदम …
- अरिजीत सिंह : शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको
- अरिजीत सिंह : या तो बर्बाद कर दो या फिर आबाद कर दो
- विशाल मिश्रा : आप हमारी जान बन गए
- दर्शन रावल : ओ मेहरवाँ क्या मिला यूँ जुदा हो के बता
- सोनू निगम : तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ..
- राघव चैतन्य : एक टुकड़ा धूप का
- शंकर महादेवन : जुगनू
साल के सर्वश्रेष्ठ गायक : अरिजीत सिंह
साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका : कोई नहीं
- आदत मुखड़े के पहले तार वाद्यों की सिग्नेचर ट्यून हीमेश रेशमिया
- संतूर पर गीत की धुन मर जाएँ हम वादक रोहन रतन
- सारंगी पर गुलाम अली आबाद बर्बाद इंटरल्यूड
- शायद सिग्नेचर ट्यून वुडविंड पर निर्मल्य डे
- शहनाई पर आइ डी दास एक टुकड़ा धूप
संगीत की सबसे कर्णप्रिय मधुर तान : आदत सिग्नेचर ट्यून हीमेश रेशमिया
गुरुवार, अप्रैल 01, 2021
वार्षिक संगीतमाला 2020 सरताज गीत: एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है Ek Tukda Dhoop
वार्षिक संगीतमाला 2020
मंगलवार, मार्च 23, 2021
वार्षिक संगीतमाला 2020 रनर अप : हरदम हर पल, हर शब, हमदम-हमदम Hardum Humdum
रखेगी तुझे ख़्वाब में, हमेशा, हरदम
हरपल हरशब हमदम-हमदम
कितना हूँ चाहता कैसे कहूँ तुझे
साया तेरा दिखे तो चूम लूँ उसे
जिस दिन तुझे मिलूँ, दिल ये दुआ करे
दिन ये ख़त्म ना हो, ना शाम को ढले
रहे है बस साथ हम, तू रहे पास
रखूँ मैं तुझे बाहों में हमेशा हरदम
फिल्म वर्जन में संगीत संयोजन तो बदलता ही है, साथ ही गीत का दूसरा अंतरा भी सुनाई देता है।
दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे
जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे
ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए
दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें
सुन ऐ मेरे सनम, सुन मेरी जान
तू है एहसास में
हमेशा, हरदम हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
अरिजीत के आलावा इस गीत को प्रीतम ने शिल्पा राव से भी गवाया जो शायद फिल्म में इस्तेमाल नहीं हुआ।
शुक्रवार, मार्च 19, 2021
वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत #3 शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको Shayad
कहे बिना समझ लो तुम शायद
शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन
मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद
जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं
जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं
ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा
तुमसे कम नहीं
जो तुम ना हो तो हम भी हम नहीं ..कम नहीं
खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से
बिन काम काम करना जाना कहीं हो चाहे
हर बार ही गुज़रना तेरी तरफ से
ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं
ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं
ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा ...जो तुम ना हो