रविवार, फ़रवरी 04, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 कि रब्बा जाणदा, तैनूँ कितनी मोहब्बताँ दिल करदा

जुबीन नौटियाल वैसे तो करीब एक दशक से पार्श्व गायिकी में अपने गाए रूमानी गीतों की वज़ह से युवाओं के चहेते गायक रहे हैं पर जबसे उनका गीत बजाओ ढोल स्वागत में, मेरे घर राम आए हैं वायरल हुआ है तबसे क्या बच्चे और क्या बड़े सब उनके गाए गीत के साथ भक्तिमय हुए जा रहे हैं। देहरादून से ताल्लुक रखने वाले इस उभरते गायक ने कई सारे फिल्मी और गैर फिल्मी एल्बमों में गाने गाए हैं पर मुझे बजरंगी भाईजान के लिए उनका गाया हुआ नग्मा कुछ तो बता जिंदगी मेरा पता जिंदगी... सबसे प्रिय है।

गीतमाला को आगे बढ़ाते हुए आज पेश है उन्हीं का गाया फिल्म मिशन मजनू का एक बेहद सुरीला नग्मा जिसके मुखड़े की मेलोडी आपको कहीं से भी खींच कर ये गीत सुनने को मजबूर कर देगी।

इस गीत की धुन बनाई है तनिष्क बागची ने और हिंदी पंजाबी मिश्रित बोल लिखे हैं शब्बीर अहमद ने। आपको याद होगा कि पिछले साल तनिष्क बागची और जुबीन की इसी जोड़ी का गीत राता लंबियाँ हर महफिल की रौनक बना था।

जुबीन की आवाज़ का तो कहना ही क्या! सीधे दिल को जा कर लगती है। मुखड़ा तो जितनी बार गुनगुनाया जाए मन नहीं भरता पर अंतरों में ऊँचे सुरों में उनका ये माधुर्य थोड़ा फीका जरूर पड़ जाता है। तनिष्क की धुन तो मधुर है पर पर मुखड़े के पहले और  इंटरल्यूड्स में राताँ लंबियाँ वाले संगीत संयोजन का दोहराव स्पष्ट दिखता है।


मिशन मजनू की नायिका नेत्रहीन हैं और बला की खूबसूरत भी। ज़ाहिर है हमारे मज़नूँ जी का दिल उन पर आ जाता है। जो आँखें देख ना सकें वो अपने भावों से बहुत कुछ सिखा जाती हैं सामने वाले इंसान को। शब्बीर इसी भाव को गीत में अपने सहज शब्दों से सँवारते हैं।

कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा, 
तैनूँ कितनी मोहब्बताँ दिल करदा
हाँ तेरे वाजू जी नहीं लगदा
रोग ये लगा इशक का
हर दुआ में तैनूँ मँगदा
कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा, 

ओ रे ओ रे तेरे नैना, 
छीन ले गए  दिल का चैना
इनमें झलके है ना ये जग सारेया

इश्क़ ये कैसे होता है
रंग ये कैसे खिलते हैं
देखूँ ये तेरी इन आँखों में

चाँदनी ये क्या होती है
दीप ये जलते कैसे हैं
देखूं ये तेरी इन आँखों में

हो ना जाने कब दिन चढ़ दा
कुछ वी पता नही चलदा
हर दुआ में तैनूँ मँगदा
कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा, 
तैनूँ कितनी मोहब्बताँ दिल करदा..

देख दुनिया मेरी आँखियों से
मैं रखाँगा तैनूँ पलकों पर
इक उम्र का सौदा ना करिये
वादे कर दूँ सातों जन्मों के
कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा...



 
मिशन मजनू का ये गीत फिल्माया गया है सिद्धार्थ और रश्मिका पर


वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    बुधवार, जनवरी 31, 2024

    वार्षिक संगीतमाला 2023 : ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते

    वार्षिक संगीतमाला में अब तक आपने कुछ रूमानी और कुछ थिरकते गीतों का आनंद उठाया पर आज जिस गीत का चुनाव मैंने किया है उसका मिज़ाज मन को धीर गंभीर करने वाला है और मेरा विश्वास है कि उसमें निहित संदेश आपको अपने समाज का आईना जरूर दिखाएगा। 

    हिंदी फिल्मों में फ़ैज़ की नज़्मों और ग़ज़लों का बारहा इस्तेमाल किया गया है। कभी किरदारों द्वारा उनकी कविता पढ़ी गयी तो कभी उनके शब्द गीतों की शक़्ल में रुपहले पर्दे पर आए। फ़ैज़ की शायरी की एक खासियत थी कि उन्होने रूमानी शायरी के साथ साथ तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक हालातों पर भी लगातार अपनी लेखनी चलाई और इसीलिए जनमानस ने उन्हें बतौर शायर एक ऊँचे ओहदे से नवाज़ा। लोगों ने जितने प्रेम से मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग को पसंद किया उतने ही जोश से सत्ता के प्रति प्रतिकार को व्यक्त करती उनकी नज़्म हम देखेंगे को भी हाथों हाथ लिया।



    फ़ैज़ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे। सर्वहारा वर्ग के शासन के लिए वो हमेशा अपनी नज़्मों से आवाज उठाते रहे। बोल की लब आजाद हैं तेरे....उनकी एक ऐसी नज़्म है जो आज भी जुल्म से लड़ने के लिए आम जनमानस को प्रेरित करने की ताकत रखती है। पिछले कुछ वर्षों में उनकी नज़्म के इस रंग को हिंदी फिल्मों में लगातार जगह मिली हो। कुछ साल पहले पल्लवी जोशी ने Buddha In A Traffic Jam'.फ़क़त चंद रोज़ मेरी जान को आवाज़ दी थी। नसीरुद्दीन शाह एक फिल्म में ये दाग दाग उजाला को अपनी आवाज़ दे चुके हैं। हैदर में उनकी ग़ज़ल का इस्तेमाल करने वाले विशाल भारद्वाज ने इस बार पिछले साल की शुरुआत में कुत्ते फिल्म के शीर्षक गीत के तौर पर फ़ैज़ की इसी नाम की नज़्म का इस्तेमाल किया।

    अपने समाज के दबे कुचले, बेघर, बेरोजगार, आवारा फिरती आवाम में जागृति जलाने के उद्देश्य से फैज ने प्रतीकात्मक लहजे में उनकी तुलना गलियों में विचरते आवारा कुत्तों से की। किस तरह आम जनता नेताओं, रसूखदारों, नौकरशाहों के खुद के फायदे के लिए उनकी चालों में मुहरा बन कर भी अपना दर्द चुपचाप सहती रहती है, ये नज़्म उसी ओर इशारा करती है।

    ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
    कि बख्शा गया जिनको ज़ौक़ ए गदाई*
    ज़माने की फटकार सरमाया** इनका
    जहां भर की दुत्कार इनकी कमाई

    ना आराम शब को ना राहत सवेरे
    ग़लाज़त*** में घर , नालियों में बसेरे
    जो बिगड़ें तो एक दूसरे से लड़ा दो
    जरा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
    ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
    ये फ़ाक़ों से उकता के मर जाने वाले
    ये मज़लूम मख़्लूक़^ गर सर उठाये
    तो इंसान सब सरकशीं^^ भूल जाए
    ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
    ये आकाओं की हड्डियाँ तक चबा लें
    कोई इनको एहसासे ज़िल्लत^^^ दिला ले
    कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे

    *भीख मांगने की रुचि **संचित धन ***गंदगी ^ आम जनता ^^घमंड ^^^ अपमान की अनुभुति

    फैज को विश्वास था कि गर आम जनता को अपनी ताकत का गुमान हो जाए तो वो बहुत कुछ कर सकती है।रेखा भारद्वाज की आवाज़ में ये नज़्म हमारे हालातों पर करारी चोट करती हुई दिल तक पहुँचती है। विशाल कोरस में भौं भौं का अनूठा प्रयोग करते हैं। इस भूल जाने वाले एल्बम में ये नज़्म एकमात्र ऐसा नगीना है जिसे लोग कई दशकों बाद तक याद रखेंगे।
      
     

    वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
    1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
    2. तुम क्या मिले
    3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
    4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
    5. आ जा रे आ बरखा रे
    6. बोलो भी बोलो ना
    7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
    8. नौका डूबी रे
    9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
    10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
    11. वे कमलेया
    12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
    13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
    14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
    15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
    16. बाबूजी भोले भाले
    17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
    18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
    19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
    20. ओ माही ओ माही
    21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
    22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
    23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
    24. दिल झूम झूम जाए
    25. कि रब्बा जाणदा

      शुक्रवार, जनवरी 26, 2024

      वार्षिक संगीतमाला 2023 : ओ माही ओ माही तेरी वफ़ा पर हक़ हुआ मेरा

      वार्षिक संगीतमाला की अगली कड़ी में आज एक गीत फिल्म डंकी से। ये फिल्म तो लोगों ने उतनी पसंद नहीं की, हां पर इसके एक दो गाने यू ट्यूब पर खूब बजे, इंस्टा की रीलों पर छा गए। अब इसका सबसे ज्यादा श्रेय तो मैं संगीतकार प्रीतम को देना चाहता हूं।

      प्रीतम एक ऐसे संगीतकार हैं जिनकी मेलोडी पर जबरदस्त पकड़ है। वो ये बखूबी समझते हैं कि श्रोताओं को कैसी सिग्नेचर धुन, कैसे इंटरल्यूड्स पसंद आयेंगे। ज्यादातर वे इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्य के साथ अपने गीत रचते हैं जो उनकी बनाई धुनों के साथ न्याय करने में सक्षम हैं।


      तो डंकी फिल्म का जो गीत मेरे पसंदीदा गीतों की सूची में आया है वो है ओ माही ओ माही। मुखड़े के पहले के बीस सेकेंड में ही प्रीतम अपनी आरंभिक धुन से ध्यान खींच लेते हैं।

      माही शब्द को केंद्र में ले के दर्जनों गीत बन होंगे पर मजाल है कि श्रोता आज तक इससे ऊबे हों। इस गीत की तो ओ माही के दुहराव वाली पंक्ति ही लोगों के मन में रच बस गई है। दरअसल आज भी युवा अपने प्रेम का इज़हार करने के लिए ऐसे फिल्मी गीतों का सहारा लेते हैं जिसके बोल प्यारे पर सहज हों और जिसका संगीत कर्णप्रिय हो।

      वार्षिक संगीतमाला का ये गीत किस पायदान पर अंततः आएगा उसका खुलासा तो बाद में होगा पर इतना तो तय है कि सुरीले गीतों की इस साल की फेरहिस्त में अरिजीत सिंह का नाम बार बार आएगा।

      तो अगर आपने इरशाद कामिल का लिखा ये गीत न सुना हो तो सुन लीजिए।

      यारा तेरी कहानी में, हो जिकर मेरा
      कहीं तेरी खामोशी में, हो फिकर मेरा
      रुख तेरा जिधर का हो हो उधर मेरा
      तेरी बाहों तलक ही है ये सफ़र मेरा
      ओ माही ओ माही..ओ माही ओ माही
      तेरी वफ़ा पर हक़ हुआ मेरा
      ओ माही ओ माही...ओ माही ओ माही
      लो मैं क़यामत तक हुआ तेरा..

      बातों को बहने दो बाहों में रहने दो 
      हैं सुकून इनमें 
      रास्ते हो बेगाने, झूठे वो अफसाने 
      तू न हो जिनमें 
      हो थोड़ी उमर है प्यार ज़्यादा मेरा 
      कैसे बताएं ये सारा तेरा होगा 
      मैंने मुझे है तुझको सौंपना 
      राहों पे बाहों पे राहों पनाहों पे आहों पे बाहों पे 
      साहों सलाहों पे मेरे इश्क़ पे हुआ हक़ तेरा
      ओ माही ओ माही...ओ माही ओ माही
      लो मैं क़यामत तक हुआ तेरा..

      रविवार, जनवरी 21, 2024

      वार्षिक संगीतमाला 2023 रुआँ रुआँ खिलने लगी है जमीं ...

      वार्षिक संगीतमाला के गीत इस साल किसी क्रम में नहीं आ रहे। पिछले साल के अपने सारे पसंदीदा गीतों को सुनवाने के बाद सारी पायदानों का खुलासा होगा सरताज गीत के साथ। पिप्पा का झूमता झुमाता गीत तो मैंने पिछली पोस्ट में सुनवाया ही था। आशा है गीत के साथ साथ ईशान खट्टर के थिरकने का अंदाज आपको भाया होगा।

      आज जिस गीत को मैं अपनी इस संगीतमाला में पेश कर रहा हूँ, वो बिल्कुल अलग प्रकृति का होते हुए दो बातों में पिछले गीत से मेल खाता है। पहली तो ये कि पिप्पा के गीत की तरह इस गीत को भी आप रेट्रो की श्रेणी में डाल सकते हैं और दूसरे ये कि इस गीत की संगीत रचना भी ए आर रहमान के हाथों हुई है। ये गीत है रुआँ रुआँ जो पिछले साल अप्रैल में रिलीज़ फिल्म पोन्नियिन सेल्वन 2 का अहम हिस्सा था। अगर आप इस फिल्म के शीर्षक के अर्थ को लेकर सशंकित हों तो ये बता दूँ इसका सीधा सा अर्थ है पोन्नी का बेटा। अब पोन्नी कौन है? प्राचीन तमिल साहित्य में पोन्नी,कावेरी नदी को कहा जाता था। इसी नदी के आसपास चोल साम्राज्य फला फूला।  पोन्नियिन सेल्वन फिल्म इसी नाम के ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित है।

       

      फिल्म के इस रोमांटिक गीत को लिखा गुलज़ार साहब ने। गुलज़ार, मणिरत्मन और रहमान जब भी एक साथ हुए हैं फिल्म संगीत ने नई ऊँचाइयों को छुआ है। साथिया, दिल से व गुरु के कितने ही गाने आज तक हमारी आपकी जुबां पर चढ़े हुए हैं। 

      रहमान रुआँ रुआँ के बारे में कहते हैं कि उन्होंने जिन आठ दस धुनों को तैयार कर के रखा था उसमें मणिरत्नम जी ने सबसे उलझी हुई धुन चुनीं। गीत की शुरुआत पहले रुआँ से न होकर आगे से थी। जब गुलज़ार से उस शब्द से गीत शुरु करने को कहा गया तो उन्होंने बाद की पंक्तियाँ बदल दीं।  गुलज़ार ने बड़ा प्यारा मुखड़ा रचा है इस गीत का। मंद मंद नीम बंद अधखुली वाली पंक्ति सुन कर दिल मुलायमियत से भर उठता है। बाकी गुलज़ार हैं तो इस रूमानी गीत में फूल, शबनम, जुगनू बादल और चाँद की चमक तो रहेगी ही।


      रुआँ रुआँ खिलने लगी है जमीं ओ
      तेरी ही तो खुशबू है न कहीं ओ
      मंद मंद, नीम बंद, नैनों से कहीं ओ
      आके बांके तूने कहीं झाँका तो नहीं

       
      सज़ा मिली है प्यार की, क़ैदी हूँ बहार की
      बंदी बनके ही रहूँ, मर्ज़ी है मेरे यार की
       
      रुआँ रुआँ खिलने लगी है..तूने कहीं झाँका तो नहीं
       
      फूलों पे शबनम, हौले से उतरे
      जुगनू जलाएं, रौशनी के कतरे
      जाऊँ जो चमन में, पंछी पुकारे
      आजा रे कोयल, आरती उतारे

      चाँद ढूंढते हैं आसमां खोल के,
      भूल गए बादल दिन है कि रात है
      आँखों में ख़्वाब ही ख़्वाब भरे हैं
      नींद नहीं आती…

      रुआँ रुआँ खिलने लगी है जमीं ओ...


      रहमान ने इस गीत के लिए  बतौर गायिका शिल्पा राव का चुनाव किया। शिल्पा की आवाज़ की बुनावट एकदम अलग सी तो है ही और वो बेहद हुनरमंद गायिका भी हैं। कुछ साल पहले कलंक और इस साल पठान में गाए उनके गीतों ने सफलता के नए कीर्तिमान बनाए हैं। उनके गाए पिछले गीतों की तुलना में ये काफी कठिन गीत था क्यूँकि इसकी धुन मुखड़े, पहले अंतरे से दूसरे अंतरे तक पहुँचते पहुँचते कई मोड़ तय करती है जिसे निभाना इतना आसान नहीं है। रहमान का गीत गाना किसी भी गायक या गायिका के लिए गौरव की बात होती है और शिल्पा ने इसे चुनौती कै रूप में स्वीकार किया।

      रहमान के गीतों में वॉयलिन और बाँसुरी का बखूबी इस्तेमाल होता है। यहाँ कुछ अंशों में इनके अलावा वीणा की हल्की सी खनक भी है। सज़ा मिली है वाले हिस्सा सुनकर साठ के दशक के गीतों की याद आ जाती है। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे हिंदी के साथ साथ तमिल, तेलगु, मलयालम और कन्नड़ में भी रचा गया है।


      वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
      1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
      2. तुम क्या मिले
      3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
      4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
      5. आ जा रे आ बरखा रे
      6. बोलो भी बोलो ना
      7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
      8. नौका डूबी रे
      9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
      10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
      11. वे कमलेया
      12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
      13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
      14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
      15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
      16. बाबूजी भोले भाले
      17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
      18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
      19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
      20. ओ माही ओ माही
      21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
      22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
      23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
      24. दिल झूम झूम जाए
      25. कि रब्बा जाणदा

        गुरुवार, जनवरी 18, 2024

        वार्षिक संगीतमाला 2023 : मैं परवाना तेरा नाम बताना

        पिछले साल से एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं का सिलसिला रुका रुका सा है। इसका मुख्य कारण कोविड के बाद से बहुतेरी फिल्मों का OTT प्लेटफार्म पर रिलीज़ होना है। कई बार इन फिल्मों के गाने ढूँढने से भी नहीं मिलते। पहले मैं साल में प्रदर्शित हर फिल्म के गीतों को सुनकर अपनी संगीतमाला को अंतिम रूप देता था पर अब ये दावा करना मुश्किल है। पर पिछले कुछ दिनों से एक शाम मेरे नाम के कई पुराने पाठकों ने गुजारिश करी है कि ये सिलसिला फिर से शुरु किया जाए। अब उनके प्रेम को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल था इसलिए लगा कि एक कोशिश तो करनी ही चाहिए।

        तो चलिए आरंभ करते हैं इस साल की संगीतमाला को तड़कते फड़कते गीत से जिसे लिखा शैली ने,धुन बनाई ए आर रहमान ने और आवाज़ दी अरिजीत सिंह ने।


        भारत बांग्लादेश युद्ध पर बनी फिल्म पिप्पा के इस गीत की खासियत है अरिजीत सिंह ने किस तरह अपनी आवाज़ और गाने के तरीके में बदलाव किया। ये गीत उनकी बहुआयामी गायिकी का एक जीता जाता उदहारण है। इस गीत में अरिजीत का बखूबी साथ दिया है सहगायिका पूजा तिवारी और निशा शेट्टी ने। ट्रम्पेट,गिटार, एकार्डियन और ताल वाद्यों से रहमान की सजी सँवरी धुन आपको थिरकने पर मजबूर कर देगी। एक बार सुनिये तो सही..

        इस गीत द्वारा इशान खट्टर ने भी दिखा दिया है कि वे डांस करने में किसी से कम नहीं हैं। पूरा गीत तो ब्लॉग पर ही सुन पाएँगे पर यहाँ देखिए उसकी एक झलक

        मैं परवाना.. तेरा नाम बताना 
        तेरे प्यार में जलना जलाना 
        यूँ नज़रें उठाना यूँ नज़रें गिराना 
        तू शम्मा मैं हूँ मस्ताना 
        दिल पे वार वार वार ऐसा किया 
        Arrow आर पार यार कर दिया 
        चढ़ी हुई है गरारी अड़ी हुई है 
        मैं फौजी आज टिप्सी हो गया


        वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
        1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
        2. तुम क्या मिले
        3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
        4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
        5. आ जा रे आ बरखा रे
        6. बोलो भी बोलो ना
        7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
        8. नौका डूबी रे
        9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
        10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
        11. वे कमलेया
        12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
        13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
        14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
        15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
        16. बाबूजी भोले भाले
        17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
        18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
        19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
        20. ओ माही ओ माही
        21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
        22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
        23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
        24. दिल झूम झूम जाए
        25. कि रब्बा जाणदा

          मंगलवार, नवंबर 21, 2023

          एक अकेला इस शहर में : घरौंदा फिल्म का कालजयी गीत

          महानगरीय ज़िदगी में एक अदद घर की तलाश कितनी मुश्किल, कितनी भयावह हो सकती है एक प्रेमी युगल के लिए, इसी विषय को लेकर सत्तर के दशक में एक फिल्म बनी थी घरौंदा। श्रीराम लागू, अमोल पालेकर और ज़रीना वहाब अभिनीत ये फिल्म अपने अलग से विषय के लिए काफी सराही भी गयी थी।


          मुझे आज भी याद है कि हमारा पाँच सदस्यीय परिवार दो रिक्शों में लदकर पटना के उस वक़्त नए बने वैशाली सिनेमा हाल में ये फिल्म देखने गया था। फिल्म तो बेहतरीन थी ही इसके गाने भी कमाल के थे। दो दीवाने शहर में, एक अकेला इस शहर में, तुम्हें हो ना हो मुझको तो .. जैसे गीतों को बने हुए आज लगभग पाँच दशक होने को आए पर इनमें निहित भावनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक, उतनी ही अपनी लगती हैं।

          जयदेव का अद्भुत संगीत गुलज़ार और नक़्श ल्यालपुरी की भावनाओं में डूबी गहरी शब्द रचना और भूपिंदर (जो भूपेंद्र के नाम से भी जाने जाते हैं) और रूना लैला की खनकती आवाज़ आज भी इस पूरे एलबम से बार बार गुजरने को मजबूर करती रहती हैं। 

          आज इसी फिल्म का एक गीत आपको सुना रहा हूँ जिसे ग़ज़लों की सालाना महफिल खज़ाना में मशहूर गायक पापोन ने पिछले महीने अपनी आवाज़ से सँवारा था। 

          फिल्म के इस गीत को लिखा था गुलज़ार साहब ने।  गुलज़ार की लेखनी का वो स्वर्णिम काल था। सत्तर के दशकों में उनके लिखे गीतों से फूटती कविता एक अनूठी गहराई लिए होती थी। इसी गीत में एक अंतरे में नायक के अकेलेपेन और हताशा की मनःस्थिति को उन्होने कितने माकूल बिंबों में व्यक्त किया है। गुलज़ार लिखते हैं

          दिन खाली खाली बर्तन है 
          और रात है जैसे अंधा कुआँ
          इन सूनी अँधेरी आँखों में
          आँसू की जगह आता है धुआँ

          अपना घर बार छोड़ कर जब कोई नए शहर में अपना ख़ुद का मुकाम बनाने की जद्दोजहद करता है तो अकेले में गुलज़ार की यही पंक्तियाँ उसे आज भी अपना दर्द साझा करती हुई प्रतीत होती हैं।

          इन उम्र से लंबी सड़कों को
          मंज़िल पे पहुँचते देखा नहीं
          बस दौड़ती-फिरती रहती हैं
          हमने तो ठहरते देखा नहीं
          इस अजनबी से शहर में
          जाना-पहचाना ढूँढता है
          ढूँढता है, ढूँढता है

          संगीतकार जयदेव ने भी कितने प्यारे इंटल्यूड्स रचे थे इस गीत में जो दौड़ती भागती मुंबई के बीच नायक की उदासी ओर एकाकीपन कर एहसास को और गहरा कर देते थे। आपने ध्यान दिया होगा कि मुखड़े के बाद सीटी का भी कितना सटीक इस्तेमाल जयदेव ने किया था। वायलिन व गिटार के अलावा अन्य तार वाद्य भी गीत का माहौल को आपसे दूर होने नहीं देते।

          तो सुनिए पापोन की आवाज़ में गीत का यही अंतरा। इस महफिल में उनके साथ अनूप जलोटा और पंकज उधास तो हैं ही, साथ में कुछ नए चमकते सितारे जाजिम शर्मा, पृथ्वी गंधर्व व हिमानी कपूर जिन्होंने मूलतः ग़ज़लों के इस कार्यक्रम में अपनी गायिकी से श्रोताओं का मन मोहा था।



          फिल्म घरौंदा में ये गीत अमोल पालेकर पर फिल्माया गया था। जो गीत ज़िंदगी की सच्चाइयों को हमारे सामने उजागर करते हैं, हमें अपने संघर्षों के दिन की याद दिलाते हैं उनकी प्रासंगिकता हर पीढ़ी के लिए उतनी ही होती है। गुलज़ार के लफ्जों में कहूँ तो ऐसे गीत कभी बूढ़े नहीं होते। उनके चेहरे पर कभी झुर्रियाँ नहीं पड़ती। एक अकेला इस शहर में एक ऐसा ही नग्मा है...

          रविवार, सितंबर 10, 2023

          क्यों जगजीत का प्यार जल्दी जल्दी था और चित्रा का आहिस्ता आहिस्ता?

          जगजीत सिंह ने न जाने कितनी भावप्रवण ग़ज़लें गाई होंगी पर अपने कंसर्ट के बीचों बीच चुटकुले सुनकर माहौल को एकदम हल्का फुल्का कर देना उन्हें बखूबी आता था। उनके और लता जी की मजाहिया स्वभाव का नतीजा ये था कि जब भी वे लोग साथ मिलते आधा घंटा एक दूसरे को चुटकुले सुनाने के लिए तय होता था।

          जगजीत जी के साथ चित्रा जी ग़ज़लों की एक महफ़िल  में 

          अपनी निजी ज़िंदगी में भी वो ऐसे ही थे। आज उनका एक बेहद पुराना वीडियो मिला जहां वे दोस्तों की एक महफिल में अपनी मशहूर गजल सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता सुना रहे हैं। इधर कुछ जल्दी जल्दी है और उधर कह कर उनका चित्रा की ओर मजाहिया लहजे में देखना लाजवाब कर गया। साथ ही ये वीडियो मुझे उनके जीवन को वो मोड़ याद दिला गया जहां से उन्होंने साथ साथ रहने का निश्चय किया था।

          दरअसल चित्रा जी की पहली शादी अपने से कहीं ज्यादा उम्र के देबू दत्ता से हुई थी। रिश्ता देबू की तरफ से ही आया था पर बाद में उन्हें लगा कि उन्होंने अपने लिए बेमेल हमसफ़र चुन लिया है। चित्रा को दूसरा घर दिलाकर वो अलग रहने लगे और बाद में उनसे तलाक ले लिया। इस अलग अलग रहने से थोड़े दिन पहले ही जगजीत चित्रा के संपर्क में आए थे। जब चित्रा अपनी बेटी के साथ अलग रहने लगीं तो वो उन दोनों का ख्याल रखने लगे। साथ साथ जिंगल गाने से लेकर कंसर्ट तक करने में ये रिश्ता और प्रगाढ़ हुआ और एक दिन बुखार में तपते शरीर लिए जगजीत ने चित्रा से प्रणय निवेदन भी कर दिया।

          पर चित्रा जी की मानसिक स्थिति जगजीत के प्रेम को तुरंत स्वीकार करने के लायक नहीं थी। एक तो कागजी तौर पर पहले पति से तलाक हुआ नहीं था और दूसरे बेटी को ले के भी वो असमंजस की स्थिति में थीं। इसलिए अंतिम हामी भरने के पहले हमारे जगजीत जी को उनके घर के कई चक्कर लगाने पड़े।

          अब वीडियो देखिए और समझिए कि जगजीत ने जल्दी जल्दी  किस मजाहिया लहजे में कहा और कितने शरारती अंदाज़ में आहिस्ता आहिस्ता कह कर चित्रा की ओर देखा। सबके सामने जगजीत को ऐसा करते देख चित्रा जी शर्मा गईं। उनकी शर्मीली खिलखिलाहट और जगजीत जी का गाने का तरीका आप सब के मन को भी जरूर आनंदित करेगा ऐसा मेरा विश्वास है :)।


          जगजीत जी की अवाज़ में पूरी ग़ज़ल की लिंक ये रही

          रविवार, अगस्त 20, 2023

          लबों से बात करो.... या लबों को मिल जाने दो

          लबों यानी होंठों का चर्चा हिंदी फिल्मी गीतों और शेर ओ शायरी में अक्सर आता रहा है। जब स्कूल में थे तो पहली बार होठों से जुड़े हुए गीत से जगजीत जी की अनमोल आवाज़ से पहला परिचय हुआ था और वो गीत इस क़दर जुबां पर चढ़ गया था कि अपने शर्मीलेपन को परे रख अपनी शिक्षिका के सामने उसे गुनगुनाया था... होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो, बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो। 

          लबों की बात करते हुए फिल्मों में और भी गीत आते रहे। मसलन गुलज़ार का लिखा लबों से चूम लो आँखों से थाम लो मुझको या फिर हाल फिलहाल में केके का गाया लबों को लबों से सजाओ।

          अब अगर लबों से जुड़ी ग़ज़लों का रुख किया जाए तो मुझे चित्रा जी की गाई एक ग़ज़ल याद आ रही है जिसे मुजफ्फर वारसी ने लिखा था,

          लब ए ख़ामोश से इज़हार ए तमन्ना चाहे
          बात करने को भी तस्वीर का लहजा चाहे

          और फिर मीर तक़ी मीर के उस अमर शेर से कौन वाकिफ़ नहीं होगा

          नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
          पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

          पर आज मुझे इन लबों का ख्याल आया कैसे? दरअसल विशाल शेखर की संगीतकार जोड़ी के शेखर रविजानी ने पिछले महीने  इसी ज़मीन से जुड़ी विशुद्ध रूप से ग़ज़ल तो नहीं पर एक ग़ज़लनुमा गीत रिलीज़ किया। इस गीत को लिखा है प्रिया सरैया ने और इसे गाया है मधुबंती बागची ने।

          मधुबंती बागची

          मधुबंती ने पढ़ाई तो इंजीनियरिंग की की है पर साथ ही साथ शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा भी लेती रही  हैं। पिछले एक दशक से बंगाली फिल्मों में उन्हें गाने के मौके मिलते रहे हैं और विगत कुछ सालों से मुंबई में Independent Music की ओर बढ़ते इस दौर में बतौर गायिका और कम्पोजर अपना मुकाम बना रही हैं।

          गीत की शुरुआत उनके शानदार आलाप से होती है और फिर आती है सारंगी की मधुर तान जिसे बजाया है दिलशाद खाँ ने।  शेखर इस बात के लिए दोहरी तरीफ़ के काबिल हैं कि न केवल उन्होंने एक शानदार धुन बनाई बल्कि मधुबंती की आवाज़ का इस्तेमाल किया जो इस नज़्म को चार चाँद लगाता है। मधुबंती की आवाज़ मधुर चाशनी में घुली न हो के शुभा मुद्गल जैसी मजबूती के साथ कानों तक पहुँचती है।

          इस गीत की रिकार्डिंग पुराने ज़माने की तरह Live हुई है। Music Arranger का किरदार निभाया है दीपक पंडित जी ने जो ख़ुद भी एक बेहतरीन संगीतकार हैं ।  वायलिन बजाने में उनकी माहिरी की वज़ह से जगजीत जी अपनी वादक मंडली में उन्हें हमेशा साथ रखते थे।

          प्रिया सरैया के बोल बेहतरीन है। कितनी सादगी से वो दिल की बात जुबां पर लाने की सलाह देती हैं और अगर वो ना हो पाए तो अपने प्यार को लबों से महसूस करने की वकालत करती हैं। वक़्त का क्या भरोसा ये साँसें आज हैं कल ना रहें, या हमारी भावनाएँ ही मर जाएँ। अंतरे में चाँद के विविध रूपों से इश्क़ की तुलना भी अच्छी लगती है।

          ये है इसके गीत संगीत के पीछे की पूरी टीम (गीतकार को छोड़कर)

          लबों से बात करो

          या लबों को मिल जाने दो

          साँसें रुक जाएँ कहीं
          दिल बदल जाए कहीं
          लबों का जो काम है
          आज उन्हें कर जाने दो
          लबों से बात करो...

          ये.. माहताब.. रोज़ आता है
          कभी आधा.., कभी उजड़ा..
          कभी ये पूरा.. है
          इश्क़ कुछ ऐसा ही है
          मानो कुछ ऐसा ही है
          इश्क़ ये आज हमें 
          अपना, पूरा कर जाने दो

          तो आइए सुनते हैं ये नज़्म




          शुक्रवार, अप्रैल 14, 2023

          हसीन ख़्वाब को सच्चा समझ रहा है कोई... Haseen Khwab by Kavya Limaye

          आजकल संगीत जगत में एक चलन देखने में आ रहा है कि अगर कोई गीत थोड़े गंभीर मूड का हो तो उसे ग़ज़ल  की श्रेणी में डाल दो भले ही वो गीत ग़ज़ल के व्याकरण से कोसों दूर हो। यहाँ तक कि ऐसी श्रेणी बनाकर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कार भी बाँटे जा रहे हैं। ग़ज़ल की बारीकियों से आम जन भले वाकिफ़ न हों पर संगीत जगत से जुड़े लोगों में ऐसी अनभिज्ञता अखरती है। पर इस माहौल में भी अच्छी ग़ज़लें बन रही हैं और उसे युवा गायक बड़े बेहतरीन तरीके से निभा रहे हैं। हाँ ये जरूर है कि आज की शायरी का वो स्तर देखने को नहीं मिल रहा जिसकी वज़ह से हम सभी मेहदी हसन, नूरजहाँ गुलाम अली, जगजीत सिंह की गाई ग़ज़लों के मुरीद थे। 


          ग़ज़ल की जान हैं उसमें समाहित शब्द और उनकी गहराई। जगजीत जी इस बात को बखूबी समझते थे इसलिए उन्होंने अपनी ग़ज़लों का चुनाव ऐसा किया जिनके मिसरों में खूबसूरत कविता तो थी पर बिना भारी भरकम शब्दों का बोझ लिए। बाकी कमाल तो उनकी रूहानी आवाज़ का था ही जो श्रोताओं के दिल तक सीधे पहुँचती थी। गीत तो धुन पर भी चल जाते हैं पर ग़ज़लें बिना गहरे भाव के दिल में हलचल नहीं मचा पातीं। 

          मीर देसाई, योगेश रायरीकर और काव्या लिमये

          ऐसी ही एक बेहतरीन ग़ज़ल से कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात हुई जिसे लिखा शायर संदीप गुप्ते जी ने और धुन बनाई योगेश रायरीकर ने। इसे अपनी आवाज़ दी है काव्या लिमये ने जिन्हें आपने इस साल टीवी पर बारहा देखा ही होगा। योगेश रायरीकर जी की धुन कमाल की है जिसे युवा संयोजक मीर देसाई ने अशआर के बीच गिटार, सैक्सोफोन और बाँसुरी का प्रयोग कर के और निखारा है। जैसे मैंने पहले भी कहा शब्द और उसे बरतने का गायक या गायिका का तरीका ग़ज़ल की जान होता है। संगीत का काम सिर्फ सहायक की भूमिका अदा करना होता हैं ताकि वो माहौल बन जाए जिसमें ग़ज़ल रची बसी है। इतनी कम उम्र में भी मीर देसाई ने इस बात को बखूबी समझा है।

          भोपाल में पले बढ़े डा.संदीप गुप्ते को शायरी का चस्का किशोरावस्था में ही लग गया था। बाद में मुंबई नगरपालिका में बतौर अभियंता काम करते हुए उन्होंने अपना ये शौक़ जारी रखा। उनकी रचनाओं को सुरेश वाडकर जी ने भी अपनी आवाज़ दी है। उनकी इस ग़ज़ल के अशआर पर ज़रा गौर फरमाएँ।

          हसीन ख़्वाब को सच्चा समझ रहा है कोई
          फक़त गुमान को दुनिया समझ रहा है कोई

          मेरे ख्यालों का इज़हार क्यूँ करूँ मैं फ़ज़ूल
          मेरी ख़ामोशी को अच्छा समझ रहा है कोई

          किसी का कोई नहीं हूँ यहाँ मगर फिर भी
          न जाने क्यूँ मुझे अपना समझ रहा है कोई

          सवाल ये नहीं किस किस को कोई समझाए
          सवाल ये है कि क्या क्या समझ रहा है कोई

          डा.संदीप गुप्ते

          गुप्ते साहब का ख़ामोशी वाला शेर पढ़ते मुझे गीत चतुर्वेदी की किताब "अधूरी चीजों का देवता" याद आ गयी जिसमें उन्होने लिखा था "जिसकी अनुपस्थिति में भी तुम जिससे मानसिक संवाद करते हो, उसके साथ तुम्हारा प्रेम होना तय है"। किसी की ख़ामोशी को पढने की बात भी कुछ ऐसी ही है। ग़ज़ल का अंतिम शेर भी मुझे प्यारा लगा।वैसे गुप्ते साहब ने एक शेर और लिखा था इस ग़ज़ल में जिसे यहाँ शामिल नहीं किया गया। वो शेर था...

          मेरी नज़र में बड़ी है हर इक छोटी खुशी
          मेरे ख्याल को छोटा समझ रहा है कोई

          काव्या एक संगीत से जुड़े परिवार से आती हैं। उनके माता पिता कुछ दशकों से गुजराती संगीत जगत में बतौर गायक सक्रिय हैं। वे इस बार के Indian Idol के अंतिम दस में शामिल थीं और वहाँ उन्होंने कहा भी था कि वो अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हैं। जिस तरह के गीत उन्होंने इस प्रतियोगिता में गाए उससे मेरे लिए ये अंदाज़ लगा पाना मुश्किल था कि वो ऐसी ग़ज़लों को भी शानदार तरीके से निभा सकती हैं। अच्छे उच्चारण के साथ जिस ठहराव की जरूरत थी इस ग़ज़ल को वो उनकी अदाएगी में स्पष्ट दिखी। काव्या कहती हैं कि ये उनके संगीत कैरियर की शुरुआत है और अभी उन्हें काफी कुछ सीखना है। अगर उनकी निरंतर अपने में सुधार लाने की इच्छा बनी रही तो वे संगीत के क्षेत्र में निश्चय ही कई बुलंदियों को छुएँगी ऐसा मेरा विश्वास है।

          इस ग़जल की रिकार्डिंग तो बड़ौदा में हुई पर आखिरी स्वरूप में आते आते इसे करीब एक साल का समय लग गया। दो महीने पहले इसी साल इसे रिलीज़ किया गया। तो आइए सुनते हैं काव्या की आवाज़ में ये ग़ज़ल

          रविवार, फ़रवरी 26, 2023

          गुल खिले चाँद रात याद आई.. नूरजहाँ की आवाज़ में शहज़ाद जालंधरी का कलाम

          बहुत ऐसे शायर रहे जिनकी कोई एक ग़ज़ल किसी मशहूर फ़नकार ने गाई और वो बरसों तक उसी ग़ज़ल की वज़ह से जाने जाते रहे। शहज़ाद जालंधरी साहब की ये ग़ज़ल नूरजहाँ जी ने गाई और इसकी शोहरत इसी बात से है कि इस ग़ज़ल को आज भी नए गायक उसी तरह गुनगुना रहे हैं और श्रोताओं की वाहवाही लूट रहे हैं। कल जब प्रतिभा सिंह बघेल की आवाज़ में सालों बाद इस ग़ज़ल का एक टुकड़ा सुना तो पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं जब हम इसे नूरजहाँ और आशा जी की आवाज़ में सुना करते थे।


          जो प्यार के लम्हे होते हैं वो बड़े छोटे होते हैं। उनको पकड़ के रखना आसान नहीं होता खासकर तब जब वो शख़्स ही आपकी ज़िंदगी से निकल जाए। ऐसे में रह जाती हैं तो सिर्फ यादें और प्रकृति के वो रूप जो आपके प्रेम के साक्षी रहे थे। शहज़ाद जालंधरी साहब कभी फूलों, कभी चाँदनी रात तो कभी सावन की घटाओं के बीच की उन मुलाकातों को इस ग़ज़ल के जरिये एक बार फिर से महसूस करते हैं। कितनी प्यारी लगती थी वो दुनिया जब उनकी महफिल से लौट कर आते थे और अब तो जो बचा है सिर्फ यादें हैं आँसुओं के सैलाब में तैरती हुई...

          गुल खिले चाँद रात याद आई
          आपकी बात, बात याद आईगुल खिले चाँद रात याद आई
          एक कहानी की हो गई तकमील*एक कहानी की हो गई तकमीलएक सावन की रात याद आईआपकी बात, बात याद आईगुल खिले चाँद रात याद आई
          * अंत
          अश्क आँखों में फिर उमड़ आए
          अश्क आँखों में फिर उमड़ आएकोई माज़ी, की बात याद आईआपकी बात, बात याद आईगुल खिले चाँद रात याद आई
          उनकी महफ़िल से लौट कर शहज़ादउनकी महफ़िल से लौट कर शहज़ादरौनक-ए-कायनात** याद आईआपकी बात, बात याद आई
          ** ब्रह्मांड

          एक अलग तरह की आवाज़ का होना फिल्मी या गैर फिल्मी पार्श्व गायन में हमेशा से एक वरदान सा रहा है। मुकेश, तलत महमूद मन्ना डे, हेमंत कुमार, सचिन देव बर्मन, रफ़ी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, गीता दत्त, आशा भोसले इन सभी नामी गायकों की आवाज़ अपने तरह की थी और इसीलिए अब तक ये हमारे हृदय में राज कर रहे हैं। ग़ज़ल गायकों में वही मुकाम मेहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, बेगम अख्तर और नूरजहाँ का रहा। नूरजहाँ की आवाज़ में ठसक के साथ एक कशिश थी जो ग़ज़ल के सारे दर्द को अपनी गायकी में समेट लेती थी। इस ग़ज़ल को सुनते ही हुए आप ऐसा ही महसूस करेंगे। उनकी गायिकी को मंटो साहब ने कुछ यूं बयां किया था
          मैं उसकी शक्ल-सूरत, अदाकारी का नहीं, आवाज़ का शैदाई था. इतनी साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ आवाज़, मुर्कियां इतनी वाज़िह1, खरज2 इतना हमवार3, पंचम इतना नोकीला! मैंने सोचा अगर ये चाहे तो घंटों एक सुर पर खड़ी रह सकती है, वैसे ही जैसे बाज़ीगर तने रस्से पर बग़ैर किसी लग़्ज़िश4  के खड़े रहते हैं.’
          1. स्पष्ट , 2. नीचे के सुर, 3 . बराबर, 4. भूल    

          तो सुनिए इस ग़ज़ल को मलिका ए तरन्नुम नूरजहाँ जी की आवाज़ में


          इस ग़ज़ल को आज की तारीख़ में तमाम नए पुराने गायकों ने गाया है पर मुझे वो वर्सन ज्यादा पसंद आते हैं जो बिना किसी वाद्य यंत्र के साथ गाए जाएँ। शहज़ाद जालंधरी साहब के मिसरों के साथ नज़र हुसैन जी ने ग़ज़ल की जो धुन रची वो अपने आप में इतनी अर्थपूर्ण और मधुर है कि आपको किसी संगीत की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती। नूरजहाँ तो ग़ज़लों की मलिका थीं ही, आशा जी ने भी इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ की मिठास देकर एक अलग ही जामा पहनाया है। 



          वो एलबम था कशिश जो अस्सी के दशक में HMV ने रिलीज़ किया था। इसमें अधिकतर वो ग़ज़लें थीं जो पहले नूरजहाँ जी ने भी गायी हुई थीं। ज़ाहिर है हर गायक अपनी अदाएगी में एक अलग रंग भरता है। इस ग़ज़ल के साथ साथ इसी एलबम में शामिल नीयत ए शौक़ भी काफी मशहूर हुई थी जिसके पहले मैंने आपको यहाँ रूबरू कराया भी था


          अगर आप ग़ज़ल के शैदाई हैं और एक ही पंक्ति को अलग अलग अंदाज़ में सुनने की इच्छा रखते हों तो आप धुरंधर शास्त्रीय गायक राहुल देशपांडे का ये वर्सन जरूर सुनें। "अश्क़ आँखों में फिर उमड़ आए" में अपनी आवाज़ की लर्जिश से उन्होंने जो दर्द अता किया है वो सुनने लायक है। प्रतिभा सिंह वघेल का गाया इस ग़ज़ल का एक टुकड़ा मैंने इस ब्लॉग के फेसबुक पेज पर यहाँ साझा किया ही है।


          नूरजहाँ की गाई मेरे पसंदीदा नज़्में, गीत व ग़ज़लें


          वैसे नूरजहां का गाया आपका पसंदीदा गीत कौन सा है?

          बुधवार, जनवरी 18, 2023

          एम एम कीरावनी : नाचो नाचो को छोड़िए क्या आपने उनके संगीतबद्ध ये गीत सुने हैं? M M Keeravani

          संगीत हो या साहित्य हमें अपने कलाकारों का हुनर तब नज़र आता है जब वो किसी विदेशी पुरस्कार से सम्मानित होते हैं। हाल ही में एम एम करीम साहब जो दक्षिण की फिल्मों में एम एम कीरावनी के नाम से जाने जाते हैं को RRR के उनके गीत नाचो नाचो (नाटो नाटो) के लिए विश्व स्तरीय गोल्डन ग्लोब पुरस्कार से नवाज़ा गया।



          सच पूछिए तो मुझे ये सुनकर कुछ खास खुशी नहीं मिली क्योंकि जिसने भी करीम के संगीत का अनुसरण किया है वो सहज ही बता देगा कि उन्होंने जो नगीने दक्षिण भारतीय और हिन्दी फिल्म संगीत को दिए हैं उनके समक्ष उनकी ये बेहद साधारण सी कृति है। पर हमारी मानसिकता तो ये है कि गोरी चमड़ी वालों ने पुरस्कार दिया नहीं और हम लहालोट होने लगे। मुझे चिंता इस बात की है ऐसे गीतों को पुरस्कार मिलता देख संगीत से जुड़ी नई पीढ़ी भारतीय संगीत की अद्भुत गहराइयों से गुजरे बिना इसे ही अपना आदर्श न मान ले।
          करीम साहब तो अस्सी के दशक के आख़िर से ही दक्षिण में अपनी प्रतिभा की वज़ह से लोगों की नज़र में आने लगे थे पर हिंदी फिल्मों में पहली बार वो नब्बे के दशक के मध्य में आई फिल्म क्रिमिनल से लोकप्रिय हुए। इस फिल्म का उनका गीत तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए आज भी जब बजता है तो मन झूम उठता है।
          पर उनका हिंदी फिल्मों में सबसे बढ़िया काम मुझे एक अनजानी सी फिल्म इस रात की सुबह नहीं में लगता है। एक बेहद कसी पटकथा लिए हुई कमाल की फिल्म थी वो जिसमें उनका संगीतबद्ध गीत मेरे तेरे नाम नये हैं ये दर्द पुराना है जीवन क्या है तेज़ हवा में दीप जलाना है मन को अंदर तक भिगो डालता है। इसी फिल्म का चुप तुम रहो भी तब बेहद पसंद किया गया था। करीम का दुर्भाग्य ये भी रहा कि जिन हिंदी फिल्मों में शुरुआती दौर में उन्होंने उल्लेखनीय संगीत दिया वो ज्यादा नहीं चलीं। फिल्म ज़ख्म का वो सदाबहार गीत जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला हो या रोग का दर्द भरा नग्मा "मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी..." आज भी लोगों की जुबां पर रहता है चाहे उन्हें उस फिल्म का नाम याद हो या नहीं। जिस्म के गीत "आवारापन बंजारापन.." और "जादू है नशा है..." का नशा तो श्रोताओं पर सालों साल रहा। सुर जैसी संगीतमय फिल्म में उनके गीत "कभी शाम ढले..", "जाने क्या ढूंढता है..", "दिल में जागी धड़कन ऐसे.." भी काफी सराहे गए थे।
          हाल फिलहाल में स्पेशल 26 में उनका गीत "कौन मेरा क्या तू लागे" इतना सुरीला था कि इस गीत को जितनी बार भी सुनूं मन नहीं भरता। बेबी में उनका संगीतबद्ध गीत "मैं तुझसे प्यार नहीं करती" भी सुनने लायक है।
          हर कलाकार चाहता है कि उसे उसके बेहतरीन काम से याद किया जाए। काश ऐसे गुणी संगीतकार को हम उनकी इन बेमिसाल कृतियों के लिए सम्मान देते। संगीत की इतनी शानदार विरासत रहने के बाद भी हम अच्छे भारतीय संगीत के लिए ऐसा पुरस्कार विकसित नहीं कर पाए जिसे पाने वाले पर सारी दुनिया ध्यान देती। इसीलिए आज हम गर्वित महसूस करने के लिए किसी गोल्डन ग्लोब या ग्रैमी की बाट जोहते हैं।

          विश्व स्तरीय पुरस्कार किसी भी कलाकार के लिए सम्मान की बात है पर विश्व के संगीत प्रेमियों तक हमारी सबसे अच्छी कृति कैसे पहुंचे इस प्रक्रिया में और सुधार लाने की जरूरत है।

          **********************************************

          M M Kareem के संगीतबद्ध मेरे चार पसंदीदा नग्मे


          1. कौन मेरा, क्या तू लागे

          2. मेरे तेरे नाम नये हैं


          3. मैने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी


          4. तू मिले दिल खिले


          आशा है आपने भी ये गीत सुने होंगे ही। अगर न सुने हों तो सुनिएगा।
           

          मेरी पसंदीदा किताबें...

          सुवर्णलता
          Freedom at Midnight
          Aapka Bunti
          Madhushala
          कसप Kasap
          Great Expectations
          उर्दू की आख़िरी किताब
          Shatranj Ke Khiladi
          Bakul Katha
          Raag Darbari
          English, August: An Indian Story
          Five Point Someone: What Not to Do at IIT
          Mitro Marjani
          Jharokhe
          Mailaa Aanchal
          Mrs Craddock
          Mahabhoj
          मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
          Lolita
          The Pakistani Bride: A Novel


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