वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत जरा हट के है। कई बार हम सब संगीतप्रेमियों की शिकायत होती है कि आजकल का नया संगीत तेज शोर वाले डांस नंबर या एक जैसे लगने वाले रूमानी गीतों से भरा पड़ा है। साल भर के सौ से ज्यादा फिल्मों के संगीत को सुनते हुए ये शिकायत गलत नहीं लगती लेकिन ये भी जानना जरूरी है कि ऐसा आखिर क्यूँ है? अच्छे और अलग पहचान बनाने वालों गीतों के लिए ठोस पटकथाओं का होना आवश्यक है जो संगीतकारों और गीतकारों को कहानी और उसके परिवेश के हिसाब से नई नई चुनौतियाँ पेश कर सकें पर होता ये है कि ज्यादातर एलबमों में रोमांटिक, रैप, आइटम नंबर मसाले की तरह मिलाए जाते हैं। नतीजा है कि ऍसे एलबमों का ज़ायका कुछ दिनों तक होठों पर रहकर ऐसा उड़ता है कि फिर दोबारा नहीं लौटता। हालांकि कुछ निर्माता निर्देशक आज भी ऐसे हैं जो लीक से हटकर चलते हैं। संगीत उनकी फिल्मों के लिए फिलर नहीं बल्कि कहानी का हिस्सा होता है। अनुराग कश्यप ऐसे ही एक निर्माता हैं जिनकी फिल्म का संगीत कहानी को आगे बढ़ाता है। यही वजह है कि हिचकी की तरह ही मुक्केबाज इस साल के एलबमों में नयी हवा के झोंके की तरह उभरा है।
ये भी एक सुखद संयोग है कि हिचकी और दास देव के आजाद कर की तरह ही मुक्केबाज का संगीत एक नवोदित महिला संगीतकार ने रचा है। ये संगीतकार हैं रचिता अरोड़ा जो जसलीन व अनुपमा राग की तरह ही एक गायिका भी हैं। फर्क ये है कि जहाँ जसलीन खुद से संगीत सीख कर आगे बढ़ी हैं वहीं अनुपमा व रचिता ने बकायदा शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रखी है। दिल्ली में पली बढ़ी रचिता ने संगीत निर्देशन का काम वहाँ मंचित होने वाले नाटकों में संगीत देकर शुरु किया। मुंबई में पृथ्वी थियेटर में एक नाटक की रिहर्सल के दौरान उनकी मुलाकात मकरंद देशपांडे से हुई। उनका काम देखकर मकरंद ने उन्हें अनुराग कश्यप से मिलने को कहा। रचिता अनुराग से बतौर गायिका मिलने गयी थीं पर वहाँ से लौटीं फिल्म के लिए संगीतकार का काम ले के। अनुराग ने सबसे पहले सुनील जोगी की डेढ़ दशक पुरानी कविता मुश्किल है अपना मेल प्रिये रचिता से संगीतबद्ध करवाई। हास्य का पुट लिए इस गीत के आलावा मुक्केबाज में लोक संगीत का तड़का भी है और सत्ता के खिलाफ स्वर देता गीत भी।
जब मैं इस संगीतमाला के लिए गीतों का चयन कर रहा था तो सबसे पहले मेरा ध्यान इस फिल्म के गीत छिपकली पर अटका। दोहरे चरित्र वाले लोगों पर ऐसी व्यंग्यात्मक धार वाले गीत हाल फिलहाल में कम ही बने हैं। वैसे इस फिल्म का सबसे मधुर गीत मुझे बहुत दुखा मन लगा जिसे खुद रचिता ने आदित्य देव के साथ मिलकर गाया है।
छिपकली और बहुत दुखा मन दोनों गीतों को ही लिखा है हुसैन हैदरी ने। चार्टेड एकाउटेंट और फिर मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले हैदरी को कविता का शौक़ कॉलेज के दिनों से ही था। अपनी पढ़ाई पूरी कर के वो कोलकाता की एक कंपनी का वित्त विभाग सँभाल रहे थे। उन्हें ऐसा लगा कि कविता कहने और पढ़ने का शौक़ तो मुंबई जा कर ही पूरा हो सकता हैं क्यूँकि वहाँ खुले मंच पर तब तक कविताएँ पढ़ने का चलन शुरु हो गया था। साथ ही वो फिल्मी गीतों के लेखन में भी हाथ आज़माना चाहते थे। हैदरी को लगा कि गर मन में इच्छा है तो जोखिम अभी ही लेना पड़ेगा। 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी ये सोच कर कि अगर पाँच सालों में मुंबई में पैर जम गया तो ठीक नहीं तो वे वापस लौट आएँगे। इसी बीच उनकी कविता "हिंदुस्तानी मुसलमान" इंटरनेट पर काफी सराही गयी। गुड़गाँव और करीब करीब सिंगल के कुछ गीतों को लिखने के बाद उन्हें मुक्केबाज में मौका मिला और इस फिल्म में लिखे उनके तीनों गीतों को काफी सराहा गया है।
रचिता अरोड़ा व हुसैन हैदरी |
रात की याद दिलावे
रात जो सिर पर आवे लागे
लाख बरस कट जावे
आस का दरपन कजलाया रे
लागे मोहे झूठा
बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन
हाथ तोरा जब छूटा
चिट्ठी जाए ना ऊ देस
जो देस गए मोरे सजना
हवा के पर में बाँध के भेजे
हम सन्देस का गहना
बिरहा ने पतझड़ बन के
पत्ता-पत्ता लूटा
बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन
हाथ तोरा जब छूटा
धूप पड़ी जो बदन पे मोरे
अगन-सी ताप लगावे
छाँव में थम के पानी पिए तो
पानी में जहर मिलावे
तन की पीड़ तो मिट गई मोरी
मन का बैर न टूटा
बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन
हाथ तोरा जब छूटा
मोरे हाथ में तोरे हाथ की
छुवन पड़ी थी बिखरी
बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन
हाथ तोरा जब छूटा
बहुद दुखा मन एक विरह गीत है जो कि राग पूरिया धनश्री पर आधारित है। ये सांयकालीन राग अक्सर उदासी के रंगो को स्वरलहरी देने के लिए इस्तेमाल होता रहा है। रचिता अरोड़ा ने इसीलिए शायद इस विरह गीत में इस राग का प्रयोग किया है। हुसैन हैदरी ने विरह की पीड़ा को जिन शब्दों में चित्रित किया है वो एक कविता सरीखा ही लगता है। आस का दरपन कजलाया रे..लागे मोहे झूठा, बिरहा ने पतझड़ बन के...पत्ता-पत्ता लूटा, मोरे हाथ में तोरे हाथ की...छुवन पड़ी थी बिखरी जैसे सटीक काव्यांश दिल की टीस को और गहरा कर देते हैं। हुसैन हैदरी के इन कमाल के शब्दों को रचिता की मीठी आवाज़ सहलाती हुई निकल जाती है। आदित्य देव ने भी अपनी पंक्तियाँ बखूबी निभाई हैं। रचिता की धुन ऐसी नहीं है कि एक ही बार में आपका ध्यान खींचे। ये गीत धीरे धीरे मन में घर बनाने वाला गीत है। इसलिए जब भी इसे सुनें फुर्सत से सुनें..
वार्षिक संगीतमाला 2018
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
13 टिप्पणियाँ:
क्या कहने । हुसैन भाई ने बहुत ख़ूबसूरती से अपनी बात कही है ।
बहुत धन्यवाद आपका मनीष जी! इतनी सारी चीज़ों को बारीकी से ध्यान में रख कर आपने लिखा, इसका शुक्रगुज़ार हूं
सही कह रहे हैं सागर।
Hussain Haidry आपके हुनर को देखते हुए इतना तो तय है कि पाँच सालों बाद आप वापस वित्त प्रबंधन की ओर नहीं जाने वाले। यही दुआ करूँगा कि आपको ऐसे प्रोजेक्ट मिलें जो आपकी प्रतिभा के साथ न्याय कर सकें। भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ।
Geet ke bol behtareen lage, gayak bhi acche lage...par gayika bilkul nahi bhaayi... Too stylized, aur awaaz mein woh kasak nahi mili Jo aise geeton ki rooh hoti hai
Smita मैंने रचिता को इससे पहले गाते नहीं सुना। शायद उनका फिल्मों के लिए गाया ये पहला ही गीत है। मैं ये तो नहीं कह सकता कि मुझे उनकी आवाज़ पसंद नहीं आई। हाँ, पर गीत सुनते हुए मुझे भी ऐसा महसूस हुआ कि इस जैसे गीत में बोलों के अनुरूप जो स्वर में पीड़ा या आपने जिसे कसक कहा वो पुरुष स्वर की अपेक्षा उनकी अदाएगी में उभर के नहीं आई।
अभी तो वो नयी हैं आशा है वो आगे गीत के भावों को आपनी आवाज़ में उतारने की और बेहतर कोशिश करेंगी।
बेहतरीन गीत। गीत के बोल, संगीत और गायिकी का सम्मिलित प्रभाव मन को एक अनाम सी उदासी की ओर ले गया। संगीत के सागर में से ऐसे बेहतरीन मोती से परिचय करवाने के लिये आभार और धन्यवाद।
बहुत सुंदर। यह गीत सुनाने के लिए शुक्रिया आपका मनीष।
राजेश और मीना जी गीत आप दोनों को पसंद आया जान कर खुशी हुई।
Wonderful composition and well sung with full justice with the given situation of the story line. Congratulations Rachita for standing on 17th among best 25 of sangeetmala's top listed songs Hope to rise above on d list in coming years
Vijay Arora May your wishes come true. Commendable achievement considering this is her first complete film music album.
पहली बार सुना गीत,सुंदर रचना,पुरुष स्वर बेहतरीन
"चिट्ठी जाए ना ऊ देस
जो देस गए मोरे सजना
हवा के पर में बाँध के भेजे
हम सन्देस का गहना"
थिएटर में फ़िल्म देखते वक़्त ही ये गाना दिमाग में चढ़ गया था।
अनुराग कश्यप को तहेदिल से शुक्रिया, ऐसे ही उन्होंने 'उड़ता पंजाब' में 'शिव कुमार बटालवी' जी को फ़िर से पढ़ने वालों के लिए ज़िन्दा कर दिया।
रचिता बहुत ही अच्छा करेंगी आगे अगर अनुराग कश्यप जैसे और लोग सामने आ जाए तो।
अभी दिल्ली में 'साहित्य आजतक-2018' में मैंने जावेद अख़्तर वाला सेशन अटेंड न करके 'हुसैन हैदरी' जी का कविता पाठ वाला सेशन अटेंड किया जबकि इन्हें सुनने के बाद इनके बारे में सबकुछ जाना।
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