शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 5 : मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा.... Manwaa

साल के पच्चीस शानदार गीतों के सफ़र का अंतिम पड़ाव अब नजदीक आ रहा है। बचे पाँच गीतों में तीन तो आपने अवश्य सुने होंगे पर जो दो नहीं सुने उनमें से एक से आपको आज मिलवाने का इरादा है। ये गीत है फिल्म अक्टूबर का  और इसे बनाने वाली जो गीतकार संगीतकार की जोड़ी है वो मुझे बेहद प्रिय रही है। आप समझ ही गए होंगे कि मैं स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा की बात कर रहा हूँ। संगीतमाला के पन्द्रह वर्षों के  सफ़र में इस जोड़ी ने कमाल के गीत दिए हैं। इनके द्वारा सृजित बावरा मन, चंदा रे, रात हमारी तो, बहती हवा सा था वो, क्यूँ नए नए से दर्द.., अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ जैसे तमाम गीत हैं जो मेरी संगीतमालाओं में अलग अलग सालों में बज चुके हैं। विगत कुछ सालों से इन मित्रों ने दूसरे संगीतकारों और गीतकारों के साथ काम किया है। शांतनु अंतिम बार दो साल पहले पिंक के अपने गीत के साथ संगीतमाला में दाखिल हुए थे। 



शांतनु तो कहते हैं कि उनके लिए फिल्मों में संगीत देना एक शौकिया काम है। असली मजा तो उन्हें घूमने फिरने में आता है। घूमने फिरने के बीच वक़्त मिलता है तो वो संगीत भी दे देते हैं। एक समय किसी एक फिल्म पर काम करने वाले शांतनु फिल्म संगीत में कैसे दाखिल हुए इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है।  नब्बे के दशक में वे एक विज्ञापन कंपनी के ग्राहक सेवा विभाग में काम कर रहे थे जब अचानक कंपनी के एक निर्देशक प्रदीप सरकार को एक जिंगल संगीतबद्ध करने की जरूरत पड़ी। जब वक़्त पर कोई नहीं मिला तो शांतनु ने जिम्मेदारी ली। जानते हैं क्या था वो जिंगल बोले मेरे लिप्स आइ लव अंकल चिप्स। उन्हीं प्रदीप सरकार ने बाद में उन्हें परिणिता का संगीत देने का मौका दिया।  
स्वानंद  किरकिरे व शांतनु मोइत्रा 

स्वानंद की थियेटर से जुड़ी पृष्ठभूमि उनसे गीत भी लिखवाती है और साथ साथ अभिनय भी करवाती है। हाल ही अपनी मराठी फिल्म में अभिनय के लिए उन्हें पुरस्कार मिला है और पिछले साल उनकी कविताओं की किताब आपकमाई भी बाजार में आ चुकी है।

अक्टूबर तो एक गंभीर विषय पर बनाई गयी फिल्म है जहाँ नायिका एक हादसे के बाद कोमा में है। नायक उसका सहकर्मी है पर उसकी देख रेख करते हुए वो उससे भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। शायद उसके मन में एक आशा है कि नायिका के मन में भी शायद ऐसा कोई भाव उसके प्रति रहा हो। ये आशा भी इसलिए है  कि हादसे के ठीक पहले उसने नायक के बारे में पूछा था। बता सकने की हालत में तो ख़ैर नायिका है नहीं पर इस नायक के मन का क्या किया जाए? वो तो उदासी की चादर लपेटे रुआँसा इस इंतजार में है कि कभी तो प्रिय जगेगी अपनी नींद से। स्वानंद मन के इस विकल अंतर्नाद को बेकल हवा, जलता जियरा और चुभती बिरहा जैसे बिंबों का रूप देते हैं। 

कहना ना होगा कि ये नग्मा साल के कुछ चुनिंदा बेहतर लिखे गए गीतों में अपना स्थान रखता है। मुझे उनकी सबसे बेहतरीन पंक्ति वो लगती है जब वो कहते हैं सोयी सोयी एक कहानी..रूठी ख्वाब से, जागी जागी आस सयानी..लड़ी साँस से। फिल्म की पूरी कथा बस इस एक पंक्ति में सिमट के रह जाती है।
सुनिधि चौहान 

इस गीत के संगीत में गिटार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रील्यूड की मधुर धुन का तो कहना ही क्या। गिटार के पीछे हैं एक बार फिर अंकुर मुखर्जी जिनकी बजाई मधुर धुन अपने चाव लगा में सुनी थी। मुखड़े के बाद गिटार और ताल वाद्य की मिश्रित रिदम गीत के अंत तक साथ चलती है। मेरा मानना है कि 2018 में सुनिधि चौहान  के गाए बेहतरीन गीतों में मनवा सबसे ऊँचा स्थान रखता है। गीत का दर्द  उनकी आवाज़ से रिसता सा महसूस होता है। गीत में पार्श्व से उभरता आलाप प्रणव विश्वास का है।

मनवा एक ऐसा गीत है जिसे आप फिल्म के इतर भी सुनें तो उसके प्रभाव से आप घंटों मुक्त नहीं होंगे। रिमिक्स और रैप के शोर में ऐसी धुनें आजकल कम ही सुनाई देती हैं। शांतनु चूँकि मेरी पीढ़ी के हैं इसलिए उनकी बात समझ आती है जब वो कहते हैं..
"मैं जब बड़ा हो रहा था तो आल इंडिया रेडियो पर लता मंगेशकर, पंडित रविशंकर के साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत सुना करता था। एक रेडियो स्टेशन पर तब हर तरह का संगीत बजा करता था। उस वक़्त हमारे पास चैनल बदलने का विकल्प नहीं था। मुझे हमेशा लगा है कि संगीत में ऍसी ही विभिन्नता होनी चाहिए और ये श्रोता को निर्णय लेना है कि उसे क्या सुनना है, क्या नहीं सुनना है? जो संगीत की विविधता इस देश में है वो अगर आप बच्चों और युवाओं को परोसेंगे नहीं तो वो उन अलग अलग शैलियों में रुचि लेना कैसे शुरु करेंगे?"
युवा निर्माता निर्देशक व संगीतकार शांतनु के उठाए इस प्रश्न की गंभीरता समझेंगे ऐसे मुझे विश्वास है।
तो चलिए अब सुनते हैं सुनिधि का गाया ये नग्मा 

मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
जलता जियरा, चुभती बिरहा
जलता जियरा, चुभती बिरहा
सजनवा आजा, नैना रो रो थके
सजनवा आजा, नैना रो रो थके
मनवा रुआंसा...

धीमे धीमे चले, कहो ना 
कोई रात से
हौले हौले ढले, कहो ना 
मेरे चाँद से
सोयी सोयी एक कहानी 
रूठी ख्वाब से
जागी जागी आस सयानी
लड़ी साँस से
साँवरे साँवरे, याद में बावरे
नैना. नैना रो रो थके
मनवा रुआँसा...नैना रो रो थके


 

वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
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9 टिप्पणियाँ:

मन्टू कुमार on जनवरी 25, 2019 ने कहा…

ये गीत आज मैं पहली बार सुनूँगा :(

Manish Kumar on जनवरी 25, 2019 ने कहा…

फिल्म नहीं देखी थी क्या ये?

Sumit on जनवरी 26, 2019 ने कहा…

बहुत खूब! पहली बार सुना! एक और मोती! एक साथ उदास करता और हिम्मत बंधाता हुआ गीत.

Manish Kumar on जनवरी 27, 2019 ने कहा…

सुमित अक्टूबर देखिएगा..एक अलग तरह की शांत उदास करती फिल्म है। जब मुख्य धारा के वरुण धवन जैसे कलाकार इस तरह के किरदार निभाते हैं तो अच्छा लगता है। मजे की बात है इस गीत में नायक के दिल की बात हो रही है पर इसे गाया एक गायिका ने है।

Sumit on जनवरी 28, 2019 ने कहा…

जी जरूर. ये फ़िल्म मेरी लिस्ट मे है पर अभी तक देख नही पाया हूँ.

पूजा सिंह on जनवरी 28, 2019 ने कहा…

ये गाना भी और फ़िल्म दोनों ही पसंद है।

Manish Kumar on जनवरी 28, 2019 ने कहा…

उदास करते गीत बहुतों की पसंद में शामिल नहीं होते। अच्छा लगा जानकर कि तुम्हें भी पसंद है ये।

मन्टू कुमार on जनवरी 30, 2019 ने कहा…

फ़िल्म देखी थी, गाने पर गौर नहीं किया था।

फ़िल्म तो बहुत ही शानदार लगी मुझे।

Manish Kumar on फ़रवरी 02, 2019 ने कहा…

गाना फिल्म में इस तरह नहीं फिल्माया गया। कहीं पीछे से बजा होतो पता नहीं पर इसका प्रयोग फिल्म के आने के पहले प्रोमो के तौर पर ही शायद हुआ है।

 

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