इस साल की शुरुआत से चल रही एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की कड़ियों में आज का गीत है एक कव्वाली की शक़्ल में फिल्म मुल्क से और इसे अपनी आवाज़ से सँवारा है शफ़क़त अमानत अली खाँ ने। इक ज़माना था जब पुरानी हिंदी फिल्मों में अलग अलग परिस्थितियों में कव्वालियों का इस्तेमाल हुआ करता था। पुरानी फिल्मों की कव्वालियों को याद करूँ तो मन में तुरंत ना तो कारवाँ की तलाश है, तेरी महफिल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे, निगाहें मिलाने को जी चाहता है, पर्दा है पर्दा और हैं अगर दुश्मन जैसे तमाम गीतों की याद उभरती है।
पिछले कुछ दशकों से कव्वाली, फिल्मों में सूफ़ियत से रँगे गीतों में ही सिमट कर रह गयी है। अगर आज के फिल्मी परिदृश्य में कव्वालियों का इतना स्वरूप भी बचा है तो इसमें ए आर रहमान व नुसरत फतेह अली खाँ का खासा योगदान है। रहमान ने पिछले दशक में ख्वाजा मेरे ख्वाजा, कुन फाया कुन और पिया मिलेंगे जैसे अपने संगीतबद्ध गीतों से कव्वालियों को फिर लोकप्रियता के नए शिखर तक पहुँचाया।
मुल्क की इस कव्वाली पिया समाए को लिखा है शकील आज़मी ने। पिछले एक दशक में दर्जन भर फिल्मों में गीत लिखने वाले शकील एक गीतकार से ज्यादा एक लोकप्रिय शायर के रूप में चर्चित रहे हैं। अपने साहित्यिक जीवन में उनके पाँच छः काव्य संकलन छप चुके हैं। मेरे ख्याल से मुल्क के इस गीत में पहली बार शकील को अपना हुनर सही ढंग से दिखाने का मौका मिला है।
गीत में पिया शब्द से ईश्वर को संबोधित किया गया है। शकील ने इस गीत के माध्यम से कहना चाहा है कि सबका परवरदिगार एक है भले ही उसके रंग अलग अलग हों। इसलिए लोगों में धर्म के नाम पर भ्रम जाल पैदा करने वाले लोगों के लिए वो लिखते हैं..सात रंग हैं सातों पिया के...देख सखी कभी तू भी लगा के...सातों से मिल के भयी मैं उलझी...कोई हरा कोई गेरुआ बताए। ।गीत में शकील ने गौरैया, पीपल,कबूतर जैसे बिंबों का बड़ी खूबसूरती से प्रयोग किया है।
गीत में पिया शब्द से ईश्वर को संबोधित किया गया है। शकील ने इस गीत के माध्यम से कहना चाहा है कि सबका परवरदिगार एक है भले ही उसके रंग अलग अलग हों। इसलिए लोगों में धर्म के नाम पर भ्रम जाल पैदा करने वाले लोगों के लिए वो लिखते हैं..सात रंग हैं सातों पिया के...देख सखी कभी तू भी लगा के...सातों से मिल के भयी मैं उलझी...कोई हरा कोई गेरुआ बताए। ।गीत में शकील ने गौरैया, पीपल,कबूतर जैसे बिंबों का बड़ी खूबसूरती से प्रयोग किया है।
अनुराग सैकिया व शकील आज़मी |
इस कव्वाली की धुन बनाई है इस साल कारवाँ और मुल्क जैसी फिल्मों से अपना सांगीतिक सफ़र शुरु करने वाले असम के लोकप्रिय संगीतकार अनुराग सैकिया ने। मुल्क में ये मौका देने के पहले अनुभव सिन्हा ने उन्हें अपने स्टूडियो में बुलाया और उनके संगीतबद्ध गीतों को सुनने की इच्छा ज़ाहिर की। अनुराग बताते हैं कि तब उन्होंने आनन फानन में अपनी ई मेल मे पड़े गीतों को बजाया पर अनुभव जी ने उन्हें कुछ और सुनाने को कहा। तब जाकर अनुराग ने अनुभव सिन्हा को वो गीत सुनाए जो व्यक्तिगत तौर पर पसंद थे पर उनकी ऐसी मान्यता थी कि इसे शायद ही कोई निर्माता निर्देशक पसंद करेगा। इन गीतों में एक निदा फ़ाज़ली का लिखा गीत भी था जो अनुभव को पसंद आ गया। कुछ दिनों दोनों की आपस में बात होती रही और अंततः मुल्क की इस कव्वाली को संगीतबद्ध करने का जिम्मा अनुराग को मिला।
परम्परागत भारतीय ताल वाद्यों ढोलक व तबला के साथ अनुराग ने गीत में हारमोनियम व गिटार का इस्तेमाल किया। गीत के बीच में इस्तेमाल की गयी उनकी सरगम मन मोहती है। इस गीत में शफक़त का साथ दिया है अरशद हुसैन और साथियों ने। गीत के बोल बनारसी लहजे में रँगे हैं। शफक़त की गायिकी तो हमेशा की तरह जानदार है पर एक जगह सातों से मिल के भयी मैं उलझी की जगह वो उझली बोलते सुनाई पड़े हैं। तो आइए सुनते हैं मुल्क फिल्म की ये कव्वाली
परम्परागत भारतीय ताल वाद्यों ढोलक व तबला के साथ अनुराग ने गीत में हारमोनियम व गिटार का इस्तेमाल किया। गीत के बीच में इस्तेमाल की गयी उनकी सरगम मन मोहती है। इस गीत में शफक़त का साथ दिया है अरशद हुसैन और साथियों ने। गीत के बोल बनारसी लहजे में रँगे हैं। शफक़त की गायिकी तो हमेशा की तरह जानदार है पर एक जगह सातों से मिल के भयी मैं उलझी की जगह वो उझली बोलते सुनाई पड़े हैं। तो आइए सुनते हैं मुल्क फिल्म की ये कव्वाली
मोरे पिया, मोरे पिया..
सब सखियों का पिया प्यारा
सब में है और सब स्यूं न्यारा
सब सखियों का पिया प्यारा
भा गिया ये मुझे भा
जागी है मिलने की चाह
सब सखियों का पिया प्यारा ...हो..
पिया समाए पिया समाए
जिया में मोरे पिया समाए
नि सा सा नि सा रे सा...
मा पा धाा पा मा गा रे...
हो.. सात रंग हैं सातों पिया के
देख सखी कभी तू भी लगा के
सात रंग हैं सातों पिया के
देख सखी कभी तू भी लगा के
सातों से मिल के...
सातों से मिल के भयी मैं उलझी
कोई हरा कोई गेरुआ बताए
पिया समाए ....पिया समाए
ओ पिया समाए पिया समाए
जिया में मोरे पिया समाए
हो.. काशी भी मुझ में, काबा भी मुझ में
घी मोरा दर मोरी चौखट
इश्क़ है मोरे पिया का मज़हब
केहू से मोरा काहे का झंझट
काहे का झंझट
मंदिर के छज्जे मैं गौरैया
पीपल है मोरा रैन बसेरा
मस्जिद के गुंबज की मैं कबूतर
मैं जो उड़ूँ तो होवे सवेरा
तू है ऐसी रंगानी
भयी ना पुरानी
इंद्रधनुष है मोरी चुनरिया
पिया को मोरे महू ना देखूँ
देखे मगर मोरे मॅन की नज़रिया
मोरे मॅन की नज़रिया
सात रंग हैं ...गेरुआ बताए
पिया समाए पिया समाए
वार्षिक संगीतमाला 2018
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
8 टिप्पणियाँ:
Baap re baap, hats off to you and your write ups...... Please keep it up.....
Shib Shankar Nice to know that you loved this Qawwali along with my write up
सर यहाँ "उझली" का मतलब सफेद रंग से हो सकता है।
हिंदी में शब्द है उजली यानी उजला रंग ना कि उझली अगली पंक्ति में नायिका भ्रम में है कि असली रंग क्या है हरा या गेरुआ इसीलिए भ्रम का समानार्थक शब्द मुझे उलझा लगा।
वैसे उझलना क्रिया से उड़ेलना का अर्थ बनता है पर वो गीत में सही नहीं बैठता।
"पिछले कुछ दशकों से कव्वाली, फिल्मों में सूफ़ियत से रँगे गीतों में ही सिमट कर रह गयी है।"
"शफक़त की गायिकी तो हमेशा की तरह जानदार है"
कव्वाली को लेकर विश्लेषण बढ़िया है।
शफ़क़त मेरे ऑल टाइम पसंदीदा है।
आपने 'ढेड़ इश्किया' का 'क्या होगा' सुना ही होगा :)
धन्यवाद :)
कव्वाली मतलब ख़ूबसूरत बोल वह मुझे नहीं मिले इस क़व्वाली में
मंटू कुमार कव्वाली तुम्हें पसंद आई जान कर अच्छा लगा।
कंचन शुक्रिया अपनी राय रखने के लिए।
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