मंगलवार, जनवरी 08, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 18 : खोल दे ना मुझे, आजाद कर Azaad Kar

संगीतमाला का अगला गीत है फिल्म दास देव से। वैसे दास देव कुछ अजीब सा नाम नहीं लगा आपको? अगर लगा तो इसे अब पलट कर देखिए। आपको  देव दास नज़र आएगा। सुधीर जी की ये फिल्म इस ज़माने के देवदास और पारो का एक नया रूप खींचती है। फिल्म का जो गीत आज आपके सामने है वो पहले दरअसल फिल्म में था ही नहीं। लेखक और गीतकार गौरव सोलंकी की एक बड़ी भूमिका रही इस गीत को फिल्म में लाने की। 


वैसे जो लोग गौरव सोलंकी से परिचित नहीं हैं वो उनके UGLY फिल्म के गीत पापा जो कि साल 2014 में एक शाम मेरे नाम का सरताज गीत बना था के बारे में अवश्य पढ़ें। रुड़की में इंजीनियरिंग की पढ़ाई से लेकर गीत, पटकथा व कहानी लेखन तक का उनका सफ़र उनकी गहरी बौद्धिक और साहित्यिक क्षमता की गवाही देता है। हाल ही में सत्याग्रह को दिये साक्षात्कार में उन्होंने दास देव के इस गीत के बनने की कहानी कुछ यूँ बयाँ की थी।

‘दास देव’ की रिलीज से पहले सुधीर जी इसे अपने दोस्तों, फिल्मों से जुड़े लोगों को दिखा रहे थे, उनका फीडबैक ले रहे थे. उनका कहना था कि मैं बहुत वक़्त से जुड़ा हूँ  इस फिल्म से तो मेरी ऑब्जेक्टिविटी चली गई है, तुम बाहरी की नजर से देखो और कुछ जोड़ना हो तो बताओ। तो हमने बैठकर उसमें कुछ चीजें जोड़ीं, कुछ घटाईं। इसी दौरान वे जब सभी से पूछ रहे थे कि तुम्हारी क्या राय है तो मैंने कहा कि अगर अंत में कोई गाना हो तो फिल्म का क्लोजर बेहतर हो जाएगा। फिल्म देखकर उस गाने का एब्सट्रेक्ट-सा थॉट मेरे दिमाग में था भी. मैंने कहा कि आपके पास पहले से जो गाने रिकॉर्डेड हैं उनमें से कोई इस्तेमाल कर लीजिए अगर सिचुएशन पर फिट हो तो, नहीं तो मैं लिखने की कोशिश करता हूँ . इस तरह ‘आजाद हूँ ’ ईजाद हुआ!
दास देव की कहानी एक ऐसे चरित्र पर केंद्रित है जो एक जाने माने सोशलिस्ट नेता  की अय्याश संतान है और जिसे विकट परिस्थितियों में राजनीति के दलदल में उतरना पड़ता है। ये गाना उस किरदार के बीते हुए जीवन के अच्छे बुरे लमहों. अपेक्षाओं, निराशाओं आदि से आजाद होकर एक नई राह पकड़ने की बात करता है । जिंदगी के ब्लैकबोर्ड से सब मिटाकर एक नए पाठ की शुरुआत जैसा कुछ करने की सोच डाली है गौरव ने इस गीत में।

स्वानंद किरकिरे 
स्वानंद किरकिरे जब भी गायिकी की कमान सँभालते हैं कुछ अद्भुत हो होता है। सुधीर मिश्रा की ही फिल्म हजारों ख्वाहिशें ऐसी में भी उनकी गहरी आवाज़ बावरा मन देखने चला एक सपना से गूँजी थी। परिणिता में उनका गाया रात हमारी तो चाँद की सहेली थी आज भी बारहा अकेलेपन में दिल के दरवाजों पर दस्तक देता रहा है। इस गीत में भी उनकी आवाज़ की गहनता नायक के दिल की कातर पुकार से एकाकार होती दिखती है।

गीत में अगर कोई कमी दिखती है तो वो इसका छोटा होना। वास्तव में ये गीत लंबा था और एक कविता की शक्ल लिए था। गीत का दूसरा अंतरा सुधीर मिश्रा ने हटवा दिया ये कहते हुए कि ज्यादा लंबा होने से गीत की सादगी चली जाएगी।

अनुपमा राग व  गौरव सोलंकी 

इस शब्द प्रधान गीत का संगीत संयोजन किया है अनुपमा राग ने। हिंदी फिल्म संगीत में संगीत संयोजन एक ऍसी विधा रही है जहाँ महिलाओं की उपस्थिति नगण्य ही रही है। पुरानी फिल्मों में उषा खन्ना और पिछले दशक में स्नेहा खनवलकर को छोड़ दें तो शायद ही किसी ने अपनी अलग पहचान बनाई हो पर पिछले साल से एक नए परिवर्तन की झलक मिलनी शुरु हो गयी है। अब महिलाएँ भी पूरे आत्मविश्वास के साथ इस विधा में कूद रही हैं और उनमें से तीन की संगीतबद्ध रचनाएँ इस वार्षिक संगीतमाला के पच्चीस बेहतरीन गीतों में अपनी जगह बनाने में सफल हुई हैं। अब तक मैंने आपकी मुलाकात हिचकी की संगीत निर्देशिका जसलीन कौर रायल से कराई थी। जहाँ तक अनुपमा राग का सवाल है ये गीत हिन्दी फिल्मों में की गयी उनकी पहली संगीत रचना है। नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के खानदान से ताल्लुक रहने वाली अनुपमा खुद उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत हैं। 

लखनऊ की भातखंडे विश्वविद्यालय से संगीत विराशद अनुपमा फिलहाल अपनी सरकारी नौकरी से एक विराम लेकर मुंबई की मायावी दुनिया में अपनी किस्मत आजमा रही हैं। हिंदी फिल्मों में पिछले पाँच सालों में उन्होंने गुलाबी गैंग, जिला गाजियाबाद, बिन बुलाये बाराती जैसी फिल्मों में कुछ नग्मे गाए हैं। फिल्म संगीत के इतर उनके निजी एलबम और सिंगल्स भी बीच बीच में आते रहे हैं।

अनुपमा का संगीत गीत की गंभीरता के अनुरूप है और वो शब्दों पर हावी होने की कोशिश नहीं करता। 

हम थे कहाँ, ना याद कर
फिर से मुझे ईजाद कर
खोल दे ना मुझे, आजाद कर

हर इक तबाही से, सारे उजालों से
मुझको जुलूसों की सारी मशालों से
सारी हक़ीकत से, सारे कमालों से
मुझको यकीं से तू, सारे सवालों से
आजाद कर आजाद कर

ना तुम हुकुम देना
ना मुझ से कर फरियाद
मुझ को गुनाहों से
माफी से कर आजाद
सारी हक़ीकत से, सारे कमालों से
मुझको यकीं से तू, सारे सवालों से
आजाद कर आजाद कर

तो आइए सुनते हैं इस गीत को...




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
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3 टिप्पणियाँ:

Rajesh Goyal on जनवरी 10, 2019 ने कहा…

अच्छा गीत। गीत के बोल और गायिकी अच्छे हैं मगर शायद कहीं कुछ कमी सी रह गयी, शायद संगीत में, जिसके कारण वो मैजिक क्रियेट होते होते रह गया। मगर afterall, एक अच्छा गीत।

Manish Kumar on जनवरी 12, 2019 ने कहा…

मुझे तो सबका काम पसंद आया। गौरव की लेखनी और स्वानंद की आवाज़ का तो मैं शैदाई हूँ ही। मेरी समझ से इस गीत में एक और अंतरा होता यो और असरदार होता। अचानक से ही खत्म हो गया ऐसा लगता है।

मन्टू कुमार on जनवरी 25, 2019 ने कहा…

मेरा पसंदीदा गीत है। स्वानंद साहब जैसे बोलते होंगे वैसे ही गा देते हैं, यही उनकी ख़ासियत है।

गौरव जी की 'ग्यारहवीं a के लड़के' कहानी आपने पढ़ी ?

 

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