रविवार, अप्रैल 14, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 Top 10 : पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ

वार्षिक संगीतमाला में अब शीर्ष के सात नग्मे रह गए हैं और उनमें से आज का गीत है फिल्म एनिमल का जिसकी मधुर धुन बनाई व गाया विशाल मिश्रा ने और बोल लिखे राजशेखर ने। यूपी बिहार की इस संगीतकार गीतकार की जोड़ी ने अपने इस गीत के माध्यम से देश विदेश में अपनी सफलता का परचम लहराया। वैसे क्या आपको पता है कि ये पूरा गीत  मात्र डेढ घंटे में ही बन कर तैयार हो गया था :) ।


संदीप वांगा ने एनिमल के पहले विशाल के साथ कबीर सिंह में काम किया था। विशाल एक अर्से से संगीत जगत में काम कर रहे थे पर कबीर सिंह के गीत कैसे हुआ कैसे हुआ..इतना जरूरी तू कैसे हुआ को युवाओं ने हाथों हाथ लिया। एक तरह से इस गीत ने विशाल की पहचान फिल्म उद्योग में बना दी। 

तीन साल बाद जब विशाल को संदीप ने अपनी नई फिल्म के लिए गाना लिखने के लिए बुलाया तो विशाल ने गीतकार के लिए राजशेखर का नाम सुझाया। राजशेखर का नाम सुझाने के पीछे विशाल के पास दो वज़हें थी। एक तो राजशेखर लिखते बहुत बढ़िया हैं और दूसरी विशेष बात ये कि कभी साथ काम करते हुए राजशेखर ने विशाल से ये कहा था कि अगर मेरा कोई गाना रणवीर पर फिल्माया गया तो कैसा दिखेगा? यानी राजशेखर की दिली तमन्ना थी कि उनका लिखा हुआ कोई गीत रणवीर पर शूट हो। विशाल के ज़ेहन में ये बात रह गई और इस तरह पहली बार राजशेखर की मुलाकात संदीप वांगा से हुई।

पहली सिटिंग में जैसे ही विशाल ने पियानो पर आरंभिक धुन बजाई, संदीप ने गाना अनुमोदित कर दिया और उस धुन पर डेढ़ घंटे के भीतर विशाल ने राजशेखर के साथ मिलकर पूरा गीत तैयार कर लिया।

संदीप वांगा की फिल्में, उनकी चुनी कहानियाँ मुझे नहीं रुचतीं इसलिए ना मैंने कबीर सिंह देखी और न ही एनिमल। पर ये जरूर है कि उनकी फिल्मों का संगीत अलहदा होता है। सतरंगा और पहले भी मैं के अलावा जिस तरह उन्होंने इस फिल्म में रहमान के सदाबहार गीत दिल है छोटा सा छोटी सी आशा की धुन का इस्तेमाल किया वो काबिलेतारीफ़ था। 

अगर किसी ने फिल्म ना देखी हो तो उन्हें ये गीत एक एक रूमानी गीत ही लगेगा पर फिल्म में दोनों ही चरित्र के बीच का लगाव सच्चे सहज प्रेम से कोसों दूर है। यही वज़ह है कि नायक राजशेखर के शब्दों में ख़ुद को टटोलता हुआ अपनी भावनाओं को लेकर थोड़ा भ्रमित नज़र आता है। 

पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ, पहली दफा ही मिलके लगा
तूने छुआ जख्मों को मेरे, मरहम मरहम दिल पे लगा
पागल पागल हैं थोड़े, बादल बादल हैं दोनों
खुल के बरसे भीगे आ ज़रा
मैं अरसे से खुद से ज़रा लापता हूँ
तुम्हें अगर मिलूँ तो पता देना
खो ना जाना मुझे देखते देखते
तू ही ज़रिया, तू ही मंज़िल है
या के दिल है, इतना बता

विशाल का मुखड़े के पहले पियानो का टुकड़ा गीत की जान है। बाकी गिटार और ड्रम्स आवाज़ के उतार चढ़ाव के अनुरूप अपनी संगत देते हैं। विशाल संगीतकार तो अच्छे हैं ही, रूमानी गीतों को बहुत डूब कर गाते हैं।

 

फिल्म संगीत में ऐसा कई बार होता है कि आपके कई बेहतरीन काम नज़रअंदाज़ हो जाते हैं और अचानक ही कोई गीत ऐसा चमक उठता है जिसकी कल्पना भी बनाने वाले ने नहीं की होगी। नेट पर इस गीत को इतना सुना गया कि ये एक समय ये देश विदेश के Music Charts पर ट्रेंड करने लगा था। 

राजशेखर तनु वेड्स मनु के ज़माने से ही मेरे मेरे प्रिय गीतकार रहे हैं। तनु वेड्स मनु का रंगरेज़ और कितने दफ़े दिल ने कहा, करीब करीब सिंगल का जाने दे और हाल फिलहाल में उनका मिसमैच्ड में लिखा गीत ऐसे क्यूँ.... कुछ ऐसे नग्मे लगते हैं जिसमें उन्होंने इंसानी रिश्तों की बारीक पड़ताल की है। तनु वेड्स मनु हिट भी हुई पर कमाल देखिए कि उसके तीन साल बाद तक राजशेखर को ढंग का काम नहीं मिला। इसीलिए विशाल कहते हैं कि अपने आप को साबित करने के लिए आपको निरंतर लगे रहना पड़ता है और जब सफलता हाथ लगती है तो पीछे की हुई सारी मेहनत, सारे अच्छे बुरे तजुर्बे काम आते हैं

राजशेखर ने इस गीत का एक अंतरा और लिखा था जो कि नायिका के मनोभावों को व्यक्त करता है। इसे अपने एक साक्षात्कार में विशाल ने गा के सुनाया था।

तुम्हारे बदन की महक ख़्वाब सी है
मैं चाहूँ कि इसमें ही खोई रहूँ
मैं सुबहों को बाहों में अपनी छुपा के
तेरे साथ यूँ ही मैं सोई रहूँ
पूरे दिन बस तुझे देखते-देखते
पहले भी मैं तुमसे मिली हूँ, पहली दफा ही मिलके लगा
तूने छुआ जख्मों को मेरे, मरहम मरहम दिल पे लगा
पागल पागल हैं थोड़े, बादल बादल हैं दोनों
खुल के बरसे भीगे आ ज़रा


बिना किसी संगीत के भी विशाल की आवाज़ मन को छू जाती है।  वैसे बतौर गायक आपको विशाल मिश्रा कैसे लगते हैं?

मंगलवार, अप्रैल 09, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : Top 10 मुक्ति दो मुक्ति दो, माटी से माटी को..

कुछ गीत ऐसे होते हैं जिनके बारे में अलग से कुछ कहने को दिल नहीं करता क्यूँकि उन्हें सुनकर मन में एक गहरी शांति और शून्यता सी आ जाती है। 


पोन्नियिन सेल्वन 2 का ये गीत मुक्ति दो ऐसा ही एक गीत है । फर्ज कीजिए आपने अपने जीवन में जो भी करने को सोचा हो सब पूरा हो जाए। आपके रहने का ध्येय ही खत्म हो जाए तो फिर आप इस नश्वर शरीर से मुक्ति की कामना ही तो करेंगे। गुलज़ार लिखते हैं

मुक्ति दो मुक्ति दो, माटी से माटी को
मुक्ति दो मुक्ति दो, माटी से माटी को

मिट्टी से निकल कर मिट्टी में मिलने की ये जीवन यात्रा तो तभी शुरू हो जाती है जब हम इस संसार में आते हैं। अंतिम अरण्य में निर्मल वर्मा की लिखी वो पंक्तियां याद आ जाती हैं जिसमें एक किरदार कहता है..
आपको लगता है सब कुछ नॉर्मल है और यह सबसे बड़ी छलना है... क्योंकि सच बात यह है कि नॉर्मल कुछ भी नहीं होता... पैदा होने के बाद के क्षण से ही मनुष्य उस अवस्था से दूर होता जाता है, जिसे हम नॉर्मल कहते हैं..  नॉर्मल होना देह की आकांक्षा है, असलियत नहीं। देह  का अंतिम संदेश सिर्फ मृत्यु के सामने खुलता है जिसे वह बिल्ली की तरह जबड़े में दबाकर शून्य में अंतर्ध्यान हो जाती है।
वस्त्र से शरीर को, शरीर से आत्मा को
वस्त्र से शरीर को, शरीर से आत्मा को
मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
मुक्ति दो मुक्ति दो
 
रोशनी को रोशनी में, समा जाने दो
रोशनी को रोशनी में, समा जाने दो
सूर्य से ही आई थी, सूर्य ही में जाने दो
सूर्य से ही आई थी, सूर्य ही में जाने दो

नाममात्र के संगीत के बावज़ूद ए आर रहमान की बनाई ये धुन नवोदित गायिका पूजा तिवारी की सुरीली आवाज़ में दिल में गहरे पैठ कर जाती है। पूजा ने इससे पहले भी रहमान की फिल्मों में चंद नग्मे गाए हैं पर शास्त्रीय संगीत में निपुण लखनऊ की इस गायिका के शुरुआती कैरियर का ये निसंदेह एक अहम नग्मा होगा जिसको लोग सालों साल सुनेंगे। 

पूजा तिवारी

भातखंडे संगीत विद्यापीठ लखनऊ और प्राचीन संगीत महाविद्यालय चंडीगढ़ से संगीत में दो बार विशारद करने वाली पूजा के सांगीतिक जीवन में नया मोड़ तब आया जब उन्होंने चेन्नई की KM Conservatory से आडियो इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरु की। यहीं वो नामी संगीतकार ए आर रहमान के संपर्क में आईं। पूजा ने अपनी गायिकी से उन्हें इतना प्रभावित किया कि जिनके संगीत निर्देशन में एक गीत गाना भी कई गायकों का सपना होता है, उन्हीं रहमान ने उनसे अपनी फिल्मों के तीन गीत गवाए।

इस संगीतमाला की शुरुवात में मैंने पिप्पा के झुमाने वाले गीत मैं परवाना आपको सुनवाया था। उस गीत के महिला स्वरों में मुख्य आवाज़ पूजा तिवारी की ही थी। मतलब ये कि इतने अलग प्रकृति के गीतों को भी वो सहजता से निभा ले जाती हैं। भारतीय वायु सेना से रिटायर हुए पिता और संगीतप्रेमी माँ की ये बिटिया अपने इस कौशल को यूँ ही और माँजे ऐसी आशा है।



जैसा कि मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ प्राचीन तमिल साहित्य में पोन्नी,कावेरी नदी को कहा जाता था। इसी नदी के आसपास चोल साम्राज्य फला फूला।  पोन्नियिन सेल्वन फिल्म इसी नाम के ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित है।  चोल शासक अपने आप को सूर्य का प्रतिनिधि मानते थे इसीलिए गीत में सूर्य से आने और उसी में विलीन होने की बात कही गई है।

मंगलवार, अप्रैल 02, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए

वार्षिक संगीतमाला में शामिल आज का ये गीत शायद ही आपने न सुना हो क्योंकि पिछले साल एफएम रेडियो पर खूब बजा और यू ट्यूब पर भी करोड़ों लोगों की पसंद बना। दरअसल हर फिल्म में एक ऐसा गीत रखने की कोशिश होती है कि जो फिल्म रिलीज़ के पहले ही इतनी लोकप्रियता अर्जित कर ले कि लोग उसे पर्दे पर देखने के लिए सिनेमाघरों में खिंचे चले जाएं।

संगीतमाला की इस पायदान पर के संगीतकार हैं सचिन जिगर। सचिन यानि सचिन संघवी और जिगर यानि जिगर सरैया की ये जोड़ी  फिल्म जगत में ये पिछले डेढ़ दशक से सक्रिय हैं। पहले संगीतकार  राजेश रोशन और फिर प्रीतम के लिए काम करने के बाद हिंदी फिल्म संगीत में इन्होंने स्वतंत्र रूप से काम करना शुरु किया।

शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख्वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात ज़िगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल  एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा। 


सचिन जिगर की जोड़ी को विश्वास था कि ज़रा हटके ज़रा बचके फिल्म के लिए बनाई उनकी इस धुन और अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बोलों में ये बात है, बस वो एक ऐसा गायक लेना चाहते थे जो इस धुन और बोलों को अपनी गायिकी से जनता के हृदय में ले जा सके।

अब इस काम के लिए अरिजीत सिंह से बेहतर गायक कौन हो सकता था? वैसे भी सचिन जिगर की इस गुजराती संगीतकार जोड़ी का अरिजीत से पुराना राब्ता रहा है। अरिजीत ने अपने शुरुआती दौर में जब प्रीतम के लिए सहायक की भूमिका निभाई थी तब सचिन जिगर वहां अरेंजर हुआ करते थे। 

सचिन जिगर ने संगीतकार के साथ गायक की भी भूमिका कई बार निभाई है पर जब जिक्र अरिजीत का होता है तो वो हमेशा उनकी प्रतिभा और विनम्रता की प्रशंसा करते नहीं थकते। उनका कहना है कि अरिजीत अपनी आवाज़ की बनावट में परिवर्तन करना जानते हैं। उनसे आप किसी तरह के भी गाने गवा सकते हैं। कंपोजर तो हैं ही। और इतना सब होते हुए भी वे व्यवहार में उतनी ही सहजता के साथ सबसे पेश आते हैं। इसीलिए उनके साथ काम करना किसी भी संगीतकार के लिए यादगार पल होता है। उनके हिसाब से तू है तो मुझे और क्या चाहिए में  अरिजीत की गायिकी खिल के बाहर आई है।

अमिताभ का लिखा मुखड़ा सचिन जिगर की धुन के साथ जल्द ही जुबां पर चढ़ता है। मुखड़े के अलावा मुझे इस गीत की सबसे प्यारी पंक्ति  ज़ख्मों को मेरे मरहम की जगह बस तेरा छुआ चाहिए लगती है।

वाद्य यंत्रों में सचिन जिगर ने बांसुरी और गिटार का प्रमुखता से किया है पर गीत की जान सचिन जिगर की धुन और अरिजीत की गायिकी ही है।

बदले तेरे माही, ला के जो कोई सारी
दुनिया भी दे दे अगर तो, किसे दुनिया चाहिए
तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए
तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए
किसी की ना मदद, ना दुआ चाहिए
तू है तो मुझे फिर और क्या चाहिए
सौ बार जनम लूं तो भी 
तू ही हमदम हर दफा चाहिए

शुक्रवार, मार्च 29, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे..

एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला के 25 शानदार गीतों की इस शृंखला में अब आपको दस गीत ही सुनवाने बचे हैं। इन गीतों में ज्यादातर मेरे बेहद प्रिय रहे हैं। आज जो गीत मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ वो एक गैर फिल्मी गीत है जिसमें अरिजीत सिंह ने बतौर संगीतकार की भूमिका निभाई है। एक समय प्रीतम के सहायक रहे अरिजीत ने तीन साल पहले पगलेट के संगीत के लिए भी खासी वाहवाही लूटी थी। यहाँ भी वो अपने संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने में सफल रहे हैं।

मानसून के मौसम में पिछले साल जुलाई में रिलीज़ हुए इस गीत को लिखा था इरशाद कामिल साहब ने। इरशाद कामिल के लिए बरखा के बोलों को लिखना अतीत की यादों में भींगने जैसा था। बारिश बहुत लोगों के लिए एक मौसम से बढ़कर है। ये अपने साथ हममें से कितनों के मन में भावनाओं का ज्वार लेकर आती है। इरशाद ने कोशिश की इस गीत के द्वारा वे इन जज़्बातों को शब्द दे सकें। 
बड़ी कोमल शब्द रचना है इरशाद की इस गीत में। कुछ पंक्तियाँ तो बस मन को यूँ ही सहलाती हुई निकल जाती हैं जैसे कि झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे.. या फिर आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे। सच में बरखा सिर्फ एक गीत नहीं है बल्कि एक कैफ़ियत है जिसमें प्रेम, विरह और आख़िरकार मिलन के भाव बारिश की बूँदो में बहते चले आते हैं।
इस फिल्म का वडियो शूट बंगाल में हुआ। इस गीत का वीडियो देखते हुए मुझे परवीन शाकिर की वो नज़म याद आ गयी..

बारिश में क्या तन्हा भीगना लड़की
उसे बुला जिसकी चाहत में
तेरा तन-मन भीगा है
प्यार की बारिश से बढ़कर क्या बारिश होगी
और जब उस बारिश के बाद
हिज्र की पहली धूप खुलेगी
तुझ पर रंग के इस्म खुलेंगे
अरिजीत सिंह ने बरखा से जुड़े इस गीत में कुछ बेहद मधुर स्वरलहरियाँ सृजित की हैं। गिटार पर आदित्य शंकर का बजाया टुकड़ा जो मुखड़े के बाद और अंतरों के बीच बजता है मुझे बेहद मधुर लगा। गिटार के अलावा निर्मल्य डे की बजाई बाँसुरी भी कानों में रस घोलती है। साथ में कहीं कहीं पियानो की टुनटुनाहट भी सुनाई दे जाती है और फिर सोने पर सुहागा के तौर पर अरिजीत का एक प्यारा आलाप तो है ही
आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे
पानी की छाँव में, बूँदों के पाँव में बाँधे तू झाँझरें
हो, आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे

बहा के ले जाना दुख बीते कल के
गहरे-हल्के, पुराना धो जाना
आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे
तेरी नज़र को उतारे, कब से नहीं देखा रे

आजा, बरखा
बोलो, क्या बोलूँ, मैं ना तो क्या तू?
तू ना हो तो, मैं क्या बोलूँ? तू है तो मैं हूँ

आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
कब से नहीं देखा रे, आजा रे, आ, बरखा रे
पानी की छाँव में, बूँदों के पाँव में
हो, आजा रे, आ, बरखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे

गायिकी की दृष्टि से सुनिधि के लिए पिछला साल बेहतरीन रहा। हालांकि इस गाने के एक हिस्से को मैंने श्रेया और जैन की आवाज़ में सुना तो वो मुझे बारिश की सोंधी बूँदों की तरह ही मन को और शीतल कर गया।
सुनिधि के अपने इस गीत के बारे में कहना था कि हमने कोशिश की है बारिश को समर्पित एक गीत रचने की जो उस मौसम के साथ मन में उमड़ती घुमड़ती भावनाओं को भी व्यक्त कर जाता है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को उनकी आवाज़ में।



शनिवार, मार्च 23, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे

जुबली वेब सीरीज उस ज़माने की कहानी कहती है जब मुंबई में बांबे टाकीज़ की तूती बोलती थी। संगीतकार अमित त्रिवेदी को जब इस सीरीज के लिए संगीत रचने का मौका दिया गया तो उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी। एक ओर तो उन्हें चालीस और पचास के दशक में प्रचलित संगीत के तौर तरीकों को समझना और अपने संगीत को ढालना था तो दूसरी ओर तेज़ गति का संगीत पसंद करने वाली आज की इस पीढ़ी में उसकी स्वीकार्यता उनके मन में प्रश्नचिन्ह पैदा कर रही थी। 

अमित अपने मिशन में कितने सफल हुए हैं वो इसी बात से स्पष्ट है कि जुबली के गीत संगीत की भूरि  भूरि प्रशंसा हुई और इस गीतमाला में इसके चार गीत शामिल हैं और बाकी गीत भी सुनने लायक हैं। बाबूजी भोले भाले तो मैं पहले ही आपको सुना चुका हूँ। आज बारी है इसी फिल्म के एक दूसरे गीत "उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे.."की। 


जुबली का आप कोई भी गीत सुनेंगे तो आपको एक साथ कई पुराने नग्मे याद आ जाएँगे। संगीत संयोजन, गीत में बजने वाले वाद्य, गीत के बोल, गायक के गाने का अंदाज़ और उच्चारण..सब मिलकर आपकी आंखों के सामने ऐसा दृश्य उपस्थित करेंगे कि लगेगा कि पर्दे पर उसी ज़माने की श्वेत श्याम फिल्म चल रही हो।

उड़नखटोले के इस गीत के लिए अमित त्रिवेदी ने मोहम्मद इरफान और वैशाली माडे को चुना। इरफान को मैंने सा रे गा मा पा 2005 में पहली बार सुना था और उस वक्त भी में उनकी आवाज़ का कायल हुआ था। बंजारा, फिर मोहब्बत करने चला है तू, बारिश उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में से हैं। वैशाली ने भी सा रे गा मा पा के ज़रिए गायिकी की दुनिया में कदम रखा है। मराठी गीतों के अलावा कभी कभार उन्हें हिंदी फिल्मों में भी मौका मिलता रहा है।

अमित त्रिवेदी ने इरफान को जुबली में मुकेश की आवाज़ के लिए चुना। इरफान को कहा गया कि आपकी आवाज़ पचास प्रतिशत मुकेश जैसी और बाकी इरफान जैसी लगनी चाहिए। यानी टोनल क्वालिटी मुकेश जैसी रखते हुए भी उन्हें अपनी पहचान बनाए रखनी थी। उड़नखटोले में परिदृश्य चालीस के दशक का था जब सारे गायकों पर के एल सहगल की गायिकी की छाप स्पष्ट दिखती थी। इरफान ने इस बात को बखूबी पकड़ा। इरफान ने इस सीरीज में इठलाती चली, इतनी सी है दास्तां को अलग अंदाज़ में गाया है क्योंकि वो पचास के दशक के गीतों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। इरफान से ये सब करवाने के लिए अमित को उनके साथ सात आठ सेशन करने पड़ गए।

वैशाली की भी तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने ज़माना, हिरदय (हृदय), कईसे (कैसे) जैसे शब्दों को उस दौर की गायिकाओं की तरह हूबहू उच्चारित किया।

संगीत में कैसा आयोजन रखा जाए उसके लिए अमित ने सनी सुब्रमणियन की मदद ली। सनी के पिता ने पचास और साठ के दशक में अरेंजर की भूमिका निभाई थी। वायलिन प्रधान इस गीत में बांसुरी, मंडोलिन, वुडविंड और ढोलक की थाप सुनाई देती है। गीत में कौसर मुनीर के शब्दों का चयन भी उस दौर के अनुरूप है। प्रेम हिंडोले, अधर, हृदय जैसे शब्द तब के गीतों में ही मिलते थे।

उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
उड़े उड़नखटोले नयनों के मेरे
अँखियाँ मले ज़माना ज़माना

डोले प्रेम हिंडोले तन मन में मेरे
डोले प्रेम हिंडोले तन मन में तेरे
कैसे हिले ज़माना ज़माना ?

बन की तू चिड़िया, बन के चंदनिया
गगन से करती हैं बतियाँ मेरी
तू भी तो है रसिया, गाए भीमपलसिया
तेरी दीवानी सारी सखियाँ मेरी

बोले प्रेम पपीहे अधरों से तेरे
बोले प्रेम पपीहे अधरों से मेरे
कैसे ना सुने ज़माना ज़माना

डोले प्रेम हिंडोले तन मन में मेरे
डोले प्रेम हिंडोले तन मन में तेरे
कैसे हिले ज़माना ज़माना

टुकू टुकू टाँके, झरोखे से झाँके
नज़र लगावे जल टुकड़ा ज़हां
जिगर को वार दूँ, नज़र उतार दूँ
सर अपने ले लूँ मैं तेरी बला
जले प्रेम के दीये हृदय में मेरे
जले प्रेम के दीये हृदय में तेरे
उड़े उड़नखटोले 

तो आइए सुनें ये युगल गीत जो आपको चालीस के दशक के संगीत की सुरीली झलक दिखला जाएगा।

सोमवार, मार्च 18, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : आधा तेरा इश्क़, आधा मेरा .. ऐसे हो पूरा चंद्रमा..

2023 के 25 शानदार गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला का सफ़र आधे से ज़्यादा पूरा हो चुका है और काफी अंतराल के बाद आज की इस पायदान पर एक बार फिर गूँजेगी अरिजीत सिंह की आवाज़। पर इस गीत से जुड़ी रोचक बात ये है कि जब पहली बार इस गीत का मुखड़ा लिखा और गाया गया तो अरिजीत वहाँ परिदृश्य में थे ही नहीं।


इस गीत का संगीत देने वाले श्रेयस पुराणिक अपने गीतों को अक्सर सिद्धार्थ गरिमा की जोड़ी से लिखवाते रहे हैं। उनके इस साथ की वज़ह हैं संजय लीला भंसाली जिनकी फिल्मों में इस तिकड़ी ने साथ साथ काम किया है।

महाराष्ट के नागपुर से छत्तीसगढ़ के अंदरुनी इलाकों में अपना आरंभिक जीवन बिताने वाले श्रेयस मुंबई में सुरेश वाडकर से संगीत विद्यालय में अपना हुनर तराशने आए थे। संगीत साधना करते हुए उन्हें संजय लीला भंसाली का सहायक बनने का मौका मिला। बाजीराव मस्तानी की गणेश आरती उनके द्वारा ही कम्पोज़ की गयी थी। मूलतः गायक का सपना लिए हुए श्रेयस के संगीतकार बनने का ये पहला कदम था। श्रेयस आजकल ओटीटी के साथ साथ स्वतंत्र संगीत के जरिए भी अपनी धुनें श्रोताओं तक पहुंचा रहे हैं।



जब उन्होंने सिद्धार्थ गरिमा के साथ मिलकर इस गीत का मुखड़ा बनाया तो ये जरूर महसूस किया कि इसे किसी बड़ी फिल्म के लिए रख लेना चाहिए। ख़ैर वो बात आई गयी हो गयी। फिर दीवाली की एक पार्टी में पहुँचे श्रेयस ने वहां जमी जमाई महफ़िल के बीच इस गीत को यूं ही गाना शुरु कर दिया। उसी पार्टी में एनिमल के निर्देशक संदीप वांगा भी मौज़ूद थे। उन्होंने गीत सुना और सुनकर इतने प्रभावित हुए कि फिर गिटार के साथ कई बार और सुना। वे गीत की तारीफ़ करते  हुए चले गए। 

कुछ दिनों बाद उनके कार्यालय से वो फोन आ ही गया जिसकी श्रेयस बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। उनकी हामी भरने के बाद ही गीत का बाकी हिस्सा फिल्म की परिस्थिति को देख के लिखा गया।

एनिमल के इस गीत में कमाल के बोल लिखे हैं सिद्धार्थ और गरिमा ने। मुखड़ा ही देखिए कितना प्यारा है जो करवाचौथ की फिल्म की परिस्थिति में एकदम फिट बैठता है... आधा तेरा इश्क़, आधा मेरा .. ऐसे हो पूरा चंद्रमा...तारा तेरा इक तारा मेरा, बाकी अँधेरा आसमां..। नायक नायिका की सहज प्रेम कथा तो ये है नहीं। उसके कुछ बदरंग पहलू भी हैं जिनके रहते हुए भी कभी कभी सतरंगे इश्क़ की फुलझड़ियाँ निकलती रहती हैं और इसे विरोधाभास को शब्द देती हुए गीतकार जोड़ी लिखती है..बदरंग में सतरंगा है ये इश्क़ रे.. जोगी मैं और गंगा है ये इश्क़ रे।

पर नायक नायिका के इस जटिल रिश्ते को उनकी लिखी इस पंक्ति में बखूबी समझा जा सकता है मैं समंदर, परिंदा है ये इश्क़ रे....मन मातम और जिंदा है ये इश्क़ रे

पहले इसे श्रेयस ने ख़ुद गाया था पर फिल्म का हिस्सा बनते ही ये गीत अरिजीत का हो गया। श्रेयस ख़ुद मानते हैं कि अरिजीत उसे जिस स्तर पर ले गए वो शायद ही वहाँ ले जा पाते।

आधा तेरा इश्क़, आधा मेरा .. ऐसे हो पूरा चंद्रमा
हो तारा तेरा इक तारा मेरा, बाकी अँधेरा आसमां
ना तेरे संग लागे, बांधे जो पीपल पे धागे
ये सुरमे के धारे, बहते है नज़रे बचा के
बदरंग में सतरंगा है ये इश्क़ रे
जोगी मैं और गंगा है ये इश्क़ रे

माथे से लगा लूँ हाथ, छू के मैं पैर तेरे
हो रख लूँ मैं तन पे ज़ख्म, बना सारे बैर तेरे
रुकणा नी तू, हुण रुसना नी मैं
तेरा नी रहा, ना खुद दा वी मैं
दुनिया तू है मेरी
पर न आना अब न आना
मैं नीं आना शहर तेरे

जो फेरे संग लागे, रखते वो हमको जला के
वो वादे झूठे वादे, ले जा तू कसमें लगा के
रग रग में मलंगा है ये इश्क़ रे
क्यू लहू में ही रंगा है ये इश्क़ रे
हो बदरंग में.. 

तू मेरी सारी यादें, पानी में आज बहा दे
ये तेरी भीगी आँखें, रख लू लबों से लगा के
मैं समंदर, परिंदा है ये इश्क रे
मन मातम और जिंदा है ये इश्क़ रे
हो बदरंग में ...

तो आइए सुनते हैं गिटार आधारित इस शब्द प्रधान धुन को अरिजीत की आवाज़ में

गुरुवार, मार्च 14, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : कल रात आया मेरे घर इक चोर

वार्षिक संगीतमाला की पिछली पोस्ट पर मैंने जिक्र किया था देश में पनप रहे स्वतंत्र संगीत (Independent Music) का। कई अच्छे स्वतंत्र गीत बनते हैं और गुमनामी के अँधेरों में खो जाते हैं पर वहीं दूसरी ओर ऐसे भी गीत हैं जो बिना किसी प्रचार के ही वायरल हो जाते हैं। गीत के सेट और अपनी वेशभूषा पर आप चाहे जितनी भी खर्च करें वो सिर्फ कुछ दिनो् तक देखने सुनने वालों का ध्यान खींच सकता है। उसके बाद तो गीत के बोल, धुन और आवाज़ ही लोगों की याददाश्त में रह पाते हैं। आप सज्जाद अली के गीत देखिए। साल में उनके गिने चुने गीत आते हैं और वो भी बड़े साधारण से परिदृश्य और गेटअप के साथ पर रावी विच पानी कोई नहीं उनके गाने के बाद भी आप वर्षों गुनगुनाते रहते हैं और गाते गाते आँखे भी भर जाती हैं। तो ये कमाल है सच्चे गीत संगीत का।

आज जो गीत दाखिल हो रहा है वार्षिक संगीतमाला में वो रिलीज़ तो हुआ था पिछले साल दिसंबर में पर उसके दो महीने बाद तक किसी ने उसकी खोज ख़बर नहीं ली थी। फिर फरवरी के आख़िर में एक ही हफ्ते में इंटरनेट पर वो ऐसा वायरल हुआ कि बॉलीवुड की अभिनेत्रियों से लेकर छोटे छोटे स्कूल के बच्चे भी उस पर ताबड़तोड़ रील बनाने लगे। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ गीत कल रात आया मेरे घर इक चोर की।

इस गीत को गाया, लिखा और धुन से सजाया एक ऐसे शख़्स ने जिसका वास्तविक नाम अभी तक लोगों को पता नहीं। दुनिया के लिए उन्होंने अपना एक अजीब सा नाम रखा है और वो है जुस्थ। उनसे जब ये सवाल किया जाता है तो वो कहते हैं कि आख़िर नाम में क्या रखा है, आप उसके पीछे के व्यक्ति को  देखिए। जुस्थ एक चार्टेड एकाउटेंट थे। वो सब छोड़ छाड़ कर संगीत की दुनिया में चले आए। अमेरिका में कई जगहों पर अपने शो कर चुके हैं पर आजकल मुंबई में उनका बसेरा है। अपने से लिखते हैं, गाते हैं, गिटार भी खुद ही बजाते हैं और फिर यूँ ही बिना किसी प्रचार के अपने गाने रिलीज़ कर देते हैं। अगर उनका ये चोर ना आया होता तो हम आज जुस्थ के बारे में बातें भी नहीं करते।

चोर के बोलों को गौर से सुनेंगे तो पाएँगे कि उसमें जीवन से लेकर मुक्ति तक की पूरी फिलासफी छुपी है। इस गीत को सुनकर मुझसे सबसे पहले रब्बी शेरगिल का गीत बुल्ला कि जाणा मैं कौन याद आ गया था जिसमें दार्शनिकता का ऐसा ही पुट था। वो गीत भी अपने वक़्त में काफी लोकप्रिय हुआ था। अगर इस गीत की बात करें तो यहाँ भी चोर तो बस एक बिंब है जिसे जुस्थ ने एक गहरी बात कहने के लिए इस्तेमाल किया है। जब हम इस दुनिया में आते हैं हमारे पास कुछ नहीं होता। फिर जैसे जैसे उम्र बढ़ती है ज़िंदगी की पोटली भरती चली जाती है। रिश्ते नातों, जाति मजहब, ख्वाबों, दौलत, शोहरत, ग़म तन्हाई, सफलता असफलता कितने चाही अनचाही भावनाओं का बोझ हमारे दिल पर होता है और सोचिए कोई चोर आकर इन सबसे हमको अलग कर दे तो हम अपनी शख्सियत से ही आज़ाद हो जाएँगे या यूँ कहें कि हमें मुक्ति का मार्ग ही मिल जाएगा।

मुझे नहीं लगता कि सारे लोग जो इस गीत को पसंद कर रहे हैं उनमें सारे इसके धीर गंभीर भाव तक पहुँचे होंगे। फिर क्यूँ बच्चे, युवा और बुजुर्ग इस गीत को सराह रहे हैं? पहला कारण तो ये कि जुस्थ की आवाज़ में एक प्यारी सी ठसक है। गीत में चोर को लाने का उनका विचार भी मज़ेदार है और चैतन्य द्वारा संयोजित किया गया गिटार पर आधारित संगीत, कानों में रस घोलता है। इन सबसे बड़ी बात ये कि इस गाने की पंक्तियों को आप इमोट कर सकते हैं । मतलब रील बनाने के लिए ये गीत सर्वथा उपयुक्त है। तो आइए सुनते हैं बनारस में फिल्माए इस गहरे पर मज़ेदार गीत को जुस्थ की आवाज़ में

कल रात आया मेरे घर इक चोर

आ के बोला दे दे मुझे जो भी तेरा है
मैंने बोला 
मेरा नाम भी ले जा मेरा काम भी ले जा
मेरा राम भी ले जा मेरा श्याम भी ले जा
कल रात आया मेरे घर इक चोर
आ के बोला दे दे मुझे जो भी तेरा है
मैंने बोला 
मेरी जीत भी ले जा, मेरी हार भी ले जा
मेरा डर भी ले जा, मेरा घर भी ले जा
मेरे ख़्वाब भी ले जा, मेरे राज भी ले जा
मेरा ग़म भी ले जा, हर जख़्म भी ले जा
मेरी जात भी ले जा, औकात भी ले जा
मेरी  बात भी ले जा, हालात भी ले जा
ले जा मेरा, जो भी दिखे
जो ना दिखे, वो भी ले जा
कर दे मुझे आज़ाद आज़ाद आज़ाद
कल रात आया मेरे घर इक शोर


शनिवार, मार्च 09, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : मैं हँसता रहा और आँखों से बह गयी नदी : कैसी कहानी ज़िंदगी ?

आज कल स्वतंत्र संगीत (जिसे हम बोलचाल की भाषा में Independent Music के नाम से जानते हैं) ने आकार लेना शुरु कर दिया है।  सोशल मीडिया के आ जाने के बाद हर अच्छा कलाकार छोटे छोटे बैनरों के तले अपना संगीत ढेर सारे म्यूजिकल प्लेटफार्म्स पर अपलोड कर रहा है। फिल्म संगीत और ओटीटी पर रिलीज़ फिल्मों के सारे गीतों को तब भी आप सुन सकते हैं पर स्वतंत्र संगीत के गहरे सागर के सारे मोतियों को सुनना और चुनना असंभव ही है। वैसे भी सब के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वो अपने गीतों को ढंग से प्रचारित कर श्रोताओं के सम्मुख ला सकें।

फिर भी एक संगीतप्रेमी होने के नाते आप उसमें हो रहे अच्छे कामों को अनदेखा नहीं कर सकते। 25 गीतों से सजी इस इस गीतमाला में मैंने इस कोटि के तीन ऐसे गीतों को चुना है जिन्होंने एक बार सुनने के बाद साल भर मेरा पीछा नहीं छोड़ा। इसमें पहला गीत है 'कैसी कहानी ज़िदगी' जिसमें गीत और गायिकी है शांतनु घटक की और संगीत संयोजन है अनूप सातम का। 


बतौर संगीतकार शांतनु घटक से मेरा पहला परिचय फिल्म तुम्हारी सुलु के गीत रफ़ू से हुआ था जो कि उस साल की गीतमाला का सरताज गीत भी बना था। शांतनु हैं तो बंगाल के पर बतौर गीतकार भी बेहद कमाल लिखते हैं। उनकी गायिकी हेमंत दा वाली टोन की याद दिला देती है। वैसे शांतनु जब कोई धुन नहीं बना रहे होते हैं तब विज्ञापनों और फिल्मों में भी यदा कदा वो अभिनय करते नज़र आ जाते हैं।

शांतनु ने इस गीत में जीवन से किसी ख़ास के चले जाने का दर्द बयां किया है। जिस रिश्ते को पोषित पल्लवित करने में हमारी भावनाओं की उर्जा लगी होती है उससे अचानक ही निकल कर जीवन में आगे बढ़ जाना सिर्फ 'मूव आन कहने' जितना सरल नहीं होता। ऊपर ऊपर से तो सब सामान्य रहता और दिखता है पर थोड़ा कुरेदते ही कसकती यादों, हरे जख़्मों और जमे हुए आँसुओं की कई परतें नज़र आने लगती हैं। 

शांतनु की लेखनी बाहर और अंदर के इसी विरोधाभास को गीत में जगह जगह उभारती है। मसलन मैं हँसता रहा और आँखों से बह गयी नदी....मैं बनता गया पर बनती गयी तेरी कमी...मैं रुकता गया कब गुजर गयी तेरी सदी । अनूप सातम का मुखड़ा के पहले पियानो पर बजाया आधे मिनट का टुकड़ा जो अंतरों में भी दोहराया जाता है मन को मधुर तो लगता ही है साथ ही गीत के मायूस करते मूड में ढाल देता है। 

मैं हँसता रहा और आँखों से बह गयी नदी 
कैसी कहानी ज़िंदगी
मैं बसता गया पर पैरों से उड़ चली ज़मीं
कैसी कहानी ज़िंदगी

जब कभी यहाँ छाए बादल
यूँ लगा कि है तेरा काजल
जब वो काजल धुला,  कहीं पे सूरज ना मिला
मैं रुकता गया कब गुजर गयी तेरी सदी 
कैसी कहानी ज़िंदगी

अब तो है तेरा अलग ठिकाना
इस घर ने फिर भी ना माना
खिड़कियाँ खोल के तेरे नज़ारों को छाना
मैं बनता गया पर बनती गयी तेरी कमी
कैसी कहानी ज़िंदगी

तो आइए सुनिए विछोह की इस कहानी को शांतनु की जुबानी

रविवार, मार्च 03, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : रह जाओ ना

हरिहरण का नाम आते ही एक शास्त्रीय ग़ज़ल गायक की छवि उभर कर सामने आती है हालांकि उन्होंने कई मशहूर हिंदी फिल्मी गीत भी गाए हैं। ज्यादातर उन्हें ऐसे मौके दक्षिण भारतीय संगीत निर्देशकों ने ही दिये हैं जिसमें ए आर रहमान का नाम आप सबसे आगे रख सकते हैं। गुरु का ऍ हैरते आशिक़ी हो या बांबे का तू ही रे, रोज़ा का रोज़ा जानेमन या फिर सपने का चंदा रे चंदा रे, रहमान और हरिहरण की जोड़ी खूब जमी है। पर रहमान के संगीत निर्देशन के परे उनका गाया झोंका हवा का और बाहों के दरमियाँ भी मुझे बेहद पसंद है।


वार्षिक संगीतमाला के लिए गीतों का चुनाव करते समय जब उनकी आवाज़ मेरे कानों से टकराई तो मैं चौंक गया। चौंकने की वज़ह ये भी थी कि फिल्म तेजस का एल्बम युवा संगीतकार शाश्वत सचदेव का था, फिर भी चुनिंदा गीत गानेवाले हरिहरण को उन्होंने इस फिल्म के लिए राजी कर लिया। ख़ैर शाश्वत प्रतिभावन तो हैं ही। उनके हुनर का पहला नमूना तो उनके सबसे पहले एल्बम फिल्लौरी में मैंने देख ही लिया था

हरिहरण  के साथ शाश्वत सचदेव

शाश्वत ने हरिहरण साहब को जो गीत दिया उसमें अपने प्रिय से और रुकने का अनुरोध है। ऐसी भावना लिए कई कालजयी गीत पहले भी बने हैं। मसलन अभी ना जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं, न जा कहीं अब न जा दिल के सिवा, ना जाओ सइयाँ छुड़ा के बइयाँ कसम तुम्हारी मैं रो पड़ूँगी और नज़्मों की बात करूँ आज जाने की ज़िद ना करो यूँ ही पहलू में बैठे रहो का जिक़्र कैसे छोड़ा जा सकता है।

गीतकार कुमार के साथ शाश्वत सचदेव


ये गीत उस श्रेणी का तो नहीं फिर भी हरिहरण की आवाज़ में इसे सुनकर मन में एक सुकून सा तारी हो जाता है। कुमार का लिखा मुखड़ा और प्यारा सा अंतरा, शाश्वत का गीत के पार्श्व में बजता पियानो और अंतरों के बीच में सतविंदर पाल सिंह की बजाई सारंगी इस प्रभाव को गहरा करते हैं। 


तो आइए सुनें इस प्यारे से गीत को...

बैठो तो ज़रा यहाँ, कितनी बातें बची हैं अभी
होठों पर तेरे लिए, कबसे रखी हुई है हँसी
कुछ देर के लिए, रह जाओ ना
रह जाओ ना यहीं, रह जाओ ना
अभी तो सितारों को गिनना है बाकी, अधूरी है ख़्वाहिश अभी
अभी बादलों में हमें भींगना है, बची बारिशें हैं कई
बातें बची हैं जो आधी अधूरी वो बात कह जाओ ना
छोड़ दो ये जिद ज़रा मेरा कहना भी मानो अभी
तेरा बाकी अभी रूठना, मेरा बाकी मनाना अभी
कुछ देर के लिए...  रह जाओ ना
अभी तो कहानी के कई मोड़ बाकी, बाकी कई यारियाँ
शैतानियों से खेलने की करनी है तैयारियाँ

मंगलवार, फ़रवरी 27, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर जहाँ माटी में सोना हेराइल बा

कई बार फिल्मों में ऐसे गीत बनते हैं जो उस वक्त देश और समाज के हालातों को अपने शब्दों में पिरो डालते हैं और एक तरह से देश के इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं। अभी हाल ही में सदन में प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तंज कसते हुए एक गीत की चर्चा की ये कहते हुए कि विपक्ष के शासन के दौरान मँहगाई इतनी बढ़ गयी थी कि मँहगाई डायन खाए जात है जैसे गीत बनने लगे थे। पिछले साल के पच्चीस शानदार गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में जो गीत आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद इसमें वर्णित घटनाओं की चर्चा कुछ सालों बाद कोई और करे। कोविड की महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की अपने घरों की ओर लौटने में जो बदतर हालत हुई थी ये गीत उसी का यथार्थवादी चित्रण करता है।  

फिल्म भीड़ के इस गीत की धुन बनाई संगीतकार अनुराग सैकिया ने और इसे गाया है लोक गायक ओम प्रकाश यादव ने। डा. सागर के लिखे गीतों की चर्चा  पहले भी वार्षिक संगीतमाला में हुई है। सागर मेरे गृह जिले बलिया से आते हैं और जीवन में बहुत तप कर बॉलीवुड के संसार में अपने कदम जमा पाए हैं। उनके संघर्ष के दिनों की बात लिखी थी मैंने पहले यहाँ। हिंदी फिल्मों में उनके गीत हर साल आते ही रहे हैं पर मुंबई में का बा की सफलता के बाद उनके काम को और सम्मान से देखा जाने लगा है।


मज़े की बात ये है कि ये गीत हिंदी में नहीं नहीं बल्कि भोजपुरी है। बिहार यूपी के पुरवइया मजदूरों का दर्द बयाँ करने के लिए भोजपुरी से अच्छी भाषा क्या हो सकती थी। मैंने सागर के हिंदी फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों को सुना है पर इस गीत में इतना बढ़िया खाका खींचा है उन्होंने उस वक़्त की परिस्थितियों का कि ये गीत उनके सबसे अच्छे कामों में आगे भी गिना जाएगा। मुखड़े में सागर लिखते हैं...खुनवा-पसीना सहरिया में भैया, कउड़ी के भाव में बिकाइल बा...चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर, जहाँ माटी में सोना हेराइल बा। भोजपुरी में सुगना तोते को कहते हैं और हेराइल मतलब छिपा हुआ। अंतरों में भी उनके बिंब कमाल के हैं.. भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे...बोरा से सरसों छिंटाइल बा या फिर धुआँ धुआँ हो गइल अल्हड़ जवनियाँ...चूल्हा में ऐसे झोंकाइल बा...हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे..कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा



क्या क्या नहीं सहा हमारे मजदूरों ने और उनके दिल का सारा दर्द सागर ने महज कुछ अंतरों में हमारे आगे उड़ेल दिया। आज के माहौल में लाउड स्पीकर पर बजते भोजपुरी गीत किस लिए जाने जाते हैं ये मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में सागर जैसे प्रतिभाशाली गीतकार चैती, कजरी, सोहर, बिरहा से सम्पन्न भोजपुरी संस्कृति को अपने गीतों से एक नई दिशा दे रहे हैं जिसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी। 

खुनवा-पसीना सहरिया में भैया, 
कउड़ी के भाव में बिकाइल बा...
चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर, 
जहाँ माटी में सोना हेराइल बा

घर अँगनइया के सपना सजाकर 
मशिनियो से बेसी देहिया खटवनी
हाय रे करम यही पेटवा की ख़ातिर
अब वाचमैनी के ड्यूटी बजवनी
भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे
बोरा से सरसों छिंटाइल बा

कवने कानूनवा में हम घिरैलीं
कवन बहेलिया बिछावे रे जाल
काहे भइल बा एतना लाचारी
सुई, दवाई एगो टिकिया मुहाल
हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे
कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा

भटके शहरिया में ए भइया जेकर 
खेत खलिहानवा हो बाटे छिनाइल 
गहना गुरिया के बतिया न पूछ 
बाटे समान मोरा बनकी धराइल 
धुआँ धुआँ हो गइल अल्हड़ जवनियाँ
चूल्हा में ऐसे झोंकाइल बा

जतिया धर्मवा के ऐसन अफीम हो
सुतही से केहू चटावे हो राम
हथवा में लेके नफ़रत के लाशा
धीरे से केहू सटावे हो राम
बचके जिय तनि बचके पिया
एही कुइयाँ में भाँगवा घोराइल बा 

अब कुछ बातें इस गीत में संगीत देने वाले अनुराग कीं। अनुराग सैकिया एक अद्भुत संगीतकार हैं। थप्पड़ में उनका संगीतबद्ध गीत एक टुकड़ा धूप का.. मेरी गीतमाला के सरताज गीत का तमगा में ले चुका है। दो साल पहले राजशेखर के साथ ऐसे क्यूँ ने तो युवाओं और बड़ों सबका दिल जीत लिया था। अनुराग असम से आते हैं और वहाँ के लोक संगीत में रच बस कर ही उन्होंने अपनी संगीत की कारीगरी सीखी है। शायद इसीलिए उन्होने इस गीत को गवाने के लिए बिरहा गायक ओम प्रकाश यादव को चुना। शब्द प्रधान इस गीत में संगीत नाममात्र सा ही है। फिर भी ऊस थोड़े से संगीत में तॉपस रॉय का दो तारा और तेजस की बजाई बाँसुरी मन को लुभाती है।

सोमवार, फ़रवरी 26, 2024

अलविदा पंकज उधास.. भुला ना पाएँगे आपकी लोकप्रियता का वो दशक...

अस्सी का दशक मेरे लिए हमेशा नोस्टाल्जिया जगाता रहा है।  फिल्म संगीत के उस पराभव काल ने ग़ज़लों को जिस तरह लोकप्रिय संगीत का हिस्सा बना दिया वो अपने आप में एक अनूठी बात थी। उस दौर की सुनी ग़ज़लें जब अचानक ही ज़ेहन में उभरती हैं तो मन आज भी एकदम से तीस चालीस साल पीछे चला जाता है। बहुत कुछ था उस समय दिल में महसूस करने के लिए, पर साथ ही बड़े कम विकल्प थे मन की भावनाओं को शब्द देने के लिए।


फिल्मी गीतों को हमने सुनना छोड़ दिया था। जगजीत व चित्रा हमारे दिलों पर पहले से ही राज कर रहे थे। उनके साथ गुलाम अली, मेहदी हसन, राजकुमार रिज़वी, और राजेंद्र मेहता की आवाज़ें भी दिल को भाने लगी थीं।

पर इनके साथ साथ एक और चौकड़ी तेजी से लोकप्रियता बटोर रही थी। ये चौकड़ी थी पंकज उधास, अनूप जलोटा, तलत अजीज़ और पीनाज मसानी की। चंदन दास भी इस सूची में आगे जुड़ गए। 

अनूप साहब तो बाद में भजन सम्राट कहे जाने लगे पर पंकज जी की गाई ग़ज़लों को चाहने वाले भी कम न थे। उस दशक में पंकज जी की लोकप्रियता का आलम ये था कि उनके गाए गीत व ग़ज़लें मिसाल के तौर पर 'चाँदी जैसा रंग है तेरा', 'इक तरफ तेरा घर इक तरफ मैकदा..', 'घुँघरू टूट गए..' गली नुक्कड़ों पर ऐसे बजा करते थे जैसे आज के हिट फिल्मी गीत। उनके कितने ही एल्बम की उस ज़माने में प्लेटिनम डिस्क कटी।

इतना होते हुए भी पंकज उधास मेरे पसंदीदा ग़ज़ल गायक कभी नहीं रहे। पर इस नापसंदगी का वास्ता मुझे उनकी आवाज़ से नहीं पर उनके द्वारा चुनी हुई ग़ज़लों से ज्यादा रहा है। पंकज उधास ने ग़ज़लों के चुनाव से अपनी एक ऐसी छवि बना ली जिससे उनकी गाई हर ग़ज़ल में 'शराब' का जिक्र होना लाज़िमी हो गया। ऐसी ग़ज़लें खूब बजीं भी मसलन थोड़ी थोड़ी पिया करो, सबको मालूम है मैं शराबी नहीं, शराब चीज़ ही ऐसी है वगैरह वगैरह पर उनके जैसी प्यारी आवाज़ का उम्दा शायरी से दूर होना मुझे खलता रहा।

पर किशोरावस्था में उनकी कुछ ग़ज़लें ऐसी रहीं जिन्हें गुनगुनाना हमेशा मन को सुकून देता रहा। जैसे ...दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है..हम भी पागल हो जायेंगे, ऐसा लगता है/कितने दिनों के प्यासे होंगे यारों सोचो तो...शबनम का कतरा भी जिनको दरिया लगता है

उनकी गायी मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़ल थी.. तुम न मानो मगर हक़ीक़त है ...इश्क़ इंसान की ज़रूरत है/ उस की महफ़िल में बैठ कर देखो... ज़िंदगी कितनी ख़ूबसूरत है जिसे जनाब क़ाबिल अजमेरी ने लिखा था। इसे तब और आज भी गुनगुनाना मुझे बेहद प्रिय है। 

अस्सी के उत्तरार्ध में फिल्म नाम के लिए.. चिट्ठी आई है आई है ..गा कर उन्होंने पूरे भारत का दिल जीत लिया था। उसके बाद वो जहां भी जाते उनसे इस गीत की फरमाइश जरूर की जाती। उनके गाए फिल्मी गीत उनकी अलग सी आवाज़ के लिए हमेशा लोगों द्वारा पसंद किए जाते रहे।

उनके जितने भी साक्षात्कार सुने उनमें वे मृदुभाषी और विनम्रता से भरे दिखे। पिछले कुछ सालों से वे नए ग़ज़ल गायकों को बढ़ावा देने वाले सालाना कार्यक्रम खज़ाना में अनूप जलोटा जी के साथ मिलकर सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। अभी पिछले साल यहां एक वीडियो शेयर किया था जिसमें पापोन की गायिकी को उनकी भरपूर दाद मिल रही थी। नए गायकों को प्रोत्साहित करने में वे कभी पीछे नहीं रहे।

शायद तब उन्हें भी नहीं पता होगा कि वो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की गिरफ्त में हैं। आज उनका जाना ग़ज़ल प्रेमियों और ग़ज़ल गायकों के लिए एक कठोर आघात की तरह है। 

बस उनकी अचानक हुई रूखसती से उनकी गाई ये पंक्तियां याद आ रही हैं कि 

किसे ने भी तो न देखा निगाह भर के मुझे

गया फिर आज का दिन भी उदास कर के मुझे😞


शुक्रवार, फ़रवरी 23, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा

वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर पिछले गीत की तरह ही एक बार फिर हल्का फुल्का गीत है जो कि पिछले साल खूब पसंद किया गया। फिल्म है ज़रा हटके ज़रा बचके और गाना तो आप समझ ही गए होंगे "तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा..."।

हिंदी फिल्मों में तो चाँद सितारों को तोड़ के लाने की बातें पहले भी हुई हैं। शाहरुख खाँ पर फिल्माया एक गाना चाँद तारे तोड़ लाऊँ बस इतना सा ख़्वाब है.... तो आपको याद ही होगा। पर जब प्रेम का ही प्रदर्शन करना है तो इतनी तोड़ फोड़ क्यूँ करनी? इसीलिए गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इस बार जुमला बदला और लिखा ..तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा, सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा🙂


तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा
सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा

चाँद तारों से कहो, अभी ठहरें ज़रा
चाँद तारों से कहो कि अभी ठहरें ज़रा
पहले इश्क़ लड़ा लूँ उसके बाद लाउँगा
हम हैं ज़रा हट के, जनाब-ए-आली
रहना ज़रा बच के....

पर इस गीत की खासियत ये नहीं कि वादा क्या किया जा रहा है। खासियत ये है कि वादे से किस खूबसूरती से पलटा जा रहा है। अमिताभ आगे लिखते हैं

देखा जाए तो वैसे, अपने तो सारे पैसे
रह के ज़मीन पे ही वसूल हैं
चेहरा है तेरा चंदा, नैना तेरे सितारे
अंबर तक जाना ही फ़िज़ूल है
अंबर तक जाना ही फ़िज़ूल है

इसके बाद भी अगर तुझे चैन ना मिले
पूरी करके मैं तेरी ये मुराद आउँगा
तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा
सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा

अगर ये काबिलियत आप में आ गयी तो प्रेम से लेकर राजनीति सारे समीकरण अपके पक्ष में ही बैठेंगे। सचिन जिगर ने ताल वाद्यों और गिटार के साथ एक फड़कती सी धुन बनाई है जिस पर आप नायक नायिका की तरह आसानी से ठुमके लगा सकते हैं।

पहली बार जब मैंने इस गीत को सुना तो लगा कि ये गाना भी अरिजीत ने गाया होगा पर बाद में पता चला कि गवैया तो कोई और है। दरअसल इस गीत को गाया है युवा गायक वरूण जैन ने। अरिजीत की गायिकी का उन पर स्पष्ट प्रभाव है। मैंने जब उनके गाए पिछले गानों को खँगाला तो पाया कि उन्होंने इससे पहले अरिजीत के गीतों के कई कवर वर्जन गाए हैं। 

वैसे इसके दो साल पहले उन्हें फिल्म हम दो हमारे दो में रेखा भारद्वाज जैसी हुनरमंद गायिका के साथ गाने का मौका मिल चुका है। पर तेरे वास्ते ने उनकी गायिकी को गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर सबके सामने ला दिया है।

इस गीत की सफलता के बाद वरुण ने कहा है कि लोगों की अपेक्षाएँ उनसे और बढ़ गयी हैं और अपने संगीत के प्रति वे पहले से ज्यादा जिम्मेदार हो गए हैं। आशा है वो आगे भी अपनी आवाज़ से श्रोताओं का दिल जीतते रहेंगे।

देखने से लगते तो नहीं पर 34 वर्षीय वरुण की आवाज़ में एक ताज़गी है। अपने म्यूजिक वीडियोज़ वे बिल्कुल सादा लिबास में बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ गिटार लिए मिलेंगे। 

गीत के कोरस में वरूण का बखूबी साथ दिया है जिगर सरैया और फरीदी बंधुओं ने। तो आइए सुनते हैं ये मज़ेदार गीत




गुरुवार, फ़रवरी 22, 2024

अमीन सयानी और उनकी प्यारी बिनाका गीतमाला

आज से तकरीबन बीस साल पहले जब गीत संगीत से जुड़ा ब्लॉग एक शाम मेरे नाम शुरु किया था तो यहाँ अपनी पसंदीदा ग़ज़लों, कविताओं , किताबों की चर्चा के अलावा एक हसरत ये भी थी कि अमीन सयानी साहब की तरह अपने पसंदीदा गीतों की एक गीतमाला पेश करूँ। वो गीतमाला तो ब्लॉग पर आज तक चल रही है पर उसकी लौ जलाने वाला प्रेरणास्रोत आज इस जहान को विदा कह गया।

दरअसल बचपन में मनोरंजन के नाम पर हमारे पास ज्यादा कुछ नहीं था। बहुत से बहुत सिनेमा हॉल के महीने में एक दो चक्कर लग जाया करते थे। टीवी तो घर में बहुत देर में आया पर एक चीज़ शुरु से हमारे साथ रही और वो था छोटा पर बेहद सुंदर लाल रंग का नालको का ट्रांजिस्टर। 


इसी ट्रांजिस्टर पर जब समय मिलता हम हवा महल, मन चाहे गीत, रंग तरंग, अनुरोध गीत और छाया गीत जैसे कार्यक्रम सुना लिया करते थे। ये कार्यक्रम तो कभी छूट भी जाते पर अमीन सयानी साहब की बिनाका गीत माला..... उसे छूटने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। उनकी आवाज़ में प्रस्तुत वो कार्यक्रम हमारी पीढ़ी के लिए मनोरंजन का पर्याय था।

जितना मुझे याद है बिनाका गीत माला जो बाद में सिबाका और विविध भारती पर कोलगेट गीत माला में तब्दील हो गयी रेडियो सीलोन से हर बुधवार रात आठ बजे आती थी और मैं अपने ट्रांजिस्टर को पंद्रह मिनट पहले ही गोद में रखकर शार्ट वेव के 25 मीटर बैंड पर रेडियो सीलोन को ट्यून करने बैठ जाता था। उस ज़माने में रेडियो सीलोन के स्टेशन को ट्यून करना एक बेहद नाजुक मसला हुआ करता था। जहाँ fine tune से हाथ खिसका नहीं सीलोन से वॉयस आफ अमेरिका पहुँचने में देर नहीं लगती थी। एक बार ट्यूनिंग हो गयी तो परिवार के छोटे बड़े किसी भी सदस्य के लिए ट्रांजिस्टर को हिलाना डुलाना और घुमाना वर्जित हुआ करता था।

जैसे ही कार्यक्रम शुरु होता हम अमीन सयानी की जादुई आवाज़ में मंत्रमुग्ध से पायदानों पर चढ़ते उतरते और उनकी शब्दावली में छलांग मार कर सीधे ऊपर की पायदान पर विराजमान होते गीतों को एकाग्रचित्त सप्ताह दर सप्ताह सुना और गुना करते। साल के अंत में जब वे चोटी के गीत की घोषणा करते हुए कहते कि बहनों और भाइयों वक़्त आ गया है सरताजी बिगुल के बजने का तब मेरा तन मन रोमांचित हो जाता इस आशा में कि क्या मेरा पसंदीदा गीत अबकी बार पहली पायदान पर होगा। कई बार मुझे मायूसी हाथ लगती और मन ही मन उन गुमनाम श्रोता संघों की राय और रिकार्ड बिक्री के आंकड़ों पर खीझ उभरती पर मजाल है कि इन गीतों को क्रमबद्ध पेश करने वाले अमीन सयानी साहब पर मेरे दिल में कभी मलाल का एक कतरा भी आता।

अमीन साहब जैसा उद्घोषक भारतीय रेडियो के इतिहास में न कभी हुआ है न होगा। गीतों से परिचय कराने का उनका नायाब अंदाज़, उनकी आवाज़ की खनखनाहट, शब्दों को खींचने का उनका तरीका, संगीत से जुड़ी हस्तियों के बारे में उनके खज़ाने से निकले रोचक किस्से सब कुछ मन में ऐसा बैठ गया है जो शायद मरते दम तक मेरी यादों में हमेशा बना रहेगा और हाँ उनकी यादों की प्रेरणा से एक शाम मेरे नाम पर वार्षिक गीतमाला भी चलती रहेंगी। आज भले ही 91 वर्षों की लंबी आयु के बाद वो सशरीर हमारे बीच नहीं हैं पर मन में वो हमेशा के लिए बने रहेंगे।

मंगलवार, फ़रवरी 20, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : बाबूजी भोले भाले दुनिया फरेबी है जी

वार्षिक संगीतमाला में आज जो गीत बजने जा रहा है वो किसी फिल्म का नहीं है बल्कि एक वेब सीरीज का है। ये वेब सीरीज है जुबली। जुबली की कहानी  चालीस पचास के दशक के बंबइया फिल्म जगत के इर्द गिर्द घूमती है। अमित त्रिवेदी को जब इस ग्यारह गीतों वाले एल्बम की बागडोर सौंपी गई तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि किस तरह चालीस और पचास के दौर के संगीत को पेश करें कि उसे आज की पीढ़ी भी स्वीकार ले और उस दौर के संगीत का जो मिज़ाज था वो भी अपनी जगह बना रहे।

अमित हमेशा ऐसी चुनौतियों का सामना करते रहे हैं। आमिर, देव डी, लुटेरा और हाल फिल हाल में उनकी फिल्म कला के संगीत ने खासी वाहवाहियाँ बटोरी हैं। अमित अपने इस प्रयास में कितने सफ़ल हुए हैं वो इसी बात से समझ आ जाता है कि जब भी आप इस एल्बम का कोई नग्मा सुनते हैं तो एक साथ आपके ज़ेहन में उस दौर के तीन चार गीत सामने आ जाते हैं जिसकी संगीत रचना और गायिकी का कोई ना कोई अक्स जुबली के नग्मे में नज़र आ जाता है। 


अब आज जुबली के गीत बाबूजी भोले भाले की जाए तो सुनिधि चौहान की गायिकी का अंदाज़ आशा जी और गीता दत्त के अंदाज़ से मेल खाता दिखेगा वहीं गीत की संगीत रचना और फिल्मांकन आपको एक साथ शोला जो भड़के, मेरा नाम चिन चिन चू और बाबूजी धीरे चलना जैसे गीतों की याद दिला दे जाएगा। 

कौसर मुनीर के मज़ाहिया बोल मन को गुदगुदाते हैं और उन बोलों के बीच में आइ डी राव का बजाया वुडविंड और वादक गिरीश विश्व के ढोलक की जुगलबंदी थिरकने पर मजबूर कर देती है। पुराने गीतों की तरह ताली का इस्तेमाल भी है। इसके अलावा आपको इस गीत में वायलिन और मेंडोलिन जैसे तार वाद्यों की झंकार भी सुनाई देगी।

अमित त्रिवेदी ने धुन तो झुमाने वाली बनाई ही है पर एक बड़ी सी शाबासी के हक़दार सनी सुब्रमण्यम भी हैं जिन्होने परीक्षित के साथ मिलकर इस गीत और एल्बम में अरेंजर की भूमिका निभाई है। इन दोनों के पिता फिल्म उद्योग ये काम करते थे और उनके अनुभव का फायदा इस जोड़ी ने सही वाद्य यंत्रों के चुनाव में बखूबी उठाया है।


बाबूजी भोले-भाले, दुनिया फ़रेबी है जी

तू भी ज़रा टेढ़ा हो ले, दुनिया जलेबी है जी
बाबूजी भोले-भाले, दुनिया 
जलेबी है जी
राजा, ज़रा गोल घूम जा, राजा, ज़रा गोल घूम जा

बाबूजी भोले-भाले, दुनिया ये गोला है जी
तू भी ज़रा bat घुमा ले, बस ये ही मौक़ा है जी
बाबूजी भोले-भाले, दुनिया ये गोला है जी
आ जा, लगा ले चौका, आ जा

चमकीली खिड़कियों से तुझको बुलाते हैं जो
shutter नीचे गिरा के ख़ुद भाग जाएँगे वो
भड़कीली तितलियों से तुझको बहकाते हैं जो
बत्ती तेरी बुझा के ख़ुद जाग जाएँगे वो

बाबूजी भोले-भाले, बम का धमाका बंबई
तू भी जला ले तीली, बन जा पलीता है, भाई
बाबूजी भोले-भाले, बम का धमाका बंबई
राजा, बंबइया तू बन जा

दिल को समझा ले ज़रा, धक-धक करना मना है
प्यार का कलमा पढ़ना, प्यारे, सुन ले गुनाह है
मन को मना ले ज़रा, गुमसुम रहना मना है
ग़म में भी मार ठहाका, रोना-धोना मना है

बाबूजी-बाबूजी, दुनिया ये फ़ानी है जी
तू भी ज़रा मौज मना ले, whiskey जापानी है जी
बाबूजी-बाबूजी, दुनिया ये फ़ानी है जी
ले-ले जवानी का मज़ा..
.

तो आइए मासूमियत को धता बताते हुए टेढा होने की वकालत करते इस गीत का आनंद लीजिए। इस गीत को फिल्माया गया है वामिका गब्बी पर जो इससे पहले ग्रहण में नज़र आयी थीं। साथ ही आपको दिखेंगे राम कपूर बिल्कुल अलग से गेट अप में

गुरुवार, फ़रवरी 15, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : नौका डूबी रे

वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के बेहतरीन गीतों के इस सिलसिले में आज का जो गीत है उसका नाम है नौका डूबी। ऐसे तो नौका डूबी रवीन्द्रनाथ टैगोर का एक मशहूर उपन्यास भी है जिसकी कहानी पर कई बार हिंदी और बंगाली में फिल्में बनी हैं पर आज इसी नाम के जिस गीत की चर्चा मैं करने जा रहा हूँ उसका टैगोर के उपन्यास से बस इतना ही लेना देना है कि वहाँ भी एक नौका डूबती है और कहानी में उथल पुथल मचा देती है जबकि इस गीत में रिश्तों की नैया डूबती उतरा रही है। 

ये गीत है पिछले साल आई फिल्म Lost का और इसे लिखा है मेरे प्रिय गीतकार स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई है उनके पुराने जोड़ीदार शांतनु मोइत्रा ने। चूंकि ये फिल्म एक ऐसे OTT प्लेटफार्म पर आई जो उतना लोकप्रिय नहीं है इसी वज़ह से आप में से अधिकांश ने शायद ये गीत न सुना हो। पर इस गीत के साथ साथ किसी गुमशुदा इंसान की खोज करती एक महिला पत्रकार की कहानी भी बेहद सराही गई थी।


एक ज़माना था जब मदनमोहन जैसे कई संगीतकार लता जी की आवाज़ और क्षमतको ध्यान में रखकर गीत की धुनें बनाते थे और आज वही रुतबा श्रेया घोषाल ने अपने लिए अर्जित किया है। आज की तारीख़ में उनकी कोशिश यही रहती है कि वे ऐसे गाने लें जिसमें उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले।

किशोरावस्था में देवदास से अपना फिल्म संगीत का सफ़र शुरू करने वाली श्रेया को आज फिल्म जगत में बीस से ज्यादा साल हो चुके हैं पर आज भी आवाज़  की उस मिश्री सी खनक के साथ साथ उनमें नया कुछ करने की वैसी ही ललक है जैसी मुझे सोनू निगम और अरिजीत में दिखाई देती है। 

कमाल गाया है उन्होंने ये गीत। ऊँचे से एकदम नीचे सुरों का उतार चढ़ाव वे इतनी सहजता से लाँघती है कि सुन के आनंद आ जाता है। शांतनु का शांत संगीत तार वाद्यों, हारमोनियम और बाँसुरी की मदद से गीत के साथ बहता चलता है।

शहर समंदर ये दिल का शहर समंदर
दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ बनके हमसफ़र 
ओ कितना हसीं दिखता था, वो इश्क़ का मंज़र
तभी वक्त की एक आँधी उठी आया बवंडर

खोया मेरा प्यार, खोया ख़्वाब खोया, नौका डूबी रे
तेरा मेरा साथ छूटा, फिर बने हम अजनबी रे
खोया मेरा चाँद खोया, चाँदनी अम्बर से टूटी रे
तेरा मेरा साथ छूटा, फिर बने हम अजनबी रे

शहर समंदर ये दिल का, शहर समंदर
दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ हो के बेखबर
तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर
तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर 

हम दोनों दो किनारे, पास नहीं हैं
कैसे कह दें, हम जुदा हैं, हम दूर नहीं हैं
परछाइयाँ बन दूर रह के साथ चलेंगे
कभी आना तुम ख़्यालों में, हम बातें  करेंगे

खोया मेरा प्यार...हम अजनबी रे
खोया मेरा चाँद खोया, हम अजनबी रे
अजनबी रे... अजनबी रे.

अंबर से चांदनी के टूटने का बिंब तो प्रभावी लगता ही है पर अगले अंतरे में स्वानंद की लेखनी दिल में टीस सी पैदा करती है जब वो लिखते हैं तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर..तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर

ZEE5 पर प्रदर्शित फिल्म Lost के इस गीत को बेहद खूबसूरती से  फिल्माया है यामी गौतम और नील भूपालम पर


गीत के आडियो वर्सन में स्वानंद का लिखा एक और अंतरा भी है और हां उन्होंने ख़ुद भी इस गीत को गाया है एल्बम में।

शहर समंदर ये दिल का, शहर समंदर
दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ हो के बेखबर
तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर
तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर 


वार्षिक संगीतमाला का ये गीत फिलहाल प्रथम दस के आप पास मँडरा रहा है। आशा है आप लोगों को भी ये उतना ही पसंद आएगा।

शनिवार, फ़रवरी 10, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 दिल झूम झूम जाए

2023 के बेहतरीन गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में अगला गीत है एक sequel से जो कि अंत अंत में आकर इस गीतमाला में शामिल हुआ है। ये गीत है फिल्म गदर 2 का।


आज से दो  दशक पहले जब फिल्म गदर रिलीज़ हुई थी तो फिल्म के साथ-साथ उसके संगीत में भी काफी धमाल किया था। उड़ जा काले कावां कह लीजिए या फिर मैं निकला गड्डी लेकर तो जबरदस्त हिट हुए ही थे, साथ ही साथ मुसाफ़िर जाने वाले और आन मिलो सजना ने तो दिल ही को छू लिया था। इस फिल्म के लिए उदित नारायण की गायकी को आज तक सराहा जाता है।

इसकी पुनरावृत्ति गदर दो में होनी तो मुश्किल ही थी फिर भी संगीतकार मिथुन ने एक ईमानदार कोशिश जरूर की। फिल्म के दो गीत तो  पुरानी फिल्म से ही ले लिए गए पर दो-तीन गीत और जोड़े गए और उनमें एक गीत ऐसा जरूर रहा जिसका मुखड़ा गुनगुनाना मुझे अच्छा लगता है। ये गीत है दिल झूम झूम जाए और इसके बोल लिखे हैं सईद क़ादरी साहब ने जो कि बतौर गीतकार तीन दशकों से सक्रिय हैं और मिथुन की संगीतबद्ध फिल्मों में अक्सर नज़र आते हैं। 

गीत का मुखड़ा कुछ यूं है

ये शोख़ ये शरारत, ये नफ़ासत नज़ाकत
बहुत खूबसूरत हो आप सर से पांव तक
दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूम झूम जाए
तुम्हें हूर हूर, तुम्हें हूर हूर, हां, हूर सा ये पाए
दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूमता ही जाए

अब अगर गीत रूमानी तबीयत का हो तो आज की तारीख़ में लगभग हर संगीतकार अरिजीत पर सबसे ज्यादा विश्वास  रखते हैं । इसमें तो कोई शक ही नहीं कि अरिजीत अच्छी धुनों को अपनी गायिकी से और कर्णप्रिय बना देते हैं। अब देखिए ये गीत आपको झुमा पता है या नहीं 

रविवार, फ़रवरी 04, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 कि रब्बा जाणदा, तैनूँ कितनी मोहब्बताँ दिल करदा

जुबीन नौटियाल वैसे तो करीब एक दशक से पार्श्व गायिकी में अपने गाए रूमानी गीतों की वज़ह से युवाओं के चहेते गायक रहे हैं पर जबसे उनका गीत बजाओ ढोल स्वागत में, मेरे घर राम आए हैं वायरल हुआ है तबसे क्या बच्चे और क्या बड़े सब उनके गाए गीत के साथ भक्तिमय हुए जा रहे हैं। देहरादून से ताल्लुक रखने वाले इस उभरते गायक ने कई सारे फिल्मी और गैर फिल्मी एल्बमों में गाने गाए हैं पर मुझे बजरंगी भाईजान के लिए उनका गाया हुआ नग्मा कुछ तो बता जिंदगी मेरा पता जिंदगी... सबसे प्रिय है।

गीतमाला को आगे बढ़ाते हुए आज पेश है उन्हीं का गाया फिल्म मिशन मजनू का एक बेहद सुरीला नग्मा जिसके मुखड़े की मेलोडी आपको कहीं से भी खींच कर ये गीत सुनने को मजबूर कर देगी।

इस गीत की धुन बनाई है तनिष्क बागची ने और हिंदी पंजाबी मिश्रित बोल लिखे हैं शब्बीर अहमद ने। आपको याद होगा कि पिछले साल तनिष्क बागची और जुबीन की इसी जोड़ी का गीत राता लंबियाँ हर महफिल की रौनक बना था।

जुबीन की आवाज़ का तो कहना ही क्या! सीधे दिल को जा कर लगती है। मुखड़ा तो जितनी बार गुनगुनाया जाए मन नहीं भरता पर अंतरों में ऊँचे सुरों में उनका ये माधुर्य थोड़ा फीका जरूर पड़ जाता है। तनिष्क की धुन तो मधुर है पर पर मुखड़े के पहले और  इंटरल्यूड्स में राताँ लंबियाँ वाले संगीत संयोजन का दोहराव स्पष्ट दिखता है।


मिशन मजनू की नायिका नेत्रहीन हैं और बला की खूबसूरत भी। ज़ाहिर है हमारे मज़नूँ जी का दिल उन पर आ जाता है। जो आँखें देख ना सकें वो अपने भावों से बहुत कुछ सिखा जाती हैं सामने वाले इंसान को। शब्बीर इसी भाव को गीत में अपने सहज शब्दों से सँवारते हैं।

कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा, 
तैनूँ कितनी मोहब्बताँ दिल करदा
हाँ तेरे वाजू जी नहीं लगदा
रोग ये लगा इशक का
हर दुआ में तैनूँ मँगदा
कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा, 

ओ रे ओ रे तेरे नैना, 
छीन ले गए  दिल का चैना
इनमें झलके है ना ये जग सारेया

इश्क़ ये कैसे होता है
रंग ये कैसे खिलते हैं
देखूँ ये तेरी इन आँखों में

चाँदनी ये क्या होती है
दीप ये जलते कैसे हैं
देखूं ये तेरी इन आँखों में

हो ना जाने कब दिन चढ़ दा
कुछ वी पता नही चलदा
हर दुआ में तैनूँ मँगदा
कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा, 
तैनूँ कितनी मोहब्बताँ दिल करदा..

देख दुनिया मेरी आँखियों से
मैं रखाँगा तैनूँ पलकों पर
इक उम्र का सौदा ना करिये
वादे कर दूँ सातों जन्मों के
कि रब्बा जाणदा, कि रब्बा जाणदा...



 
मिशन मजनू का ये गीत फिल्माया गया है सिद्धार्थ और रश्मिका पर

 

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