संजीव कुमार हमेशा से हिंदी फिल्म जगत के मेरे पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। पत्रिकाओं में उन पर छपे आलेखों से उनके जीवन की थोड़ी बहुत झलकियाँ मिलती रहीं पर ऐसे शानदार अभिनेता पर किसी किताब का ना होना अखरता था। अभी हाल ही में मुझे पता चला कि हनीफ झावेरी और सुमंत बात्रा द्वारा पिछले साल ही ये किताब पेंगुइन द्वारा प्रकाशित की गयी है। हनीफ फिल्म पत्रकार तो हैं ही नाटककारों की संस्था IPTA से भी जुड़े रहे और उसी के माध्यम से संजीव कुमार से उनकी पहली मुलाकात भी हुई। किताब में उनके सहलेखक सुमंत बात्रा वैसे तो वित्तीय सलाहकार और वकील हैं पर संजीव कुमार के बहुत बड़े प्रशंसक भी।
संजीव कुमार को गुजरे दशकों हो गए इसलिए लेखक द्वय के लिए उनसे जुड़ी जानकारियाँ जुटाने का काम ज़रा मुश्किल था। इस काम में ज़रीवाला परिवार और संजीव के संगी साथियों ने हनीफ झावेरी की बड़ी मदद की। सुमंत किताब लिखने के दौरान बाद में जुड़े और उन्होंने बतौर फैन संजीव से जुड़ी जो जानकारियाँ सहेजी थीं वो किताब को अंतिम रूप देने में सहायक हुईं।
करीब दो सौ पन्नों की इस पूरी किताब को चार पाँच हिस्सों में बाँटा जा सकता है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, स्कूल में अभिनय से उनके लगाव और फिर नाटकों में उनकी हिस्सेदारी से लेकर बी ग्रेड फिल्मों तक उनका सफ़र आरंभिक अध्यायों में समेटा गया है। जानकीदास को अपना सचिव बनाने के बाद हिंदी फिल्मों में किस तरह उन्होंने एक के बाद एक झंडे गाड़े इसकी तो गाथा है ही, साथ ही उन फिल्मों के बनने के दौरान हुए मनोरंजक वाकयों का भी जिक्र है। किताब उनकी फिल्मों के बाहर की ज़िदगी से रूबरू कराती हुई, बीमारी से लड़ते हुए उनके अंतिम दिनों तक ले जाती है।
शतरंज के खिलाड़ी में शबाना आज़मी से काम करने के दौरान पूछा गया कि उन्हें कितने पैसे मिल रहे हैं? शबाना ने पलटकर कहा कि सत्यजीत रे की फिल्म में काम करने के लिए अगर उन्हें अपने हाथ भी कटवाने पड़े तो वो कटवा लेंगी। पास खड़े संजीव कुमार ने झट से चुटकी ली कि उनके हाथ तो सिप्पी साहब ने शोले में पहले ही कटवा दिए थे इसलिए वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।😀
त्रिशूल की शूटिंग में शशि कपूर को एक दिन जल्दी निकलना था। शशि की हड़बड़ी देख संजीव कुमार शर्ट और टाई के साथ लुंगी पहनकर बाहर निकले और कैमरामैन से कहा कि तुम ऊपर से हाफ शॉट लो ताकि लुंगी ना दिखे। वह अलग बात है कि शशि कपूर का हंसते-हंसते इतना बुरा हाल हो गया कि शॉट काफी देर के बाद पूरा हो पाया।😁
प्रसाद जब उन दोनों से सवाल करते तो वे कहते आज माहिम चर्च के पास दो टैक्सी टकरा गयीं तो कभी ये कि माहिम चर्च के पास बस दुर्घटना हो गयी। तंग आकर एल वी प्रसाद ने दोनों से कहा कि तुम लोग परिस्थिति नहीं बदल सकते कम से कम घटना का स्थान तो बदल दिया करो। 😂
एक बार मौसमी चटर्जी अपने पति के साथ घर से निकल ही रही थीं कि संजीव कुमार आ गए। उन्हें जाते देख बस इतना कहा निकल रही हो तो निकलो। बस अपनी कामवाली को कह दो कि कुछ नॉनवेज बना दे। फिर वह बैठे, फिल्म के वीडियो देखे, खाए पिए और चलते बने। एक बार तो इतनी रात में आ गए कि मौसमी चटर्जी को कहना पड़ा कि आप सिर्फ खाने के लिए यहां आते हैं? अगर ऐसा है तो ड्राइवर को भेज दीजिए हम डिब्बा भिजवा देंगे। 😡
एक बार तबस्सुम ने संजीव कुमार से साक्षात्कार के दौरान पूछा कि वह अपनी उम्र से बड़े किरदार हमेशा क्यों निभाते हैं? संजीव का जवाब था कि किसी भविष्यवक्ता ने कहा है कि मैं ज्यादा दिन नहीं जिऊंगा और इसीलिए मैं उस उम्र को पर्दे पर ही जी लेना चाहता हूं।
