जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
जगजीत सिंह यूं तो आधुनिक ग़ज़ल के बेताज बादशाह थे पर उन्होंने समय समय पर हिंदी फिल्मों के लिए भी बेहतरीन गीत गाए। अर्थ, साथ साथ, प्रेम गीत, सरफरोश जैसी फिल्मों में उनके गाए गीत तो आज तक बड़े चाव से सुने और गुनगुनाए जाते हैं। पर इन सब से हट कर उन्होंने कुछ ऐसी अनजानी फिल्मों के गीत भी निभाए जो बेहद कम बजट की थीं और ज्यादा नहीं चलीं या फिर ऐसी जो बनने के बाद रिलीज भी नहीं हो पाईं।
एक ऐसी ही फिल्म थी नर्गिस जिसमें राजकपूर की आखिरी फिल्म हिना से मशहूर होने वाली जेबा बख्तियार के साथ थे नसीर और हेमा जी। पर इतने नामचीन कलाकारों के होते हुए भी ये फिल्म रुपहले परदे का मुंह नहीं देख पाई। फिल्म का संगीत दिया था पंचम के मुख्य सहायक बासु चक्रवर्ती ने और बोल थे मजरूह सुल्तानपुरी साहब के।
हालांकि बाद में फिल्म का म्यूजिक एलबम जरूर रिलीज़ हुआ जिसमें जगजीत और लता जी का एक युगल गीत भी था। बासु ने पंचम के लिए तो काम किया ही साथ में वे कम बजट की ऐसी फिल्मों में भी बतौर संगीतकार संगीत देते रहे। मनोहारी सिंह के साथ मिलकर उनका काम सबसे बड़ा रुपैया में काफी सराहा गया था। किशोर लता के युगल स्वरों में दरिया किनारे एक बंगलो की मस्ती को कौन भूल सकता है।
जब मैं रुड़की में था तो मेरे एक मित्र जो कि जगजीत के बड़े प्रशंसक थे ने मुझे अपनी कलेक्शन से ये नग्मा सुनाया। जगजीत की आवाज़ के साथ मुखड़े में मजरूह की कविता मुझे इतनी प्यारी लगी थी कि मैं उनके कमरे से ये पंक्तियां गुनगुनाता हुआ निकला था
शफ़क़ हो, फूल हो, शबनम हो, माहताब हो तुम
नहीं जवाब तुम्हारा, कि लाजवाब हो तुम
मैं कैसे कहूँ जानेमन, तेरा दिल सुने मेरी बात
ये आँखों की सियाही, ये होंठों का उजाला
ये ही हैं मेरे दिन–रात...
शफ़क़ (सूर्य के निकलने और डूबने के समय क्षितिज पर दिखाई देनेवाली लाली), माहताब (चंद्रमा), शबनम (ओस)
जाहिर है कॉलेज के दिन थे तो ऐसी आशिकाना शायरी दिल को ज्यादा ही लुभाती थी।
कुछ दिनों पहले जननी कामाक्षी की आवाज़ में ये मुखड़ा फिर सुना तो वे दिन फिर एक बार याद आ गए। मुंबई में बतौर Information System Auditor के रूप में कार्य कर रहींजननी कामाक्षी कर्नाटक संगीत में तो प्रवीण हैं ही, फिल्मी गीतों, भक्ति संगीत और ग़ज़लों को भी गाहे बगाहे अपनी मधुर आवाज़ से तराशती रहती हैं। तो सुनिए उनके स्वर में जगजीत जी का ये गीत
काश तुझको पता हो, तेरे रुख–ए–रौशन से
तारे खिले हैं, दीये जले हैं, दिल में मेरे कैसे कैसे
महकने लगी हैं वहीं से मेरी रातें
जहाँ से हुआ तेरा साथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन
रुख–ए–रौशन (चमकता हुआ चेहरा), गुल (फूल)
पास तेरे आया था मैं तो काँटों पे चलके
लेकिन यहाँ तो कदमों के नीचे फर्श बिछ गये गुल के
के अब ज़िन्दगानी, है फसलें बहाराँ
जो हाथों में रहे तेरा हाथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन
बासु ने इस गीत को रचा भी क्या खूब कि बिना किसी संगीत के भी मन इस नग्मे के मीठे मीठे ख्यालातों को सुनकर हल्का हो जाता है। जगजीत की आवाज़ में ये रूमानियत सुनने वालों को एक ऐसे मूड में ले जाती थी जहाँ से निकलने में घंटों लग जाते थे। जननी ने तो इस गीत का सिर्फ मुखड़ा गाया पर वो भी इतने सुर में और अपनी खनकती मधुर आवाज़ के साथ कि जगजीत सुनते तो वे भी बेहद खुश होते।
वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के शानदार पन्द्रह गीतों की कड़ी में आख़िरी गीत फिल्म पुष्पा से। ये गीत कौन सा है ये तो आप समझ ही गये होंगे क्यूँकि पिछले साल के अंतिम महीने से लेकर आज तक ये गीत लगातार बज रहा है वो भी अलग अलग भाषाओं में। देशी कलाकार तो एक तरफ, ये गीत विदेशी कलाकारों को भी अपने मोहपाश में बाँध चुका है। हाल ही में मुंबई पुलिस के बैंड द्वारा सामूहिक रूप इसकी धुन की प्रस्तुति चर्चा का विषय बनी हुई है। जी हाँ ये गीत है श्रीवल्ली जिसकी अद्भुत संगीत रचना करने वाले देवी श्री प्रसाद बताते हैं कि इस धुन की रूप रेखा उन्होंने पाँच मिनट में ही गिटार पर बजा कर बना डाली थी। इस गीत की धुन इतनी पसंद की जायेगी ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था🙂
उत्तर भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए देवी श्री प्रसाद भले ही अनजान हों पर तेलुगू फिल्म उद्योग में वो जाना पहचाना नाम हैं। शायद ही आपको पता हो कि उन्हें उनके प्रशंसक प्यार से DSP RockStar के नाम से बुलाते हैं। पच्चीस सालों के अपने लंबे कैरियर में नौ फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित DSP अपनी धमाकेदार धुनों के लिए जाने जाते हैं। इसी फिल्म के लिए उनका गीत उ अन्टवा मावा..उ उ अन्टवा मावा.. इस साल का सबसे जबरदस्त डांस नंबर साबित हुआ है पर जहां तक श्रीवल्ली का सवाल है तो वो एक ऐसे आशिक का प्रेम गीत है जिसे ये शिकायत है कि उसकी महबूबा उसके प्यार को अनदेखा कर रही है।
देवी श्री प्रसाद
DSP ने इस फिल्म के हिंदी वर्जन को लिखने के लिए अपने पुराने मित्र रक़ीब आलम को चुना जो उनकी पहली फिल्म देवी में भी उनके साथ रहे थे। रक़ीब बहुभाषी गीतकार हैं। दक्षिण भारतीय भाषाओं में लिखने के आलावा वे स्लमडॉग मिलयनियर और गैंगस्टर जैसी फिल्मों के गीत लिख चुके हैं।
दक्षिण भारतीय फिल्में जब डब होकर हिंदी में आती हैं तो गीतकार के पास वो रचनात्मक आज़ादी नहीं होती क्यूँकि तब तक मूल भाषा में गीत बन चुका होता है और हिंदी में बस उसका भावानुवाद करना होता है। रक़ीब आलम को जब इसके मूल तेलुगू बोल मिले तो मुखड़े की एक पंक्ति का अर्थ कुछ यूँ था कि तुम्हारी झलक सोने की चमक सी बेशकीमती है। अब हिंदी में मुखड़े का मीटर जम नहीं पा रहा था तो रक़ीब उर्दू जुबान की शरण में गए और नायिका के लिए जो विशेषण चुना वो था अशर्फी।
अशर्फी में सोना और चमक दोनों मायने निहित थे। उर्दू से अनजान लोग मुखड़े में इस्तेमाल किए जुमले "बातें करे दो हर्फी" को सुनकर असमंजस में पड़ जाते हैं। दरअसल फिल्म की नायिका नायक को ज़रा भी भाव नहीं देती और कुछ पूछने पर भी दो हर्फी जवाब देती है जैसे हाँ, ना, क्यूँ, अच्छा। यहाँ हर्फ का मतलब अक्षर से है।
वहीं मदक बर्फी से गीतकार का अभिप्राय नायिका की नशीली मादक आँखों से हैं। गीत में हिंदी का वही मादक शब्द मीटर में लाने के लिए मदक में बदल दिया गया है। हालांकि आंखों की तुलना बर्फी से करना सोहता तो नहीं पर अशर्फी से तुक मिलान के लिए शायद गीतकार को ये करना पड़ा। कई लोगों ने मुझसे मुखड़े की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए कहा था। तो अब तो आप समझ गए होंगे मुखड़े के पीछे गीतकार की सोच
भगवान जो कि छुपा हुआ है उस के लिए तो नायिका पूजा अर्चना में लीन है पर नायक की आँखों में बसा प्रेम उसे नज़र नहीं आता। इसी भाव को गीत में उतारते हुए रक़ीब ने लिखा
नज़रें मिलते ही नज़रों से, नज़रों को चुराये कैसी ये हया तेरी, जो तू पलकों को झुकाये रब जो पोशीदा है, उसको निहारे तू और जो गरवीदा है, उसको टाले तू
बाकी गीत की भाषा रकीब ने ऐसी रखी है जो नायक के किरदार के परिवेश के अनुरूप है। जावेद अली ने इस गीत में अपनी आवाज़ की बनावट में जगह जगह परिवर्तन किया है। वो कहते हैं आवाज़ में बदलाव का ऐसा प्रयोग उन्होंने इस गीत के लिए पहली बार किया और ऐसा करते समय उन्होंने किरदार के थोड़े रूखे आक्रामक व्यक्तित्व का भी ध्यान रखा।
जावेद अली और रक़ीब आलम के साथ देवी श्री प्रसाद
पर इस गीत के असली हीरो देवी श्री प्रसाद ही हैं। ये उनकी इस मधुर धुन की ही ताकत है कि भाषा की दीवार लाँघता हुआ ये गीत देश विदेश में इतना लोकप्रिय हो रहा है। गीत की शुरुआत वो गिटार और ताल वाद्यों की संगत में सारंगी पर बजाई गीत की सिग्नेचर ट्यून से करते हैं। गीत में जो सवा दो मिनट के बाद से बैंजो पर मधुर टुकड़ा बजता है उसे स्वयम् देवी प्रसाद ने बजाया है जबकि सारंगी पर मनोनमणि की उँगलियाँ थिरकी हैं।
इस गीत में अभिनेता अल्लू अर्जुन का चप्पल निकलने वाला स्टेप आम लोगों से लेकर बड़े बड़े कलाकारों और खिलाड़ियों को इतना पसंद आया कि उस पर सबने हजारों छोटे छोटे वीडियो बना डाले। गीत की बढ़ती लोकप्रियता में उनके स्टाइल का भी असर जबरदस्त है।
वैसे तो श्रीवल्ली को इतने लोगों ने गाया है कि उसका कोई एक कवर वर्सन चुन कर सुनाना एक मुश्किल काम है पर जिस तरह जुड़वाँ बहनों किरण और निवि साईशंकर ने ये इस गाने का टुकड़ा गाया है उससे मुझे गीत के तेलुगू शब्द भी भाने लगे। गीत के मुखड़े और अंतरे के अंत में लिया उनका आलाप इस गीत को अलग ही ऊँचाइयों पर ले जाता है।
इस संगीतमाला के सारे गीतों की चर्चा तो हो चुकी। अब इन पन्द्रह गीतों को अपनी पसंद के क्रम में सजाइए और मुझे भेज दीजिए मेरे फेसबुक पेज मेल या यहाँ कमेंट में। जिसकी पसंद का क्रम मेरे से सबसे ज्यादा मिलेगा वो होगा हर साल की तरह एक छोटे से इनाम का हक़दार।
वार्षिक संगीतमाला के आखिरी मोड़ तक पहुँचने में बस दो गीतों का सफ़र तय करना रह गया है। अब आज के गीत के बारे में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि जिन्हें भी भारतीय शास्त्रीय संगीत से थोड़ा भी प्रेम होगा उन्हें संगीतमाला में शामिल इस अनूठे गीत के मोहपाश में बँधने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी। ये गीत है ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म अतरंगी रे का। मुझे पूरा यकीन है कि ये गीत आपमें से बहुतों ने नहीं सुना होगा पर गुणवत्ता की दृष्टि से मुझे तो ये फिल्म अंतरंगी रे ही नहीं बल्कि पिछले साल के सर्वश्रेष्ठ गीतों में एक लगा।
यूँ तो पूरी फिल्म में रहमान साहब का संगीत सराहने योग्य है पर इस गीत को जिस तरह से उन्होंने विकसित किया है तमाम उतार चढ़ावों के साथ, वो ढेर सी तारीफ़ के काबिल है। इतनी बढ़िया धुन को अगर अच्छे बोल नहीं मिलते तो सोने पे सुहागा होते होते रह जाता। लेकिर इरशाद कामिल ने प्रेम के रंगों में रँगे इस अर्ध शास्त्रीय गीत को बड़े प्यारे बोलों से सजाया है। गीत में बात है वैसे प्रेम की जैसा राधा से कृष्ण ने किया हो। गीत का आग़ाज़ द्रुत गति के बोलों से इरशाद कामिल कुछ यूँ करते हैं
तक तड़क भड़क, दिल धड़क धड़क गया, अटक अटक ना माना लट गयी रे उलझ गयी, कैसे कोई हट गया, मन से लिपट अनजाना वो नील अंग सा रूप रंग, लिए सघन समाधि प्रेम भंग
चढ़े अंग अंग फिर मन मृदंग, और तन पतंग, मैं संग संग..और कान्हा
गीत को गाया है कर्नाटक संगीत के सिद्धस्त गायक हरिचरण शेषाद्री ने नये ज़माने की स्वर कोकिला श्रेया घोषाल के साथ। चेन्नई के एक सांगीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले हरिचरण दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए नया नाम नहीं हैं पर हिंदी फिल्मों में संभवतः ये उनका पहला गीत है।
हरिचरण शेषाद्री श्रेया घोषाल के साथ
रहमान साहब ने हिंदी फिल्मों में ना जाने कितने हुनरमंद कलाकारों को मौका देकर उनके कैरियर को उभारा है। साधना सरगम, नरेश अय्यर, बेनी दयाल, चित्रा, श्रीनिवास, विजय प्रकाश, अभय जोधपुरकार, चिन्मयी श्रीपदा, शाशा तिरुपति... ये फेरहिस्त दिनोंदिन लंबी होती ही जाती है। इसीलिए सारे नवोदित गायकों का एक सपना होता है कि वो रहमान के संगीत निर्देशन में कभी गा सकें। हरिचरण इसी जमात के एक और सदस्य बन गए हैं।
हरिचरण भी रहमान के कन्सर्ट में बराबर शिरकत करते रहे हैं। जिस आसानी से इस बहते हुए गीत को उन्होंने श्रेया घोषाल के साथ निभाया है वो मन को सहज ही आनंद से भर देता है।
मुरली की ये धुन सुन राधिके, मुरली की ये धुन सुन राधिके, मुरली की ये धुन सुन राधिके
धुन साँस साँस में बुन के, धुन सांस सांस में बुन के कर दे प्रेम का, प्रीत का, , मोह का शगुन मुरली की ये धुन सुन राधिके...
हो आना जो आके कभी, फिर जाना जाना नहीं जाना हो तूने अगर, तो आना आना नहीं तेरे रंग रंगा, तेरे रंग रंगा मन महकेगा तन दहकेगा
तुमसे तुमको पाना, तन मन तुम..तन मन तुम तन से मन को जाना..उलझन गुम...उलझन गुम तुमसे तुमको पाना तन मन तुम जिया रे नैना, चुपके चुपके हारे मन गुमसुम, मन गुमसुम
डोरी टूटे ना ना ना, बांधी नैनो ने जो संग तेरे देखे मैंने तो, सब रंग तेरे सब रंग तेरे फीके ना हो छूटे ना ये रंग तेरे रंग रंगा.. शगुन
इस अर्ध शास्त्रीय गीत में क्या नहीं है तानें, आलाप, कोरस, मन को सहलाते शब्द, कमाल का गायन, ताल वाद्यों की थाप के बीच चलते गीत के अंत में बाँसुरी की स्वरलहरी और इन सब के ऊपर रहमान की इठलाती धुन जो तेरे रंग रंगा, तेरे रंग रंगा मन महकेगा तन दहकेगा.. तक आते आते दिल को प्रेम रस से सराबोर कर डालती है।
निर्देशक आनंद राय रहमान के इस जादुई संगीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस म्यूजिकल के अंत में A film by A R Rahman का कैप्शन दे डाला। आनंद तो यहाँ तक कहते हैं कि मेरा बस चले तो मैं रहमान के सारे गानों को सिर्फ अपनी फिल्मों के लिए रख दूँ। वहीं श्रेया कहती हैं कि ऊपरवाला रहमान के हाथों संगीत का सृजन करता है। स्वयम् ए आर रहमान इस फिल्म की संगीत की सफलता का श्रेय इसकी पटकथा को देते हुए कहते हैं कि
जिस फिल्म की कथा देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जा पहुँचती है तो बदलती जगहों और किरदारों के अनुसार संगीत को भी अलग अलग करवट लेनी पड़ती है। मैं शुक्रगुजार हूँ ऐसी कहानियों को जो संगीत में कुछ नया करने का अवसर हमें दे पाती हैं।
पिछले साल के शानदार गीतों की शृंखला में आज बात फिल्म पगलैट के एक दिलकश गीत की जिसे पहली बार सुनते ही गीत मन में रम सा गया था। कहना मुश्किल था कि ये हिमानी की जादुई आवाज़ का असर था या अरिजीत की सुरीली बहती सी धुन का या फिर नीलेश मिश्र के शब्द जिसको महसूस करते हुए इस गीत के लिए श्रोताओं के दिल की खिड़की खोल दी थी। इस गीत का मर्म समझने के लिए आपको पगलैट फिल्म की कहानी से परिचय कराना बेहद जरूरी हैं क्यूँकि फिल्म का गीत संगीत उसी में अपनी राह बनाता हुआ चलता है।
जैसा मैंने आपको पहले भी बताया था कि पगलैट एक ऐसी लड़की की कथा है जो शादी के चंद महीने बाद ही अपने पति को खो बैठती है। इतने कम समय में पति के साथ उसके मन के तार ठीक से जुड़ भी नहीं पाते हैं और तभी उसे पता चलता है कि जो अनायास ही ज़िंदगी से चला गया उसकी एक प्रेमिका भी थी। अपने पति के बारे में और जानने के लिए वो उसकी प्रेमिका से मिलती है और धीरे धीरे अपने पति के प्रति उसकी नाराज़गी व गलतफहमी दूर होने लगती है और इसलिए गीत के मुखड़े में नीलेश लिखते हैं थोड़े से कम अजनबी..मेरे दिल के घर में, खिड़की नयी है खुल गयी।
मन के अंदर का चक्रवात शांत होगा तभी तो व्यक्ति सकारात्मक ढंग से भविष्य के बारे में सोच सकेगा। ज़िदगी से एक बार फिर प्यार कर सकेगा। नीलेश नायिका के मन को पढ़ते हुए इसी भाव को गीत में व्यक्त करते हैं।
अरिजीत, नीलेश और हिमानी इस गीत के साथ कैसे जुड़े ये जानना भी आपके लिए दिलचस्प होगा। फिल्म की निर्माता गुनीत मोंगा ये चाहती थीं कि फिल्म का संगीत अरिजीत दें, हालांकि इससे पहले अरिजीत ने स्वतंत्र रूप से बतौर संगीतकार कभी काम नहीं किया था। वहीं अरिजीत की शर्त थी कि कहानी पसंद आएगी तभी वे संगीत निर्देशन का काम सँभालेंगे। ज़ाहिर है उन्हें कहानी पसंद आई।
नीलेश मिश्र पिछले कई सालों से फिल्मी गीतों को लिखना छोड़ चुके थे। उन्हें इस काम में मज़ा नहीं आ रहा था क्यूँकि जिस तरह की रचनात्मक स्वतंत्रता वो चाहते थे वो मिल नहीं रही थी। फिल्म के पटकथा लेखक और निर्देशक उमेश बिष्ट ने उनकी ये इच्छा पगलैट में पूरी कर दी। एक बार पटकथा सुनाकर संगीतकार गीतकार की जोड़ी को बीच मझधार में छोड़ दिया ख़ुद ब ख़ुद किनारे तक पहुँचने के लिए। नीलेश और अरिजीत चाहते भी यही थे कि उन्हें अपनी नैया ख़ुद चलाने का मौका मिले।
ये तो हम सभी जानते हैं कि अरिजीत सिंह ने गायिकी के साथ साथ प्रीतम दा के लिए सहायक के तौर पर काम किया है। प्रीतम और रहमान उनके लिए हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। यहाँ तक कि आख़िर आख़िर तक गीत में बदलाव की आदत भी उन्हें प्रीतम से मिली है। पगलैट के संगीत के बारे में अरिजीत कहते हैं कि उन्होंने पहले से कुछ संगीतबद्ध कर नहीं रखा था। नीलेश ने गीत के बोल लिखे और उन बोलों से ही मन में धुन बनती चली गयी। कहना होगा कि नीलेश और अरिजीत दोनों ने ही संध्या के मन को कहानी की पटकथा से खूब अच्छी तरह जाँचा परखा और इसी वज़ह से फिल्म का संगीत इतना प्रभावी बन पाया।
अरिजीत ने जब गीत की धुनें बनायीं तो उनके दिमाग में नीति मोहन, हिमानी कपूर , मेघना मिश्रा, चिन्मयी श्रीपदा और झूंपा मंडल की आवाज़ें थीं। उन्होने क्या कि सारे गीत सभी गायिकाओं को भेजे। सबने हर गीत को गाया और यही वज़ह है कि एलबम में आप एक ही गीत को दो वर्जन में भी सुन पाएँगे।
हिमानी कपूर अरिजीत सिंह के साथ
हिमानी मेरी पसंदीदा गायिका हैं और उसकी खास वज़ह उनकी आवाज़ कि एक विशिष्ट बुनावट या tonal quality है जिसे सुनकर आप तुरंत पहचान लेंगे कि ये गीत हिमानी गा रही हैं। वैसे तो हिमानी ने पंजाबी रॉक से लेकर सूफी, रूमानी गीतों से लेकर ग़ज़लें भी गायी हैं पर मुझे उनकी आवाज़ संज़ीदा गीतों और ग़ज़लों के बिल्कुल मुफ़ीद लगती है। हिमानी और अरिजीत ने रियालटी शो की दुनिया से संगीत जगत में कदम रखा है। इसलिए वे एक दूसरे की गायिकी से भली भांति परिचित रहे हैं।
पिछले साल अगस्त के महीने में हिमानी के जन्मदिन पर अरिजीत ने संदेशा भिजवाया कि वो उनसे अपनी फिल्म का एक गीत गवाना चाहते हैं। हिमानी के लिए जन्मदिन का इससे प्यारा तोहफा हो ही नहीं सकता था क्यूँकि अरिजीत के साथ काम करना उनके एक सपने का पूरा होना था। हिमानी का कहना है कि अरिजीत जैसे गुणी कलाकार के साथ सहूलियत ये है कि वो गायक को पूरी छूट देते हैं अपनी समझ से गीत में बदलाव लाने के लिए। गीत सुनने के बाद आश्चर्य होता है ये जानकर कि इतना प्यारा नग्मा लॉकडाउन की वज़ह से आनलाइन मोड में ही बना।
शुरुआत और अंतरों के बीच में गिटार के बहते नोट्स और अंत में निर्मल्य डे की बजाई बाँसुरी मन को सुकून पहुँचाती है। हिमानी की आवाज़ तो मन मोहती ही है और बीच में पार्श्व से उठता अरिजीत का उठता स्वर गीत को एक विविधता प्रदान करता है। इसमें कोई शक़ नहीं कि ये फिल्मों के लिए हिमानी का गाया अब तक का सबसे बेहतरीन गीत है। तो आइए सुनें हिमानी को पगलैट के इस गीत में
थोड़े ग़म कम अभी, थोड़े से कम अजनबी
मेरे दिल के घर में, खिड़की नयी है खुल गयी थोड़े से कम अजनबी, थोड़े से कम अजनबी..ख्वाहिशें नयी, होठों के मुंडेरों पे छिपी है ढेरों..छोटी छोटी सी ख़ुशी थोड़े से कम अजनबी, अच्छी सी लगे है ज़िन्दगी
दिल चिरैया हो हो चिरैया, चिरैया नयी बातें बोले हमका मुस्कुराएँ हम क्यों बेवजह, ताका झाँकी टोका टाकी करता जाए दिल ज़िद पे अड़ा, मैंने ना की इसने हाँ की धूप छाँव बुनते साथ कभी भूल भुलैया में मिल जो जाते रस्ते तेरे मेरे सभी, ख्वाहिशें नयी होठों के.. है ज़िन्दगी
अब दो ही गीत बचे हैं पिछले साल के शानदार गीतों की इस संगीतमाला में। गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग बताने का वक़्त पास आ रहा है। पर उससे पहले आप इन गीतों में अपनी पसंद का क्रम भी सजा लीजिए एक इनामी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए।
वार्षिक संगीतमाला में आज जो युगल गीत है उसे गाया है अभय जोधपुरकर के साथ मधुश्री ने। दक्षिण के संगीतकार अक्सर मधुश्री को अपनी फिल्मों में गवाते रहे हैं। हिंदी फिल्मों मे उन्होंने जितने भी गीत गाए हैं उनमें सबसे बड़ा हिस्सा ए आर रहमान के साथ है। मधुश्री की आवाज़ की बनावट और मिठास एक अलग तरह की है जिसकी वज़ह से उनके गाए गीतों को सहज ही पहचाना जा सकता है। फिल्म युवा में उनका गाया कभी नीम नीम कभी शहद शहद या फिर रंग दे वसंती का तू बिन बताए भला कौन भूल सकता है।
रहमान, एम एम क्रीम के बाद इस कड़ी में नाम जुड़ा है जस्टिन प्रभाकरन का जिन्होंने मधुश्री को मौका दिया फिल्म मीनाक्षी सुंदरेश्वर में।
मीनाक्षी सुंदरेश्वर दो ऐसे युवाओं की कथा है जिन्हें शादी के बाद अलग अलग रहना पड़ता है। पति पत्नी अलग अलग हैं फिर भी कोशिश कर रहे हैं कि उनके रिश्ते में जो प्रेम की लौ जल पड़ी है उसकी आँच को कम ना होने दें। राजशेखर की लेखनी के प्याले से हर पंक्ति में ये प्रेम छलका जाता है। मन केशर केशर में राजशेखर ने जो शब्दों के दोहराव का जो प्रयास किया था उसकी झलक इस गीत में भी दिखलाई देती है।
राजशेखर बिहार के एक किसान परिवार से आते हैं। बचपन में वे देखा करते कि उनके पिता दिन भर की बातें माँ को शाम को इकठ्ठे बताया करते थे। ये बात वैसे खेती किसानी क्या हर कामकाजी परिवेश परिवारों के लिए ये आज भी सही है। अंतर सिर्फ इतना हो गया है कि अगर आप आमने सामने ना भी हों तो फोन कॉल या चैटिंग के ज़रिए संवाद होता रहता है। इसलिए गीत के अंतरे में उन्होंने लिखा हमें सुबह से इसका इंतज़ार है कि जल्दी जल्दी शाम हो...कि पूरे दिन के क़िस्से हम बताएँगे तसल्लियों से रात को।
राजशेखर की माहिरी तब नज़र आती है जब वो लिखते हैं..जुगनू-जुगनू बन के, साथ-साथ जागे...जादू-जादू सब ये, जादुई सा लागे...टिमटिमा के देखो, हँस रहा वो तारा...क्या सुना लतीफ़ा, उसने फिर हमारा।
शब्दों का दोहराव और रूमानियत वाले भाव तो अपनी जगह पर टिमटिमा के देखने से लेकर तारों तक अपना लतीफा पहुँचाने की उनकी सोच मुझे तो बेहद पसंद आई। वैसे तो ये युगल गीत है पर मधुश्री की आवाज़ की छाप पूरे गीत में दिखाई देती है तो आइए पहले सुनते हैं ये गाना
तू यहीं है, आँखों के कोने में जगने सोने में, यहीं है तू तू यहीं है, हर पल रुसाने मुझको मनाने, यहीं है तू ये दूरी है दिल का वहम, संग मेरे है तू हरदम दम दम दम
तू यहीं है, होने, ना होने में ख़ुद को खोने में, यहीं है तू
हमें सुबह से इसका इंतज़ार है कि जल्दी जल्दी शाम हो कि पूरे दिन के क़िस्से हम बताएँगे तसल्लियों से रात को जुगनू-जुगनू बन के, साथ-साथ जागे जादू-जादू सब ये, जादुई सा लागे टिमटिमा के देखो, हँस रहा वो तारा क्या सुना लतीफ़ा, उसने फिर हमारा
जहाँ मिलते हैं रात और दिन वहीं चुपके से मिल लेंगे हम हम हम तू यहीं है, आँखों के कोने में....यहीं है तू. तू यहीं है, होने, ना होने में... यहीं है तू ये दूरी है...
इस गीत को फिल्माया गया है सान्या मल्होत्रा और मैंने प्यार किया वाली भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यु पर
गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग बताने का वक़्त पास आ रहा है। पर उससे पहले आप इन गीतों में अपनी पसंद का क्रम भी सजा लीजिए एक इनामी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए।
लता मंगेशकर जैसे महान कलाकार के गुजर जाने की वज़ह से मैं अपनी गीतमाला को आगे बढ़ाने की स्थिति में नहीं था। रह रह कर उनके गाए गीत और उनसे जुड़ी बातें में मन में उमड़ घुमड़ रही थीं। इसलिए मैंने इस गीतमाला को ढाई हफ्तों का एक विराम दिया था। आज इस सिलसिले को फिर से आगे बढ़ा रहा हूँ। पिछले साल के पंद्रह शानदार गीतों की फेरहिस्त में दस की चर्चा आपसे पिछले महीने हो ही चुकी है।अब अब सिर्फ पाँच गीत बचे हैं। हालांकि इस बार वार्षिक संगीतमाला में किसी क्रम से नहीं बज रहे पर ये पाँचों गीत मेरे बेहद प्रिय हैं।
कुछ गीत ऐसे होते हैं जिनमें निहित भावों को हम फिल्म की कहानी के इतर भी अपने आस पास की ज़िंदगी से जोड़ लेते हैं। फिल्म शेरशाह के गीत मन भरया को आप ऐसे ही गीत की श्रेणी में रख सकते हैं। ज़िदगी के अलग अलग पड़ावों में हम सबने किसी ना किसी करीबी को खोया ही होगा। कुछ लोग तो उस दुख के साथ जीना सीख लेते हैं तो कुछ उस व्यक्ति के चले जाने से आई शून्यता को आजीवन भर नहीं पाते। इस गीत की पंक्तियाँ ऐसे ही लोगों के मन की व्यथा व्यक्त करती हैं।
ये फिल्म कैप्टन विक्रम बात्रा के जीवन पर बनी फिल्म है। मरणोपरान्त परम वीर चक्र से सम्मानित विक्रम बात्रा के कारगिल युद्ध में पराक्रम के किस्से पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले जब देश के लिए शहीद होते हैं तो हम सभी की आँखें नम होती हैं, सम्मान में सर झुक जाता है पर फिर हम सब भूल कर अपने काम में लग जाते हैं। विक्रम तो पच्चीस साल की अल्पायु में ही शहीद हो गए। अपने जवान बेटे या नवविवाहिता के लिए अपना पति खो देना कितना कष्टप्रद है ये शायद वही समझ सकें जिसने वो दर्द सहा हो।
पंजाबी संगीत उद्योग में बी प्राक का नाम हमेशा सुरीले और संवेदनशील नग्मों के लिए लिया जाता रहा है। हिंदी फिल्मों में वो तेरी मिट्टी गाकर सबके चहेते बन गए। सच तो ये है कि ये गीत बी प्राक ने मूलतः शेरशाह के लिए संगीतबद्ध नहीं किया था। अपनी प्रेमिका के लिए उलाहना देते इस गीत को तब भी जानी ने ही लिखा था। मुखड़ा भी वही था पर अंतरे थोड़े अलग थे। संगीत संयोजन भी गिटार पर आधारित था। 2017 में स्पीड रिकार्डस के द्वारा रिलीज़ वो सिंगल काफी लोकप्रिय हुआ था।
धर्मा प्रोडक्शन्स के अज़ीम दयानी और करण ज़ौहर को ये गीत इतना पसंद आया कि 2019 में वो गीत उन्होंने स्पीड रिकार्ड्स से खरीद लिया। गाने के भावनात्मक असर को देखते हुए ये तय था कि इसे किसी खास फिल्म के लिए इस्तेमाल किया जाएगा जहाँ ऐसा माहौल बनाने की जरूरत होगी और दो साल के बाद जब शेरशाह अस्तित्व में आई तो ये गीत वहाँ सहज ही फिट हो गया।
शेरशाह की कहानी के अनुरूप ढालने के लिए गीत के बोलों और संगीत के मूड में बदलाव किया गया। फिर राँची से ताल्लुक रखने वाले मशहूर अरेंजर आदित्य देव की सेवाएँ ली गयीं जो कि तेरी मिट्टी का भी हिस्सा थे। बी प्राक की गहरी दमदार आवाज़ ऐसे मन को गीला करने वाले गीतों में फिट बैठती है। तेरी मिट्टी के संगीत संयोजन की तरह यहाँ भी आदित्य ने गीत की शुरुआत और मध्य में उदासी का रंग गहरा करने के लिए तार वाद्यों का इस्तेमाल किया। तो आइये सुनते है ये गीत
गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग बताने का वक़्त पास आ रहा है। पर उससे पहले आप इन गीतों में अपनी पसंद का क्रम भी सजा लीजिए एक इनामी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए।
जो गीत सिनेमा की पटकथा से निकल कर आते हैं वो तभी जनता तक पहुँच पाते हैं जब फिल्म सफल होती है। 1983 विश्व कप क्रिकेट में भारत की अप्रत्याशित जीत पर बनी फिल्म 83 के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। प्रीतम का संगीत और कौसर मुनीर के लिखे गीत औसत से अच्छे थे पर उतना सुने नहीं गए जितने के वे हक़दार थे। जीतेगा जीतेगा इंडिया जीतेगा तो फिल्म की कहानी का हिस्सा नहीं बन पाया पर इसी फिल्म का अरिजीत सिंह द्वारा गाया गीत लहरा दो फिल्म में था और आज मेरी इस पिछले साल के शानदार गीतों की परेड में भी शामिल हो रहा है।
ये गीत फिल्म में तब आता है जब भारत उस प्रतियोगिता में करो और मरो वाली स्थिति में आ गया था। जितनी बात फाइनल में कपिल के पीछे भागते हुए विवियन रिचर्डस का कैच लेने की जाती है उतने ही गर्व से कपिल की उस पारी को याद किया जाता है जो उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ खेली थी। जो क्रिकेट के शौकीन नहीं हैं वो थोड़ा असमंजस में जरूर पड़ेंगे कि आख़िर जिम्बाब्वे जैसे कमज़ोर क्रिकेट खेलने वाले देश के साथ खेली गयी पारी पर इतनी वाहवाही क्यूँ? तो थोड़ा तफसील से इसकी वजह बताना चाहूँगा आपको क्यूँकि तभी आप इस गीत का और आनंद ले पाएँगे।
83 में भारत की टीम को एकदिवसीय क्रिकेट में बेहद कमज़ोर टीमों में ही शुमार किया जाता था जिसने तब तक विश्व कप कि किसी भी प्रतियोगता में सिर्फ एक मैच ही जीता था। पर उस विश्व कप में भारत पहले मैच में वेस्ट इंडीज़ जैसे देश को हराकर सनसनी फैला दी थी। वैसा ही कारनामा जिम्बाब्वे ने आस्ट्रेलिया को हरा कर रचा था। तब ग्रुप की सारी टीमें एक दूसरे से दो दो मैच खेलती थीं। दूसरे मैच में जिम्बाब्वे को हराने के बाद अपने तीसरे और चौथे मैच में भारत, आस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ से बुरी तरह हारा था।
कई खिलाड़ियों की चोट से जूझती भारतीय टीम जिम्बाब्वे के खिलाफ़ अपने अगले मैच में मजबूत प्रदर्शन देने के लिए उतरी थी। कपिल ने टॉस जीता और बल्लेबाजी करने का फैसला लिया और तरोताजा होने के लिए गर्म पानी से स्नान का आनंद लेने चल दिए। इधर वो नहा रहे थे उधर भारतीय बल्लेबाज धड़ाधड़ आउट होते जा रहे थे। गावस्कर, श्रीकांत और संदीप पाटिल जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने तो खाता खोलने की भी ज़हमत नहीं उठाई थी। नौ रन पर चार विकेट और फिर 17 के स्कोर पर जब पाँचवा विकेट गिरा कपिल तब भी नहाने में तल्लीन थे। बाहर से लगातार आवाज़ दी जा रही थी कि पाजी निकल लो। कपिल हड़बड़ाकर भींगे बालों में ही निकले और उसके बाद उन्होने 175 रनों की नाबाद पारी खेल कर भारत को मैच में वापसी दिलायी।
फिल्म में ये गीत ठीक इस मैच के पहले आता है। उत्साह बढ़ाती भीड़ और लहराते झंडों के बीच अरिजीत सिंह की दमदार आवाज़ उभरती हुई जब कहती है
अपना है दिन यह आज का, दुनिया से जाके बोल दो...बोल दो ऐसे जागो रे साथियों, दुनिया की आँखें खोल दो...खोल दो लहरा दो लहरा दो, सरकशीं का परचम लहरा दो गर्दिश में फिर अपनी, सरजमीं का परचम लहरा दो
तो मन रोमांचित हो जाता है। गर्दिश में पड़ी टीम को कप्तान की आतिशी पारी उस मुहाने पर ला खड़ा करती है जहाँ से विश्व विजेता बनने का ख़्वाब आकार लेने लगता है। पूड़ी टीम कपिल की इस पारी को उस विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट मानती है। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसमें प्रीतम ने अंतरों को कव्वाली जैसा रूप दिया है
हो हाथ धर के बैठने से, क्या भला कुछ होता है हो हाथ धर के बैठने से क्या भला कुछ होता है जा लकीरों को दिखा क्या ज़ोर बाजू होता है हिम्मत-ए-मर्दा अगर हो संग खुदा भी होता है जा ज़माने को दिखा दे खुद में दम क्या होता है
लहरा दो लहरा दो, सरकाशी का परचम लहरा दो गर्दिश में फिर अपनी, सर ज़मीन का परचम लहरा दो लहरा दो लहरा दो...परचम लहरा दो लहरा दो लहरा दो...लहरा दो लहरा दो लहरा दो लहरा दो...लहरा दो लहरा दो..
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
अतरंगी रे की ही तरह मीनाक्षी सुंदरेश्वर बतौर एलबम मुझे काफी पसंद आया और इसीलिए इस फिल्म के भी कई गीत इस वार्षिक संगीतमाला में शामिल हैं। आज इसके जिस गीत की बात मैं करने जा रहा हूँ उसे आप Long Distance Relationship पर बनी इस फिल्म का आज की शब्दावली में ब्रेक अप सॉन्ग कह सकते हैं। ये गीत है रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा, जो है तेरा ले जाना.....।
मन केसर केसर का जिक्र करते हुए मैंने आपको बताया था कि इस फिल्म के संगीतकार जस्टिक प्रभाकरन तमिल हैं और हिंदी फिल्मों में संगीत देने का ये उनका पहला मौका था। आप ही सोचिए कहाँ हिंदी पट्टी से आने वाले खालिस बिहारी राजशेखर और कहाँ जस्टिन (जिन्हें तमिल और अंग्रेजी से आगे हिंदी का क, ख, ग भी नहीं पता) ने आपस में मिलकर इतना बेहतरीन गीत संगीत रच डाला।
मैं इनके बीच की कड़ी ढूँढ ही रहा था कि राजशेखर का एक साक्षात्कार सुना तो पता चला कि वो सेतु थे फिल्म के युवा निर्देशक विवेक सोनी। फिल्म के गीत संगीत पर तो लॉकडाउन में काम चलता रहा पर स्थिति सुधरने के बाद ये तिकड़ी साथ साथ ही सिटिंग में बैठती रही। राजशेखर बताते हैं कि उन्हें बड़ी दिक्कत होती थी जस्टिन को गीतों के भाव समझाने में।
राजशेखर का हाथ अंग्रेजी में तंग था और जस्टिन अंग्रेजी के शब्दों का उच्चारण भी तमिल लहजे में करते थे। जब राजशेखर ने रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा मुखड़ा रचा तो उसे सुनकर जस्टिन का मासूम सा सवाल था What ..meaning ? अब राजशेखर अगर शाब्दिक अनुवाद bits & pieces बताएँ तो शब्दों के पीछे की भावनाएँ गायब हो जाती थीं तो वे ऐसे मौकों पर चुप रह जाते। ऐसे में विवेक दुभाषिए का रोल अदा करते थे।
जस्टिन प्रभाकरन , विवेक सोनी और राजशेखर
फिल्म के गीतों पर काम करते करते जस्टिन को राजशेखर ने हिंदी के तीन चार शब्द तो रटवा ही दिए। एक मज़ेदार बात उन्होने ये सिखाई कि जस्टिन If someone asks you about lyrics you have to just say बहुत अच्छा 😀😀।
फिल्म की कथा शादी के बाद अलग अलग रह रहे नवयुगल के जीवन से जुड़ी है। वो कहते हैं ना कि जिनसे प्यार होता है उनसे उतनी जल्दी नाराज़गी भी हो जाती है। पास रहें तो थोड़ी नोंक झोंक के बाद मामला सलट जाता है पर दूरियाँ कभी कभी कई ऐसी गलतफहमियों को जन्म देती हैं जो नए नवेले रिश्ते की नर्म गाँठ को तार तार करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाती।
एक बार मन टूट जाए फिर उस शख़्स से लड़ने की भी इच्छा नहीं होती। इसलिए राजशेखर लिखते हैं
जाना अगर है तो जा, मुझे कुछ नहीं कहना ना यकीं हो रहा, संग हम दोनो का था बस इतना ही क्या क्या ही कहें, क्या ही लड़ें जब प्यार ही ना रहा
गीत का मुखड़ा तो क्या खूब लिखा है राजशेखर ने
रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा, जो है तेरा ले जाना यादें बातें दिन और रातें, सब ले जा तू
और अंतरे में बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले की तर्ज पर जीवन में move on करने की बात करते हैं।
क्या करें कि जल्दी-जल्दी, तुझे भूल जाएँ अब साथ वाली सारी शामें, याद फिर ना आए अब छोटी-छोटी यादों में हम अटके रहें क्यूँ पीछे जाती सड़कों पे भटके रहें क्यूँ जो धागा-धागा उधड़ा है -क्या ही है बचा जो रेशा रेशा पकड़ा है - कर दे ना रिहा रत्ती रत्ती..सब ले जा तू
जस्टिन गीत की शुरुआत एक उदास करती धुन से करते हैं। गीत में मुख्यतः बाँसुरी और गिटार का प्रयोग हुआ है। इस युगल गीत को गाया है अभय जोधपुरकर और श्रेया घोषाल की जोड़ी ने। श्रेया तो संगीतप्रेमियों के लिए किसी परिचय का मोहताज नहीं। जहाँ तक अभय का सवाल है वे शाहरुख की फिल्म ज़ीरो के गीत मेरे नाम तू में अपनी गायिकी के लिए काफी सराहे गए थे। उस वक्त मैंने यहाँ उनके बारे में लिखा भी था।
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
राँझणा और तनु वेड्स मनु जैसी कामयाब फिल्में बनाने वाले आनंद राय जब एक बार फिर धनुष को अपनी नयी फिल्म अतरंगी रे में सारा और अक्षय कुमार के साथ ले कर आए तो आशा बँधी कि फिल्म कुछ वैसा ही जादू दोहरा पाएगी। धनुष के शानदार अभिनय के बावज़ूद अपनी लचर पटकथा की वज़ह से फिल्म तो कोई कमाल दिखला नहीं सकी जैसी आशा थी अलबत्ता संगीतकार ए आर रहमान एलबम में अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह सफल हुए। यही वज़ह है कि इस फिल्म के तीन गीत पिछले साल के शानदार गीतों की इस संगीतमाला में अपनी जगह बना पाए हैं।
जहाँ तक रेत ज़रा सी का सवाल है तो यहाँ क्या मेलोडी रची है रहमान साहब ने। अगर आप दूर से भी इस गीत को सुनें तो सहज ही धुन की मधुरता आपको इसे गुनगुनाने पर मजबूर कर देगी। ज्यादातर धुनें पहले बनती हैं शब्द बाद में लिखे जाते हैं। जब भी कोई धुन बनती है तो संगीतकार या तो कच्चे बोलों से काम चलाता है या फिर अनर्गल बोलों का सहारा लेता है जिसे अंग्रेजी में Gibberish कहा जाता है। नेट पर मुझे इस गीत का ऐसा ही आडियो मिला जिसमें रहमान इस धुन को कुछ ऐसे ही बोलों से विकसित कर रहे हैं। तो सुनिए आप भी
पर आकाश में सिर्फ चाँद हो तो क्या रात अपनी सारी खूबसूरती बिखेर पाएगी? नहीं ना उसे तो ढेर सारे तारों की टिमटिमाहट भी चाहिए। शब्दों की यही जगमगाहट गीतकार इरशाद कामिल लाए हैं और उस चमक को अपनी गायिकी से हम तक पहुँचाया है अरिजीत सिंह और शाशा तिरुपति की युगल जोड़ी ने।
इस गीत के मुखड़े को सुनकर बचपन के वो दिन आ जाते हैं जब रेत के टीले पर चढ़ते उतरते मस्ती करते हम बच्चे अपनी हथेलियों में मुट्ठी भर भर कर रेत का घर बनाने कर लिए ले जाया करते थे पर हर कदम के साथ रेत उँगलियों के कोनों से गिरती जाती और लक्ष्य तक पहुँचते हुए ज़रा सी ही रह जाती थी।
इस फिल्म में धनुष और सारा का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है जो रेत की तरह दिल रूपी हथेली से कभी उड़ता तो कभी फिसलता चला जाता है। इन भावों को कितनी सरलता से कामिल कुछ यूँ व्यक्त करते हैं ...रोज़ मोहब्बत पढ़ता है, दिल ये तुमसे जुड़ता है...हवाओं में यूँ उड़ता है, हो जैसे रेत ज़रा सी....हाथ में तेरी खुशबू है, खुशबू से दिल बहला है...ये हाथों से यूँ फिसला है, हो जैसे रेत ज़रा सी
होना तेरा होना, पाना तुमको पाना
जीना है ये माना, पल भर में सदियां
है सदियों में, जीना है ये माना
हाथ में तेरी खुशबू है, खुशबू से दिल बहला है
ये हाथों से यूँ फिसला है, हो जैसे रेत ज़रा सी
रोज़ मोहब्बत पढ़ता है, दिल ये तुमसे जुड़ता है
हवाओं में यूँ उड़ता है, हो जैसे रेत ज़रा सी
ये हलचल, दिल की ये हलचल
बोले आज आस पास तू मेरे
बिखरा हूँ मैं तो, कुछ पल हवा में
तेरे भरोसे को थामे
चलना भी है बदलना भी है
तुझमें ही तो ढलना भी है
दिल थोड़ा जज़्बाती है, भर जाता है बातों से
ये फिर छलके यूँ आँखों से, हो जैसे रेत जरा सी
हाथ में तेरी खुशबू है, सच पुछो तो अब यूँ है
तू चेहरे पे मेरे ठहरा, हो जैसे रेत ज़रा सी
अरिजीत तो दर्द भरे प्रेम गीतों के बेताज बादशाह हैं ही शाशा तिरुपति ने भी दिल थोड़ा जज़्बाती है.. गाते हुए उनका बखूबी साथ दिया है। शाशा का अरिजीत के साथ गाया ये तीसरा युगल गीत हैं और वो मानती हैं कि अरिजीत के साथ उनकी आवाज़ गानों में फबती है। रहमान के बारे में उनका कहना है कि वो गीत बनाते समय ही मन में एक प्रारूप बना लेते हैं हैं कि ये गीत किससे गवाना है? रहमान ने इस गीत में ताल वाद्यों के साथ बाँसुरी और सरोद का इस्तेमाल किया है। करीम कमलाकर की बजाई बाँसुरी गीत सुनने के बाद में भी मन में बजती रहती है। रहमान का गीत है तो अंतरों के बीच कोरस का होना तो स्वाभाविक ही है।
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के बेहतरीन गीतों की इस शृंखला में दक्षिण भारतीय शादियों का माहौल बरकरार रखते हुए आज का गीत फिल्म मीनाक्षी सुंदरेश्वर से। ये गीत भले ही शादी के विधि विधानों के बीच फिल्माया गया है पर पति पत्नी के रिश्ते में बँधने के पहले दो युवा दिलों के मन में चलती प्रेमसिक्त फुलझड़ियों की झलक दिखला जाता है।
संगीतकार जस्टिन प्रभाकरन और राजशेखर ने क्या समां बाँधा है शाश्वत सिंह और आनंदी जोशी के गाए इस युगल गीत में। गीत में गायिकाओं का मधुर कोरस, गीत के बीच में द्रुत ताल वाली गायिकी, राजशेखर की काव्यात्मक बोली में निखरते नए नए शब्द और उनका प्यारा दोहराव सब आपका ध्यान आकर्षित करते हैं।
गीतों में शब्दों का दोहराव पहले भी होता आया है। याद कीजिए साहिर लुधियानवी साहब का लिखा मुझे जीने दो का शानदार नग्मा रात भी है कुछ भींगी भींगी, चाँद भी है कुछ मद्धम मद्धम जिसे गुनगुनाते आज भी आनंद आ जाता है। राजशेखर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है इस गाने में साहिर की उस शैली की शान कायम रखने में। गीत की शुरुआत में वो लिखते हैं मन केसर-केसर महके, रेशम-रेशम लागे रे...दिल चंपई-चंपई बाँधे, सिंदूरी से धागे रे और इसी रूप को आगे बढ़ाते हुए उनका ये कहना फिर खनक-खनक गई हँसी हँसी तेरी..कनक-कनक धरा हुई अभी अभी गीत की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है।
राज शेखर और जस्टिन प्रभाकरन
अंतरों में भी राजशेखर की कविता का जादू खत्म नहीं होता। मन रूमानी हो उठता है जब वो कहते हैं एक कोसा-कोसा सपना, मद्धम-मद्धम जागे रे, दिन हौले-हौले धड़के, सौंधी-सौंधी शामें रे। राजशेखर ने इस गीत में कनक (सुनहरा),कोसा(रेशमी), संदली(चंदन सी) जैसे कम प्रयुक्त होने वाले शब्दों को गीतों की भाषा से जिस तरह जोड़ा है उसके लिए वो बधाई के पात्र हैं।
शादी के बंधन में बँध रही युवा जोड़ी की भावनाओं को बखूबी अपनी आवाज़ में उतारा है इलाहाबाद के शाश्वत सिंह और मुंबई की आनंदी जोशी ने। तमिल फिल्मों में संगीत देने वाले जस्टिन प्रभाकरन की तरह आनंदी और शाश्वत की आवाज़ कुछ ही हिंदी फिल्मों में गूँजी है पर ये दोनों कलाकार एक दशक से ज्यादा समय से संगीत की दुनिया में सक्रिय हैं।
शाश्वत सिंह और आनंदी जोशी
शाश्वत अपना ख़ुद का संगीत रचते और गाते हैं और वो करना उन्हें सबसे अच्छा लगता है। रोज़ी रोटी और नाम के लिए बॉलीवुड तो है ही। रहमान की एकाडमी में रहकर उन्होंने संगीत के विविध पक्षों के बारे में सीखा है। आनंदी मराठी फिल्मों में बतौर गायिका सक्रिय हैं। सा रे गा मा पा में भी अपनी गायिकी का सिक्का जमा चुकी हैं।
जस्टिन प्रभाकरन के संगीत में गिटार, नादस्वरम और ताल वाद्यों के साथ कोरस भी एक अहम भूमिका निभाता है। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे देखना अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा की बोलती आँखों की वज़ह से और आनंदमय हो गया है।
मन केसर-केसर महके, रेशम-रेशम लागे रे
दिल चंपई-चंपई बाँधे, सिंदूरी से धागे रे
सुन ओ कनमनी
सुन ओ कनमनी शहनाई सी ये बाजे रे
साँवली-साँवली तेरी आँख में, से ख़ाब रे
खनक-खनक गई हँसी हँसी तेरी
कनक-कनक धरा हुई अभी अभी
मन केसर-केसर महके...सिंदूरी से धागे रे
दोनो नैनों में पिया बसे सारा-सारा
इन्हीं नैनों में सारा मिले प्यार
आँचल में हो पुरवा, रूनझुन तारे आँगन में
आँगन में आँगन में
एक कोसा-कोसा सपना, मद्धम-मद्धम जागे रे
दिन हौले-हौले धड़के, सौंधी-सौंधी शामें रे
हुई संदली, हुई संदली अपनी सब रातें रे
साँवली साँवली...... अभी अभी
वैसे इतना बता दूँ कि इस फिल्म का ये आख़िरी गीत नहीं है जो इस गीतमाला का हिस्सा बना है। :)
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
वार्षिक संगीतमाला में आज का गीत फिल्म मिमी से। फिल्म का संगीत एक बार फिर ए आर रहमान ने दिया था। इस फिल्म में कई गीत हैं। खासकर डांस नंबर पसंद करने वाले गीत परम सुंदरी पर कई बार झूम चुके होंगे। पर 2021 के 15 उल्लेखनीय गीतों की मेरी सूची में इस फिल्म का वो गाना शामिल हो रहा है जिसमें आवाज़ है कैलाश खेर की और शब्द अमिताभ भट्टाचार्य के।
पिछले साल सरोगेसी जैसे विषय पर बनी ये फिल्म काफी सराही गयी थी। जिस बच्चे को आप अपने गर्भ में नौ महीने तक पालते हैं उससे एक भावानात्मक लगाव हो जाना स्वाभाविक सा है खासकर तब जब जन्म के बाद भी उसका कुछ सालों तक लालन पालन आपने किया हो। सच्ची बात तो ये है कि शिशु के लिए तो माँ वही है जिसने उसे पाला पोसा हो। उसे क्या पता खून या गर्भ के रिश्ते के बारे में। संसार में आने के बाद जहाँ से ममता की छाँव मिली उसी को उसने माँ का सच्चा रूप मान लिया।
नायिका मिमी की आपबीती भी कुछ ऐसी ही है। मिमी ने पैसे लेकर गर्भ धारण किया पर बच्चे के जन्म के पहले ही उसे उसके वास्तविक माता पिता ने त्याग दिया और फिर सालों बाद जब उनकी मति फिरी तो मिमी और उसके परिवार के लिए उस बच्चे को छोड़ना असहनीय हो उठा।
परिवार की इसी पीड़ा को अमिताभ भट्टाचार्य ने इस गीत में अपने शब्द दिए हैं। गीतों के बोल और रहमान द्वारा दिया संगीत एक लोकगीत सा माहौल रचता है। कैलाश खेर की धारदार आवाज़ इस दुख को और गहरा कर देती है। कैलाश एक कमाल के गायक हैं। विगत कुछ वर्षों से निजी जीवन में अपने आचार व्यवहार की वज़ह से कई विवादों से घिरे रहे हैं। यही कारण है कि उनकी रुहानी आवाज़ श्रोताओं को पिछले एक दो सालों में कम सुनने को मिली है।
अमिताभ वैसे गीतकारों में हैं जिन्हें साल दर साल अपने गीतों का स्तर बनाए रखा है और उनकी लेखनी फिल्म की कहानी के अनुरूप गीत के मूड को अपने बोलों से ढालने में सफल रही है। इसी गीत में देखिए कितने प्यारे बोल लिखे हैं उन्होंने ...
छोटी सी चिरैया छोटी सी चिरैया उड़के चली किस गाँव रह गया दाना रह गया पानी सूनी भई अमवा की छाँव मुनिया मोरी सूनी भई अमवा की छाँव छोटी सी चिरैया ... गाँव
अजब निराली मोह की माया, समझे समझ नहीं आए अंगना से तोरी चहक तो जाए, तोहरी महक नहीं जाए नैन समंदर सात भरे पर , भरे ना करेजवा के घाव मुनिया मोरी भरे ना करेजवा के घाव छोटी सी चिरैया छोटी सी चिरैया ..
दे विदाई में तुझे क्या कीमती समान दे जा निंदिया रैन की सुबहों की ले मुस्कान भरके अपनी चोंच में ले जा हमरे प्राण आ छोटी सी चिरैया ...की छाँव
रहमान ने संगीत संयोजन में मुखड़े और पहले अंतरे के बीच विश्व मोहन भट्ट द्वारा बजाई मोहन वीणा पर सबसे पहले ध्यान जाता है। मुखड़े और दूसरे अंतरे में वीणा के साथ सारंगी का छोटा सा टुकड़ा भी आपको सुनने को मिलेगा। कैलाश खैर की बुलंद आवाज़ के साथ वैसे भी ज्यादा साज़ों की आवश्यकता नहीं होती। बस संगत में घटम, तबले व हारमोनियम का धीमा मधुर स्वर कानों को सहलाता चलता है। पर ये सब सुनने के लिए आपको गीत का ऑडियो सुनना होगा। वीडियो वर्जन में गीत का पहला अंतरा नहीं है।
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
चला मन फिर पलाश के पीछे Flame of Forest : Palash
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हर साल बसंत ॠतु के आगमन के साथ इंतज़ार रहता है कि कब पलाश की कलियाँ फूल बन
कर पूरी छटा को अपनी लालिमा से ढक लेंगी। होली आते आते पलाश अपने रूप रंग में
आने ल...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।